सभी आरआरबी चेयरमैनों को एकसाथ
हटाना बेहद क्रूर और विवादस्पद निर्णय
आखिर रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने सभी २० आरआरबी चेयरमैनों को एकसाथ हटाने का आदेश ५ नवम्बर को जारी कर दिया. रेलमंत्री का यह निर्णय एक बेहद क्रूर और विवादास्पद निर्णय माना जा रहा है. जबकि होना तो यह चाहिए था कि यदि उन्हें इन चेयरमैनों को हटाना ही था तो सर्वप्रथम उन्हें हटाया जाता जिनका कार्यकाल पूरा हो गया था, फिर इसके बाद दूसरी लात में उन्हें हटाया जाता जिनका कार्यकाल पूरा होने वाला था. इस प्रकार इस मिड टर्म में इन अधिकारियों के बच्चों कि पढाई बर्बाद होने से बच जाती. क्योंकि इन अधिकारियों में अधिकाँश को तो अभी आरआरबी में पदस्थ हुए एक साल भी नहीं पूरा हुआ था.
इसके अलावा इन अधिकारियों का यह असमय ट्रान्सफर किसी भी नियम - कानून के अनुरूप भी नहीं है. सिर्फ इस आशंका या आरोप के चलते इन सभी अधिकारियों को एकसाथ हटा देना कतई उचित नहीं कहा जा सकता कि ये सब पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदमी थे. अब यदि इनमें से कोई एक भी अधिकारी रेलमंत्री के इस क्रूर निर्णय को थोड़ी सी हिम्मत दिखाकर अदालत में चुनौती दे दे तो रेल मंत्रालय को लेने के देने पड़ सकते हैं.
हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस सब कारगुजारी के पीछे त्रिन मूल कांग्रेस के एक सांसद मुकुल राय का हाथ है. सबसे पहले उन्होंने ईडी/आरआरबी के पद से श्री आनंद माथुर को हटवाया जो कि इस पद पर अभी मुश्किल से ६ महीने पहले ही पदस्थ हुए थे. अब इस पद पर जिन्हें लाया गया है एक तो वह स्टोर सर्विस के हैं दूसरे उनकी छवि भी बहुत अच्छी नहीं बताई जाती है. इसके अलावा नए पदस्थ किये गए चेयरमैनों में आईआरपीएस सर्विस के मात्र ३ अधिकारियों को ही लिया गया है जबकि इससे पहले जो निर्णय हुआ था इसके अनुसार आरआरबी चेयरमैनों के पद पर ज्यादातर आईआरपीएस सर्विस के अधिकारियों को ही पदस्थ किया जाना था.
इससे पहले जब १९ अक्तूबर को १८ आरआरबी चेयरमैनों को शिफ्ट करने कि फाइल मूव कि गयी थी तब 'रेलवे समाचार' ने इस बारे में सीआरबी सहित सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड और सभी बोर्ड मेम्बरों को मोबाइल सन्देश भेजकर ऐसा कोई विवादास्पद निर्णय न लेने तथा उपरोक्त तरीके से चेयरमैनों को हटाने के बारे में अविलम्ब रेलमंत्री के संज्ञान में यह मामला लाये जाने के लिए सभी बोर्ड मेम्बरों को अवगत कराया था। जिसके परिणाम स्वरुप तब यह मामला स्थगित कर दिया गया था. ५ अक्तूबर को जिस दिन यह फाइल पुनः रेलमंत्री के एपीएस श्री गौतम सान्याल को भेजी गयी थी उस दिन भी 'रेलवे समाचार' ने ऐसा ही एक सन्देश भेजकर सभी बोर्ड मेम्बरों को अवगत कराया था. मगर जिनकी इस मामले में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बनती है जब वह मेंबर स्टाफ स्वयं मेंबर ट्रेफिक बनने के ख्वाब में अपनी सारी हड्डियों को दोहरा करते हुए साष्टांग हुए जा रहे हों तब सिस्टम को चौपट होने से कौन बचा सकता है?
सुश्री ममता बनर्जी ने रेलमंत्री का पद ग्रहण करने के तुंरत बाद मीडिया को दिए गए अपने पहले बयान में कहा था कि वह रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन करेंगी और सीआरबी तथा सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड को भी हटा सकती हैं. इनमें से वह किसी को भी नहीं हटा पायीं, क्योंकि सीआरबी पर पीएमओ का और सेक्रेटरी पर लालू का ठप्पा लगा हुआ है. जबकि सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड के पद पर बैठा अधिकारी न सिर्फ कई अधिकारियों से जूनियर है बल्कि महाभ्रष्ट भी है, इस बात से न सिर्फ सभी रेल अधिकारी वाकिफ हैं बल्कि स्वयं रेलमंत्री भी अब इस तथ्य से भली - भांति अवगत हैं. इससे पहले 'रेलवे समाचार' भी सेक्रेटरी के भ्रष्टाचार और उनका लालू का पिट्ठू होने के सारे तथ्य विस्तार से प्रकाशित कर चुका है.
रेलमंत्री ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की अपनी राजनीति से फुर्सत नहीं है जबकि बोर्ड में पदस्थ उनके तमाम सिपहसालार रेलवे की तमाम तकनीकी कार्य प्रणाली से नावाकिफ हैं. तथापि सुश्री ममता बनर्जी रेल मंत्रालय को पार्ट टाइम ही चलाना चाहती हैं, जो कि नामुमकिन है. इसलिए यदि चारों तरफ लगातार रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं और इससे सुश्री ममता बनर्जी की 'क्षणिक बुद्धि' छवि और भी ज्यादा ख़राब हो रही है तो उसका दोष स्वयं ममता बनर्जी पर ही जा रहा है. रेलमंत्री का अपने रेल मंत्रालय की तरफ ध्यान न देने का ही परिणाम है की रेलवे में चारों तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो रहा है.
हटाना बेहद क्रूर और विवादस्पद निर्णय
आखिर रेलमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने सभी २० आरआरबी चेयरमैनों को एकसाथ हटाने का आदेश ५ नवम्बर को जारी कर दिया. रेलमंत्री का यह निर्णय एक बेहद क्रूर और विवादास्पद निर्णय माना जा रहा है. जबकि होना तो यह चाहिए था कि यदि उन्हें इन चेयरमैनों को हटाना ही था तो सर्वप्रथम उन्हें हटाया जाता जिनका कार्यकाल पूरा हो गया था, फिर इसके बाद दूसरी लात में उन्हें हटाया जाता जिनका कार्यकाल पूरा होने वाला था. इस प्रकार इस मिड टर्म में इन अधिकारियों के बच्चों कि पढाई बर्बाद होने से बच जाती. क्योंकि इन अधिकारियों में अधिकाँश को तो अभी आरआरबी में पदस्थ हुए एक साल भी नहीं पूरा हुआ था.
इसके अलावा इन अधिकारियों का यह असमय ट्रान्सफर किसी भी नियम - कानून के अनुरूप भी नहीं है. सिर्फ इस आशंका या आरोप के चलते इन सभी अधिकारियों को एकसाथ हटा देना कतई उचित नहीं कहा जा सकता कि ये सब पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदमी थे. अब यदि इनमें से कोई एक भी अधिकारी रेलमंत्री के इस क्रूर निर्णय को थोड़ी सी हिम्मत दिखाकर अदालत में चुनौती दे दे तो रेल मंत्रालय को लेने के देने पड़ सकते हैं.
हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इस सब कारगुजारी के पीछे त्रिन मूल कांग्रेस के एक सांसद मुकुल राय का हाथ है. सबसे पहले उन्होंने ईडी/आरआरबी के पद से श्री आनंद माथुर को हटवाया जो कि इस पद पर अभी मुश्किल से ६ महीने पहले ही पदस्थ हुए थे. अब इस पद पर जिन्हें लाया गया है एक तो वह स्टोर सर्विस के हैं दूसरे उनकी छवि भी बहुत अच्छी नहीं बताई जाती है. इसके अलावा नए पदस्थ किये गए चेयरमैनों में आईआरपीएस सर्विस के मात्र ३ अधिकारियों को ही लिया गया है जबकि इससे पहले जो निर्णय हुआ था इसके अनुसार आरआरबी चेयरमैनों के पद पर ज्यादातर आईआरपीएस सर्विस के अधिकारियों को ही पदस्थ किया जाना था.
इससे पहले जब १९ अक्तूबर को १८ आरआरबी चेयरमैनों को शिफ्ट करने कि फाइल मूव कि गयी थी तब 'रेलवे समाचार' ने इस बारे में सीआरबी सहित सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड और सभी बोर्ड मेम्बरों को मोबाइल सन्देश भेजकर ऐसा कोई विवादास्पद निर्णय न लेने तथा उपरोक्त तरीके से चेयरमैनों को हटाने के बारे में अविलम्ब रेलमंत्री के संज्ञान में यह मामला लाये जाने के लिए सभी बोर्ड मेम्बरों को अवगत कराया था। जिसके परिणाम स्वरुप तब यह मामला स्थगित कर दिया गया था. ५ अक्तूबर को जिस दिन यह फाइल पुनः रेलमंत्री के एपीएस श्री गौतम सान्याल को भेजी गयी थी उस दिन भी 'रेलवे समाचार' ने ऐसा ही एक सन्देश भेजकर सभी बोर्ड मेम्बरों को अवगत कराया था. मगर जिनकी इस मामले में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बनती है जब वह मेंबर स्टाफ स्वयं मेंबर ट्रेफिक बनने के ख्वाब में अपनी सारी हड्डियों को दोहरा करते हुए साष्टांग हुए जा रहे हों तब सिस्टम को चौपट होने से कौन बचा सकता है?
सुश्री ममता बनर्जी ने रेलमंत्री का पद ग्रहण करने के तुंरत बाद मीडिया को दिए गए अपने पहले बयान में कहा था कि वह रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन करेंगी और सीआरबी तथा सेक्रेटरी, रेलवे बोर्ड को भी हटा सकती हैं. इनमें से वह किसी को भी नहीं हटा पायीं, क्योंकि सीआरबी पर पीएमओ का और सेक्रेटरी पर लालू का ठप्पा लगा हुआ है. जबकि सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड के पद पर बैठा अधिकारी न सिर्फ कई अधिकारियों से जूनियर है बल्कि महाभ्रष्ट भी है, इस बात से न सिर्फ सभी रेल अधिकारी वाकिफ हैं बल्कि स्वयं रेलमंत्री भी अब इस तथ्य से भली - भांति अवगत हैं. इससे पहले 'रेलवे समाचार' भी सेक्रेटरी के भ्रष्टाचार और उनका लालू का पिट्ठू होने के सारे तथ्य विस्तार से प्रकाशित कर चुका है.
रेलमंत्री ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की अपनी राजनीति से फुर्सत नहीं है जबकि बोर्ड में पदस्थ उनके तमाम सिपहसालार रेलवे की तमाम तकनीकी कार्य प्रणाली से नावाकिफ हैं. तथापि सुश्री ममता बनर्जी रेल मंत्रालय को पार्ट टाइम ही चलाना चाहती हैं, जो कि नामुमकिन है. इसलिए यदि चारों तरफ लगातार रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं और इससे सुश्री ममता बनर्जी की 'क्षणिक बुद्धि' छवि और भी ज्यादा ख़राब हो रही है तो उसका दोष स्वयं ममता बनर्जी पर ही जा रहा है. रेलमंत्री का अपने रेल मंत्रालय की तरफ ध्यान न देने का ही परिणाम है की रेलवे में चारों तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो रहा है.
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