Monday 11 January, 2010

रेलवे विजिलेंस की समझदारी

5 हजार डेमरेज माफ करने के लिए 25
हजार की रिश्वत लेने का मामला बनाया

बिलासपुर : .पू..रे. विजिलेंस का कमाल यह है कि एक अधिकारी द्वारा ही दूसरे अधिकारी के खिलाफ खुन्नस में की गई शिकायत पर बिना अपने दिमाग का इस्तेमाल किए संबंधित अधिकारी को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट पकड़ा दी है. यही नहीं एक घायल वाणिज्य स्टाफ की थोड़ी वित्तीय मदद करवाने के लिए भी उसके खिलाफ केस बना दिया गया जबकि 5000 रु. का डेमरेज माफ करने के लिए कोई अधिकारी 25000 रु. की मांग करेगा और पार्टी यह मांग मान लेगी, इस पर शायद कोई बेवकूफ आदमी भी भरोसा नहीं करेगा. मगर .पू..रे. विजिलेंस के
अधिकारियों ने इस बेवकूफाना शिकायत, जो कि कथित घटना के 4-5 साल बाद की गई, पर भरोसा किया है, तो इसे क्या कहा जाना चाहिए?

डिप्टी सीसीएम/.पू..रे. केवीआर मूर्ति के अनुसार जब नागपुर डिवीजन, .पू..रे. में वह बतौर डीसीएम पदस्थ थे, उस समय सीनियर डीसीएम के पद पर मनोज सिंह हुआ करते थे, जो कि अब पुन: सीनियर डीओएम के पद पर 2-3 महीने पहले नागपुर में पदस्थ हो गए है. बताते हैं कि उस समय श्री सिंह की कोई टसल श्री मूर्ति से हो गई थी, जिसके चलते श्री मूर्ति को मुख्यालय शिफ्ट कर दिया गया था. श्री मूर्ति के अनुसार मनोज सिंह ने कई साल पुराने एक मामले में मूर्ति के खिलाफ एक पार्टी का 5000 रु. का डेमरेज माफ करने के लिए 25000 रु की रिश्वत लेने की फर्जी शिकायत विजिलेंस को भेज दी. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही मनोज सिंह ने उनके खिलाफ एक और शिकायत की कि उन्होंने बुकिंग क्लर्कों से 5000 रु. इकट्ठा करवाकर अपनी जेब में रख लिया. जबकि श्री मूर्ति का कहना है कि कालम्ना स्टेशन पर कार्यरत एक बुकिंग क्लर्क सुते को किन्हीं आपराधिक तत्वों द्वारा चाकू मारकर बुरी तरह घायल करने और अस्पताल में भर्ती होने पर उसकी मदद के लिए सभी बुकिंग क्लर्कों ने मिलकर 5000 रु. जमा किया था जो कि उनके सामने सुते के साथ कार्यरत एक अन्य बुकिंग क्लर्क सदावर्ते को सौंपे गए थे, कि वह सुते का स्टाफ की यह मदद शुभकामनाओं के साथ पहुंचा दे. श्री मूर्ति ने कहा कि उन्होंने तो उक्त रकम को हाथ भी नहीं लगाया था.

श्री मूर्ति ने बताया कि मनोज सिंह ने इसकी फर्जी शिकायत विजिलेंस से करते हुए कहा कि उक्त राशि मूर्ति ने स्वयं रख ली. यही नहीं बतौर सीनियर डीसीएम मनोज सिंह ने सीपीएस .एन. शर्मा जैसे अपने पालतुओं से उनके खिलाफ विजिलेंस को बयान भी दिला दिया कि उक्त एकत्रित राशि मूर्ति ने रख ली. उन्होंने बताया कि चूंकि उनका तबादला मुख्यालय में हो चुका था और निकट भविष्य में उनके मंडल में वापस आने की कोई संभावना नहीं थी, इसलिए सीनियर डीसीएम मनोज सिंह को ही अपना माई-बाप मानकर स्टाफ ने वही किया जो उन्होंने कहा. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने समकक्ष अधिकारी को फर्जी मामलों में फंसा सकता है, वह मातहत स्टाफ के साथ क्या-क्या बर्ताव कर सकता है. इसका अंदाज स्टाफ को हो चुका था.

श्री मूर्ति ने कहा कि मनोज सिंह की छवि अत्यंत खराब है. बतौर सीनियर डीसीएम नागपुर में पिछले कार्यकाल में इतवारी के एक स्कूटर स्टैंड कांट्रैक्टर के साथ पैसे के लेन-देन को लेकर मनोज सिंह का झगड़ा हुआ था, जिसकी एफआईआर भी पुलिस में दर्ज है. भ्रष्टाचार और दुव्र्यवहार के लिए उन्हें नागपुर से हटाकर दो साल पहले रायपुर मंडल में समान पद भेज दिया गया था. उन्होंने बताया कि वहां भी श्री सिंह ने इसी तरह की हरकतें कीं, तब फिर से उन्हें नागपुर में ही वापस लाकर सीनियर डीओएम बना दिया गया है.

श्री मूर्ति ने बताया कि मनोज सिंह ने अपने पिछले कार्यकाल के समय से ही नागपुर में सीपीएस .एन. शर्मा एवं टीसी संजय और स्टेनोग्राफर जैसे कुछ पालतू दलाल पाल रखे हैं. पता चला है कि उन्होंने शर्मा के माध्यम से कामटी रोड, नागपुर में अपने एक रिश्तेदार के नाम से एक बड़ी प्रापर्टी भी खरीदी है. उनके बैंक एकाउंट की देखभाल उनका पुराना स्टेनोग्राफर किया करता था. उन्होंने कहा कि बताते हैं कि रायपुर पोस्टिंग के दौरान इधर इसी स्टेनोग्राफर ने उनके बैंक एकाउंट से करीब 6 लाख से ज्यादा की रकम निकालकर हजम कर गया है. तथापि मनोज सिंह ने इसकी एफआईआर अब तक भी पुलिस में दर्ज नहीं कराई है. जबकि इस बारे में सिंह का कहना है कि उन्होंने यह राशि लोन लेकर रखी थी, जिसका एक प्रापर्टी खरीद के सिलसिले में बिल्डर को भुगतान किया जाना था. इस संबंध में 'रेलवे समाचार' ने पहले भी एक खबर प्रकाशित की है.

श्री मूर्ति ने बताया कि इसके अलावा मनोज सिंह हाजीपुर, बोकारो, चक्रधरपुर यानी जहां-जहां रहे हैं, वहां-वहां विवाद पैदा किए हैं और इन्हीं विवादों के चलते हर बार उन्हें हटाया गटा है. उन्होंने बताया कि श्री सिंह हमेशा अपने साथ एक लाइसेंसी रिवाल्वर रखते हैं. एक स्टाफ को उन्होंने अपने चेंबर में बुलाकर अपना रिवाल्वर दिखाकर और यह कहते धमकाया था, कि इसी से तेरी... में सब गोली उतार दूंगा. इसके बावजूद प्रशासन उन्हें मुख्यालय अथवा गैरकार्यकारी पोस्ट पर रखने के बजाय बार-बार डिवीजनल सेंसिटिव पोस्टिंग दे रहा है. उन्होंने कहा कि यह तक फर्जी और बचकानी शिकायतें करने के लिए निर्धारित नियमों के तहत उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

संपर्क करने पर इस संबंध में श्री मनोज सिंह ने कहा कि जो भी शिकायत थी, वह स्टाफ की थी और इस देश में अभी इतनी धांधली नहीं है कि बिना किसी आधार के कोई चार्जशीट किसी को थमा दी जाए. उन्होंने कहा कि हम कैसे हैं, यह प्रशासन को भी ज्ञात है. यह पूछे जाने पर कि बैंक से उसका जो पैसा निकल गया था, क्या वह मिल गया है, उन्होंने बताया कि हां, बैंक ने स्वयं उसकी भरपाई की है, क्योंकि हमारा क्लेम तो बैंक पर था. पुलिस की भी यही एडवाइस थी. उन्होंने बताया कि अब बैंक वाले इस मामले की जांच करा रहे हैं कि पैसा आखिर कौन निकालकर ले गया. उन्होंने अपनी विवादास्पद छवि और अन्य आरोपों के बारे में पूछने पर बताया कि हम कोई अपने घर का तो काम नहीं कर रहे हैं, रेल का सरकार का काम कर रहे हैं, तो सरकारी हितों को नुकसान पहुंचने से यदि रोकने के लिए मुझे विवादित किया जाता है तो उसके लिए मैं क्या कर सकता हूं. यदि ऐसी कोई बात होती तो क्या प्रशासन या विजिलेंस हमें अब तक बख्स देता? उन्होंने यह भी कहा कि श्री मूर्ति कितने शरीफ हैं. यह यहां के स्टाफ से जाना जा सकता है और यदि वह खुद उनके बारे में बताएंगे तो सबकी आंखें फटी रह जाएंगी.

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