Monday 11 January, 2010

पियक्कड़ प्राचार्य की गतिविधियां

मुंबई : जैसा कि 'रेलवे समाचार' ने अपने पिछले अंक में लिखा था कि रेलवे स्कूल, कल्याण के प्राचार्य श्री जी. एस. पाठक की बाजारू गतिविधियों की जानकारी रेल प्रशासन को उपलब्ध कराई जाएगी, तो जो जानकारी प्राप्त हुई है, उसके अनुसार श्री पाठक के कैनरा बैंक खाता सं. 93743 से उनके पीने-पिलाने का जो भुगतान हुआ है, उसकी डिटेल्स चौंकाने वाली है. अब यह प्रशासन पर निर्भर करता है कि वह इस पियक्कड़ प्राचार्य की आय-व्यय के ब्यौरे को देखते हुए इसके खिलाफ क्या प्रशासनिक कार्रवाई करता है. इसकी तरफ तमाम अभिभावकों की नजरें लगी हुई हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार प्राचार्य के उक्त व्यक्तिगत बैंक खाते से 26/११ के आतंकी हमले के बाद प्रसिद्ध हुए लियोपोल्ड कैफे में पीने के लिए दि. 10.9.07 को 674 रु., होटल अभिनव बियर बार एंड रेस्टॉरेंट, कल्याण में खाने -पीने के लिए दि. 10.9.09 को 590 रु. दि. 14.9.07 को 885 रु. दि।26.10.07 को 688 रु. और शेरे पंजाब बार एंड रेस्टॉरेंट में दि. 17.9.०७ को 1134 रु., महेश लंच होम में दि. 24.0.07 को 910 रु., जे.के. वाइन्स, कल्याण को दि. 5.11.07 को 300 रु. का भुगतान किया गया है. इसके अलावा इसी खाते से दि. 28.9.07 को 85000 रु. (चेक नं 848701) इटारसी के लिए ट्रांसफर किया गया है.

ज्ञातव्य है कि प्राचार्य का कुल मासिक वेतन लगभग 20-21 हजार रु. है. इसके बावजूद वह तमाम सारा उपरोक्त ट्रांजेक्शन अपनी ज्ञात आय से कैसे कर सकते हैं? जबकि बंैक खाते में न्यूनतम बकाया (मिनिमम बैलेंस) रख पाने के लिए बंैक ने उन पर एक साल के दरम्यान लगातार पांच बार 20-20 रु. की पेनाल्टी लगाई है. यह पेनाल्टी क्रमश: दि। 31.12.07, 31.3.08, 30.4.08,31.5.08 और 30.6.08 को बैंक ने लगाई है. अब सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति लगातार चार महीनों तक अपने बैंक खाते में बैंक की शर्त के अनुसार न्यूनतम बकाया नहीं रख पाया, उसके पीने-पिलाने के शौक और दैनिक खर्चों की भरपाई कहां से होती रही?

यही नहीं खाते में दि. 21.2.08 को 17000 रु., दि. 2.4.08 को 15500 रु., दि. 12.4.08 को 30,000 रु. दि. 21.4.08 को 10,000 रु. नकद जमा किए गए हैं. यह नकद राशि कहां से आई, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि जो खाताधारी (प्राचार्य) अपने खाते में न्यूनतम बैलेंस नहीं रख पाया उसके पास यह नकदी कहां से आई. इसके अलावा चेक नं. 00117205 के माध्यम से 21750 रु. और जमा हुए हैं. यह किस मद से प्राचार्य के खाते में आए. इसकी विस्तृत जांच किए जाने की जरूरत है.

इसके अलावा इस महाभ्रष्ट प्राचार्य की इटारसी रेलवे स्कूल में की गई अवैध गतिविधियों की भी जानकारी मिली है. इटारसी में केजी सेक्शन के लिए प्राचार्य ने 50 रु. प्रतिमाह फीस लेना शुरू किया था, जिसे उनके बाद आए प्राचार्य नवीन चतुर्वेदी ने घटाकर 20 रु. कर दिया था. इसके अलावा बच्चों को वहां भी इस प्राचार्य द्वारा जो परिचय पत्र 25 रु. में बेचे जाते थे, उन्हें मुफ्त में दिया गया. कैलेंडर जो 25 रु. में प्राचार्य द्वारा बच्चों के बेचा जाता था, उसे 13 रु. कर दिया गया. लाइब्रेरी के लिए इस प्राचार्य द्वारा सड़क/फुटपाथ से पुरानी किताबें खरीदकर हर बार 15-20 हजार रु. के फर्जी बिल प्रस्तुत करके स्कूल का फंड हड़पा जाता था.

इटारसी में इस प्राचार्य द्वारा बच्चों से जो कम्प्यूटर फीस प्रतिमाह 30 रु. ली जाती है, उनके बाद आए प्राचार्य श्री चतुर्वेदी ने उसे घटाकर मात्र 12 रु. किया था. इटारसी में लगातार 8 साल तक रहकर इस प्राचार्य ने सामूहिक नकल, एडमीशन, टीसी, अटेंडेंस आदि के मेनीपुलेसन का पूरा धंधा खोल रखा था. यहीं नहीं वरिष्ठ होने के बावजूद नवीन चतुर्वेदी को अपनी चालबाजियों की बदौलत यह प्राचार्य कुर्दूवाड़ी रेलवे स्कूल के प्राचार्य पद से हटवाने में भी सफल रहा था.

यही नहीं बताते हैं कि तब सोलापुर के तत्कालीन डीआरएम का विश्वासपात्र बनकर इस प्राचार्य ने अपनी महाचालू पत्नी, जो कि तब डब्ल्यूएसएससी का कामकाज देखने के लिए प्रभारी बना दी गई थी, के साथ मिलकर दब्ल्यूयेसयेससी के नाम की फर्जी रसीद बुक्स और फार्म छपवाकर बड़ा घोटाला किया था. जांच करने वाली बात यह है कि अध्यापन जैसे विशिष्ट सामाजिक उन्नति के कार्य में लगे इस प्राचार्य को दारू पीने का लाइसेंस है कि नहीं, और सड़क के किनारे अंधेरे में गाड़ी खड़ी करके पराई औरतों के साथ अश्लील स्थितियों में देखे जाने का सर्टिफिकेट कहां से मिला और किसने दिया? इस महाभ्रष्ट प्राचार्य को इस बात की भी छूट नहीं दी जा सकती है कि इसे पूर्व में पीटीए कमेटी में पारित प्रस्तावों की जानकारी नहीं थी. क्योंकि इसके यहां ज्वाइन करने के तुरंत बाद भी जो पीटीए कमेटी की मीटिंग हुई थी, उसमें भी इसकी उपस्थिति में यह प्रस्ताव पारित हुआ था, जिसमें इसके भी हस्ताक्षर हैं, और इसकी सहमति के जिस मीटिंग में 500 रु. की राशि बढ़ाकर 1000 रु. कर दी गई इन मीटिंग लिखित मिनिट्स में दर्ज हैं कि 500 रु. के ज्यादा कि किसी भी राशि का भुगतान चेक के माध्यम से ही किया जाएगा, इसमें इस बात की छूट अवश्य थी कि उन्हें भुगतान नकद किए जा सकते हैं, जिनके पास रसीद देने या बैंक खाता रखने की सुविधा नहीं है. जिसमें चाय वाला, जूस वाला, छोटी स्टेशनरी, झेरॉक्स आदि छोटे-मोटे मद शामिल हैं. यही प्रस्ताव दि. 28.7.2000 को पूर्व प्राचार्य की अध्यक्षता में भी पारित किया गया था जो कि लिखित में मौजूद है.

स्कूल के अध्यापकों का कहना है कि क्या इस प्राचार्य ने सिर्फ चोरी करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं सीखा है, क्योंकि यह सारे प्रस्ताव प्राचार्य की उपस्थिति में और हस्ताक्षर से पारित होने और लिखित में कार्यालय में ही मौजूद होने के बावजूद प्राचार्य द्वारा 500-1000 रु. से कम या ज्यादा की राशियों का हस्तांतरण नकदी में क्यों किया जाता रहा है? इसकी गहराई से छानबीन आवश्यक है. क्योंकि कल्याण रेलवे स्कूल में आने के बाद पीटीए की आय को हड़पने और अवैध आय के असीमित साधन देखकर प्राचार्य अपने आप पर काबू नहीं रख पाए. उन्होंने यहां भी वह सारी उठाईगीरी करने की कोशिश की जो वह इससे पहले दौंड, कुर्दुवाड़ी, सोलापुर, कटनी और इटारसी में कर चुके थे. इटारसी में साइंस लैब को इस प्राचार्य ने दारू का अड्डा बना दिया था. वहां के बच्चे तो खुलेआम कहते सुने जाते थे कि 'एक खम्भा' जैसे ही पाठक की टेबल पर ठोकेंगे, पास हो जाएंगे.'

इन तमाम मुद्दों के मद्देनजर यदि रेल प्रशासन द्वारा इस भ्रष्ट प्राचार्य जी. एस. पाठक और इनकी संरक्षक रही पूर्व सीनियर डीपीओ श्रीमती रीता हेमराजानी, जिन्होंने विश्व अध्ययन नक्शे में पहुंच चुके इस रेलवे स्कूल को पूरी तरह बरबाद करने में भ्रष्ट प्राचार्य का साथ दिया, दोनों को यदि कम्पल्सरी रिटायरमेंट देकर घर नहीं भेजा जाता है, तो इस मामले को जनहित याचिका के तौर पर अदालत में ले जाया जाएगा. इसके बाद शीघ्र ही श्रीमती हेमराजानी के कम्प्यूटर बिजनेस सहित उनकी तमाम अवैध गतिविधियों से रेल प्रशासन को अवगत कराया जाएगा.

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