Friday, 17 April 2009

जे. सी. बैंक में आज भी जारी
हैं अनियमितताएं




मुंबई : पश्चिम रेलवे के कर्मचारियों की जैक्शन को-ऑपरेटिव बैंक (जे.सी. बैंक) में भर्तियों को लेकर आज भी अनियमितताएं जारी हैं. इन अनियमितताओं का प्रमुख कारण बैंक के कुछ डायरेक्टरों की मनमानी और रेलवे से यहां प्रतिनियुक्ति पर आये चीफ मैनेजर (अब सीईओ) की स्वार्थ लिप्सा एवं रिटायरमेंट तक यहीं बने रहने की उनकी लालसा को बताया जा रहा है. इससे ऐसा लगता है कि जे. सी. बैंक का दीवाला निकालकर इसे दिवालिया बनाने की कोशिशें इसके लगभग सभी डायरेक्टर्स मिलकर कर रहे हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार हाल ही में जे.सी. बैंक में 20 लोगों की भर्ती की गई है, जो कि इसके डायरेक्टरों के ही सगे-संबंधी हैं. इनमें से एक अमित रेलवानी इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जी. बी. चांदवानी का भतीजा भी है, जिसकी नियुक्ति रतलाम यूनिट में की गई है.
बताते हैं कि इससे पहले ऐसे सगे संबंधियों की नियुक्ति के लिए 20 लोगों का पैनल बनाया गया था, जिसमें सभी लोग ले लिए गए थे. मगर इन नियुक्तियों को कोर्ट में चुनौती दी गई थी और कोर्ट ने इन पर स्थगनादेश भी दिया था. बताते हैं कि इन नियुक्तियों में अनियमितताओं की शिकायत होने पर तत्कालीन महाप्रबंधक/प.रे. और बैंक के पदेन चेयरमैन ने उक्त नियुक्तियां रद्द कर दी थीं. तब बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में निहित स्वार्थी डायरेक्टरों ने बैंक के संविधान में संशोधन करके महाप्रबंधक को ही चेयरमैन पद से हटा दिया था और डायरेक्टरों में ही किसी एक को चुनकर चेयरमैन बनाने का नियम बना दिया था. बैंक के डायरेक्टरों ने उक्त पैनल के अपने संबंधियों को आगे करके जीएम के आदेश को राजकोट की एक अदालत में चुनौती दिलवाई थी. राजकोट कोर्ट ने जीएम के आदेश को रद्द कर दिया, तो उक्त 20 लोगों की तो नियुक्ति की ही गई बल्कि बताते हैं कि डायरक्टरों ने इसी आड़ में 20 लोगों को और भर्ती कर दिया. प्राप्त जानकारी के अनुसार उपरोक्त 40 लोगों की भर्ती के बाद भी 20 और लोगों की भर्ती की जा चुकी है जबकि अभी 20 लोगों की और भर्ती की जा रही है. इस प्रकार महाप्रबंधक को चेयरमैनशिप से हटाने का मकसद साफ जाहिर हो रहा है कि इससे जे.सी. बैंक के तथाकथित डायरेक्टरों को अपनी मनमानी करने की छूट मिल गई है.
बताते हैं कि डायरेक्टरों की इसी मनमानी के चलते बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष एवं चेयरमैन रहे प्रकाश तेंदुलकर एवं पूनम मोदी ने इस्तीफा दे दिया था. प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले 20 लोगों में एक डायरेक्टर के लड़के और एक अन्य डायरेक्टर की बहू भर्ती हुई थी और उसी की आड़ में भर्ती किए गए अन्य 20 लोगों में उक्त डयरेक्टर के लड़के की पत्नी को भी भर्ती कर दिया गया. यह सभी 40 लोग बैंक के डायरेक्टरों के ही सगे-संबंधी हैं. इसके बाद फिर जो 20 लोग भर्ती किए गए, वह भी और अब जो पुन: 20 भर्ती किए जा रहे हैं, वह सब भी, बैंक डायरेक्टरों के ही नजदीकी या दूर के सगे संबंधी हैं. इसमें भारी भ्रष्टाचार भी होने की पुता संभावना जताई गई है. इस संबंध में 'रेलवे समाचार' ने पहले भी विस्तृत जानकारी प्रकाशित की है. ज्ञातव्य है कि रेलवे के सभी कंडक्ट रूल्स जे. सी. बैंक के सीईओ सहित सभी डायरेक्टरों पर लागू हैं परंतु विजिलेंस द्वारा आज तक एक बार भी डायरेक्टरों की मनमानियों की जांच नहीं की गई है. जानकारों के अनुसार बैंक में भर्ती के लिए सर्वप्रथम सार्वजनिक नोटिफिकेशन निकाला जाना चाहिए और इस प्रकार आवेदन पत्र मंगाकर ही भर्ती पैनल बनाया जाना चाहिए. इसके अलावा रोजगार कार्यालय से भी नाम मंगाये जा सकते हैं. नियमानुसार यह भर्ती प्रक्रिया न अपनाकर बिना किसी नियम का पालन किए ही जे.सी. बैंक में उक्त नियुक्तियां की गई हैं और आगे की जा रही हैं.

बताते हैं कि भर्ती किए गए इन सगे संबंधियों की लिखित परीक्षा तो क्या कोई मौखिक परीक्षा भी नहीं ली गई है. यह भी बताया जाता है कि कुछ डायरेक्टरों ने तो अपने उम्मीदवारों को अपना रिश्तेदार बताकर इन भर्तियों से लाखों रुपए की अवैध कमाई की है. अब सभी डायरेक्टर्स को बंगला प्यून देने की भी प्रक्रिया जारी है, जबकि जून 2010 में वर्तमान सभी डायरेक्टर्स का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. नये चुनाव होंगे तो क्या डायरेक्टर्स को भी पुन: बंगला प्यून दिए जाएंगे?
बताते हैं कि पहले जब जीएम एवं दो एफए एंड सीएओ जे.सी. बैंक में पदेन हस्तक्षेप रहता था तो उपरोक्त प्रकार की अनियमितताओं पर कड़ा अंकुश रहता था. परंतु बैंक का संविधान संशोधन करके अब इसमें रेलवे का संपूर्ण हस्तक्षेप खत्म कर दिया गया है, जिससे जे.सी. बैंक अब पूरी तरह इसके अधकचरे एवं अकुशल डायरेक्टरों के रहमोकरम पर ही रह गई है.
इससे पहले जे.सी. बैंक के सभी डायरेक्टरों ने एक प्रस्ताव पास करके अपने लिए मोबाइल हैंडसेट और प्रतिमाह् 1000 रु. मोबाइल बिल के साथ ही प्रति मीटिंग 5000 रु. भत्ता ले लिया, जो कि रहने, खाने की व्यवस्था से अलग है, जबकि बैंक के स्टाफ को 6वें वेतन आयोग के अनुसार वेतन देने के लिए बैंक के पास फंड नहीं होने की बात कही जा रही है, जबकि पांचवे वेतन आयोग के समय यह नियम लागू हुआ था कि जो वेतन रेलवे स्टाफ को दिया जाएगा, वही जे.सी. बैंक के स्टाफ को भी लागू होगा.
स्टाफ का कहना है कि डायरेक्टरों की मनमानी के लिए बैंक के पास फंड की कमी नहीं है, मगर स्टाफ को देने के लिए फंड नहीं है. स्टाफ का कहना है कि बैंक में बने रहने के लिए सीईओ द्वारा डायरेक्टरों की मनमानी चलने दी जा रही है, जबकि वह डायरेक्टरों को नियमों का हवाला देकर उनकी मनमानी पर लगाम लगा सकते हैं. बैंक में यही उनका काम और कर्तव्य है.
ज्ञातव्य है कि नियमानुसार कोई भी सीईओ प्रतिनियुक्ति पर अब सिर्फ 2 साल ही रह सकता है. तीसरे साल के लिए डीओपीटी की अनुमति और चौथे साल के लिए मंत्री की व्यक्तिगत संस्तुति आवश्यक है. पता चला है कि लोन रिकवरी के लिए प.रे. को जो कमीशन मिलता है, वह भी शेयरधारकों के कल्याण हेतु जे.सी. बैंक को वापस कर दिया जाता है, जां डायरेक्टर्स की भारी मनमानी और स्वेच्छाचार वर्षों से जारी है जबकि प.रे. का अब बैंक पर कोई नियंत्रण भी नहीं रह गया है. यह उदार व्यवस्था तब की थी जब प.रे. का जे.सी. बैंक पर पूरा नियंत्रण था. इसलिए यह खत्म हो जाने से प.रे. को भी अपना कमीशन उसे वापस देना बंद करना चाहिए. ऐसा प.रे. के कई लेखाधिकारियों का भी मानना है.
उपरोक्त तमाम अनियमितताओं पर संपर्क करने पर जे.सी. बैंक के सीईओ श्री जी.बी. चांदवानी ने फोन पर 'रेलवे समाचार' को बताया कि 'कोर्ट द्वारा जीएम के आदेश को रद्द करने के बाद पैनल के 20 लोगों की भर्ती की गई थी. उसके बाद 20 नहीं बल्कि 10 और लोगों को भर्ती किया गया था.' यह पूछे जाने पर कि उसके बाद भी 20 लोग और भर्ती किए गए तथा 20 और लोगों की भर्ती प्रक्रिया बैंक में चल रही है, इस पर श्री चांदवानी का कहना था कि 'बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का जैसा निर्णय होता है, वैसा ही किया जाता है.' इस पर जब उनसे उनकी ड्यूटी के बारे में पूछा गया कि आपने बोर्ड को इसके नियमों के बारे में बताया था क्या कि बिना नोटिफिकेशन जारी किए और लिखित एवं मौखिक परीक्षा लिए बगैर भर्ती करना नियम विरुद्ध है. इसके अलावा रोजगार कार्यालय से नाम मंगाकर पैनल क्यों नहीं बनाए जाते हैं? इस पर भी श्री चांदवानी का जवाब बोर्ड का निर्णय ही था. हालांकि उन्होंने इस बात का खंडन किया कि डायरेक्टर्स को बंगला प्यून दिए जा रहे हैं, तथापि उन्होंने अपनी ड्यूटी और कर्तव्य के बारे में पूछे गए सवाल का कोई उत्तर नहीं दिया, मगर यह जरूर कहा कि यदि इस सबके बारे में रू-ब-रू बात की जाए तो ज्यादा जानकारी का आदान-प्रदान हो सकता है.
फिर भी 'रेलवे समाचार' ने उन्हें यह अवश्य बताया कि रेलवे के कंडक्ट रूल्स उनके सहित सभी डायरेक्टरों पर लागू होते हैं. मगर डायरेक्टरों अथवा बोर्ड की मनमानियों के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार वही माने जाएंगे.

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