Monday 11 January, 2010

आखिर साबित हुई आंकड़ों की बाजीगरी

संसद के दोनों सदनों में भारतीय रेल पर प्रस्तुत किए गए श्वेत पत्र ने आखिर आंकड़ों की बाजीगरी के खेल को सार्वजनिक रूप से साबित कर दिया है. इससे यह भी साबित हो गया है कि पूर्व रेलमंत्री और स्वघोषित तथाकथित 'प्रबंधन गुरु' लालू प्रसाद यादव न सिर्फ एक 'बंडलबाज' थे बल्कि भा. रे. के उनकी तथाकथित टर्नएराउंड की थ्योरी कोरी बकवास थी. 'रेलवे समाचार' लगातार लालू की बकवास को उसी तत्परता से उनके कार्यकाल के दौरान ही गलत साबित करता रहा था. 'रेलवे समाचार' ने ही सर्वप्रथम यह उजागर किया था कि बजट के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जाने वाले लेखा मापदंड को लालू ने उलट दिया है, जिसके अनुसार तमाम खर्च बिना घटाए ही हजारों करोड़ रु. का शुद्ध लाभ दर्शाकर पूरे देश को मूर्ख बनाया जा रहा है. 'रेलवे समाचार' ने बिना यात्री एवं माल भाड़ा बढ़ाए ही लालू के रेलवे को मुनाफे एवं तथाकथित टर्नएराउंड की जिस थ्योरी की हवा तभी निकाल दी थी, जिसकी खूब वाहवाही तब की जा रही थी, वह भी श्वेत पत्र में साबित हुई है. कुल मिलाकर 'रेलवे समाचार' यह दावा करता है कि लालू के चार साल के कार्यकाल में उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए पांचों रेल बजटों में जो-जो चालाकियां उनके द्वारा की गई थीं और जिन-जिन को 'रेलवे समाचार' ने समय-समय पर उजागर किया था, उन सबका उल्लेख वर्तमान श्वेत पत्र में है. तब लालू को 'रेलवे समाचार' ने 'नौटंकीबाज' और पूर्व रेलमंत्री एवं बिहार के वर्तमान
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 'मदारी' का खिताब दिया था, वह एकदम सही साबित हुआ है. नीतीश कुमार ने तो श्वेत पत्र प्रस्तुत होने के बाद भी लालू को बंडलबाज (आंकड़ों का खेल करने वाला मदारी-जग्लर) कहा है.

श्वेत पत्र में कहा गया है कि यात्री एवं माल आय में हुई वृद्धि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कारण संभव हुई जबकि किराया-भाड़ा न बढ़ाए जाने को एक मजाक बताते हुए पिछले दरवाजे से (बैल)गाडिय़ों को सुपरफास्ट का दर्जा देकर, वापसी आरक्षण शुल्क लगाकर, जिंसों की बार-बार कैटेगरी बदलकर, उच्च श्रेणी एवं तत्काल टिकटों में ज्यादा वसूली आदि के जरिए कई गुना यात्री एवं माल भाड़ा बढ़ाया गया. श्वेत पत्र में लालू के कार्य परिणामों को अपेक्षित मापदंड से नीचे बताया गया है. लालू की बहुप्रचारित थ्योरी को 'तथाकथित टर्न एराउंड' बताया गया है. जबकि इसमें एक बड़े 'कैटरिंग घोटाले' का संकेत देते हुए इसकी पुनरीक्षा किए जाने की सिफारिश की गई है. हालांकि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के हस्तक्षेप से श्वेत पत्र में पूर्व रेलमंत्री पर सीधे आक्षेप को टाला गया है, जिसके कारण श्वेतपत्र में लालू द्वारा रेलवे में महाप्रबंधक कोटे में एवं आरआरबी के माध्यम से करवाई गई हजारों अवैध भर्तियों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है, जबकि इस सारे मामले की सीबीआई जांच का आदेश खुद रेलमंत्री ममता बनर्जी ने ही दिया है. हालांकि कुछ विशेष निजी ऑपरेटरों को थोक में कैटरिंग लाइसेंस जारी किए जाने के मामले में किसी बड़े घोटाले का संकेत अवश्य दिया गया है.

इस श्वेत पत्र ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी संकुचित कर दिया है क्योंकि उन्होंने भी लालू की बंडलबाजी की तब काफी तारीफ की था. इससे आईआईएम/अहमदाबाद के नौटंकीबाज प्रोफेसरों का भी मुंह बंद हो जाएगा. इसके अलावा विवेक खरे जैसे राजनीतिक चापलूसों को भी इस श्वेत पत्र ने कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रखा, जिन्होंने तथाकथित 'लालूनामिक्स' पर उनकी चापलूसी करते हुए 'टर्न एराउंड स्टोरी ऑफ इंडियन रेलवेज' नामक एक पुस्तक लिखकर राजनीतिक चापलूसी की इंतहा कर दी थी. इस श्वेत पत्र ने लालू की वह सारी कथित विकास पुरुष की छवि को धोकर रख दिया है, जिसे उन्होंने रेलवे के सैकड़ों करोड़ रुपए फूंक कर बनाया था. इसी पर 'रेलवे समाचार' ने बार-बार यह लिखा था कि जो व्यक्ति 15 साल के लगातार शासन के बावजूद बिहार का विकास नहीं कर पाया, बल्कि कुनबे सहित पूरे प्रदेश को लूटकर उसे अपराध एवं आपराधिक माफियाओं का गढ़ बना दिया हो, जिसने अपहरण को राज्य में एक 'उद्योग' का दर्जा दे दिया हो, वह भारतीय रेल का क्या भला करेगा. यह भी सही साबित हुआ है और वस्तुस्थिति सामने है. तथापि जितना भी श्वेत पत्र में कहा गया है, वह राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए ही कहा गया है जबकि सच्चाई और भा. रे. की आर्थिक वस्तुस्थिति इससे कहीं ज्यादा खराब और भयानक है.

उपरोक्त तमाम वस्तुस्थितियों एवं श्वेत पत्र में उजागर हुए तथ्यों के आधार पर यदि यह कहा जाए कि 'अगर भा. रे. शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कोई निजी लिमिटेट कंपनी होती और ममता बनर्जी इसकी मुख्य कार्यकारी (सीईओ) होतीं तो कंपनी की असली आर्थिक स्थिति बयान करने के दावे के साथ लाए गए उनके श्वेत पत्र के बाद इस कंपनी के फौरन डूब जाने की नौबत आ गई होती. रेलवे के इस श्वेत पत्र में भा. रे. के आर्थिक स्वास्थ्य के बारे में जो टिप्पणियां की गई हैं, बंगलोर की सत्यम कंपनी और उसकी समकक्ष अमेरिकन लैहमैन ब्रदर्स के खातों में हुए भारी घोटालों की याद ताजा करने वाली हैं. परंतु आश्चर्यजनक रूप से रेलवे के इस महाघोटाले के बारे में देश के आर्थिक क्षेत्र में कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दे रही है. यहां तक कि जो इलेक्ट्रानिक मीडिया और कुछ जरखरीद चापलूस पत्रकार लालू को 'प्रबंधन गुरु' घोषित-प्रचारित करते हुए नहीं अघाते थे, उनके मुंह और कलम में भी ताला पड़ा हुआ है. यह एक अत्यंत विचित्र स्थिति है कि जो भी उठाईगीर राजनीतिज्ञ इस समाज देश को जड़ों को खोखला कर रहा होता है, पूरी सिस्टम को तोड़-मरोड़ कर सारी व्यवस्था को बरबाद करके उसे अपने व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक हित-स्वार्थ में इस्तेमाल कर रहा होता है, उसकी तह तक जाकर उसको समझने के बजाय वर्तमान मीडिया उसकी वाहवाही और चापलूसी करने में लग जाता है. जबकि यह अपने पेशे और प्राप्त संवैधानिक अधिकार के साथ इनकी सरासर धोखाधड़ी है. इस पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है.

यूपीए सरकार के पिछले कार्यकाल में लगभग हर साल रेलवे के जबरदस्त मुनाफे में रहने की बात खूब जोर-शोर से की जा रही थी और अपना अंतिम रेल बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पांच साल में करीब 90 हजार करोड़ रु. के मुनाफा कमाने की घोषणा संसद में बड़े गर्व के साथ की थी. लेकिन वर्तमान रेलमंत्री द्वारा लाए गए श्वेत पत्र में लालू के उक्त दावे को कोरी बकवास और सफेद झूठ बताया गया है. इसके अनुसार लालू के कार्यकाल में रेलवे का कामकाज वास्तव में बही-खातों को प्रस्तुत करने को जो नया तरीका अपनाया गया था, उसमें कुल प्राप्तियों में से खर्च और अन्य मदों में राशियों के बंटवारे को घटाए बिना ही सरप्लस की घोषणा कर दी जाती थी. श्वेत पत्र में ममता बनर्जी ने बताया है कि सही लेखा प्रक्रिया अपनाए जाने पर वर्ष 2004 से 2009 के दरम्यान कुल सरप्लस राशि 89 हजार करोड़ रुपए के बजाए सिर्फ 39500 करोड़ रु. थी, जिसकी बदौलत दुर्घटनाएं रोकने के लिए टक्कररोधी यंत्र लगाने जैसे जरूरी काम भी नहीं किये जा सकते हैं.

ममता के इस आरोप को मात्र दो रेलमंत्रियों के बीच व्यक्तित्वों के टकराव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. क्योंकि यहां यह मामला भारत सरकार की साख और उसके खजाने का है और इसे हलके में लेकर इतने सस्ते में नहीं निपटाया जा सकता. संसद में रेल बजट अलग से प्रस्तुत किया जाता है और उस पर वहां अलग से चर्चा होती है. क्या गलत एवं अमान्य लेखा प्रक्रिया और बही खातों के पारित होने की यह जिम्मेदारी अन्य संस्थाओं सहित रेलवे बोर्ड में लालू के तत्कालीन चापलूस रेल अधिकारियों पर भी आयद नहीं होती है?

भा. रे. न सिर्फ इस देश में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी उपक्रम है बल्कि देश के आर्थिक विकास में इसके कामकाज और कार्यप्रणाली की एक केन्द्रीय भूमिका है. भारत के संदर्भ में भा. रे. के बही-खातों में हुई किसी भी प्रकार की हेराफेरी और घपले का असर अमेरिका की एनरॉन से कई गुना ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है. लेकिन इस मामले में देश के आर्थिक क्षेत्रों में कहीं कोई बड़ी बेचैनी नजर नहीं आने का एक मतलब यह भी हो सकता है कि लालू और ममता के आकलनों में फर्क हकीकत से ज्यादा भाषा का हो, तथापि यदि यह मुहिम शुद्ध राजनीतिक भी है तो भी इस मामले में जो विसंगतियां उजागर हुई हैं और घपले की जो आशंकाएं पैदा हुई हैं, तो इन सबकी गहराई से और पूरी गंभीरता से जांच होनी चाहिए और इसको सही निष्कर्ष तक पहुंचाया जाना चाहिए. सिर्फ जबानी-जमाखर्च से अब काम नहीं चलेगा. लेखा प्रक्रिया के मानकों में फर्क होने की बात इस देश की कुछ निजी कंपनियों के संदर्भ में कई बार उजागर हो चुकी है, लेकिन यदि इस बीमारी का असर भारतीय रेल जैसे दीर्घकाय सरकारी संस्थान तक पहुंचने लगा तो हमारी सारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिल जाएगी.

1 comment:

Unknown said...

Dear tripathi ji,
I wants to know why rrb bhopal not completing the recruitment process . cat 20 asst loco pilot post published in 2007 and there is no progress even the document verification was completed of all the candidates . why there is not a responsible officer who atleast recieve a phone call and give a reason for delay in recruitment . but i think rrb's are becomes private property of mamta benarjee and other king size officers .it's so sad no command on those peoples whom giving stress to hardworking candidates . and making wrost image of railways .can i know,that three years is a short time to full fil vacancies ? they dont know that selected candidates are totaly confused about ther future they are totaly free (unemployed) since last three year because of only rrb's recruitment style. my all bad wishes to mamta benarjee who is playing with our future for only party's fund .