Sunday, 1 November 2009

एनडबल्यूआर में एसी यूनिट्स

हायरिंग में लाखों का घोटाला

जयपुर : उत्तर पश्चिम रेलवे के चारों डिविजन एसी हायरिंग टेंडर्स में लाखों के घपले की शिकायत मिली है. जयपुर, अजमेर, जोधपुर, बीकानेर मंडलों में हर साल लाखों के ठेके दिए जाते हैं. क्योंकि हायरिंग में देने से रेलवे की मेंटिनेंस, रिपेयर आदि बच जाती है तथा स्टाफ की ज़रुरत भी नहीं रहती. ठेकेदार अपने खर्चे से एसी यूनिट्स लगाता है, उसे मेन्टेन करता है, अपना आदमी लगाता है तथा रेलवे से इसके बदले किराया चार्ज करता है और नियत अवधि के बाद एसी वापस ले जाता है. इस व्यवस्था से रेलवे को भी फायदा होता है क्योंकि न तो उसे एक साथ पैसे खर्च करके एसी लगाने पड़ते हैं और न मेंटेनेंस की झंझट रहती है. और ठेकेदार इसलिए खुस क्योंकि उसे अपना इनवेस्टमेंट इंटेरेस्ट सहित वापस मिल जाता है.

यहाँ तक तो ठीक है लेकिन जो बात सामने आई है वह यह है की रेलवे ठेका तो देती है नियम कायदे अनुसार लेकिन नीचे लेवल पर मिलीभगत से रेलवे को बराबर चूना लगाया जा रहा है और किसी को कोई खबर नहीं. यही तो आश्चर्य है ?

होता ये है की रेलवे रेट एक्सेप्ट करती है उसमे एक निश्चित स्पेसिफिकेशन होता है . जैसे की अगर १.५ टन विण्डो एसी लगाना है तो वो आईएस १३९१ पार्ट १ के अनुसार होगा और अगर २ टन स्प्लिट एसी लगाना है तो वो आईएस १३९१ पार्ट २ के अनुसार होगा . इन स्पेसिफिकाशन्स के एसी बाज़ार में डायरेक्ट उपलब्ध नहीं हैं तथा इन्हें स्पेशल आर्डर देकर बनवाना पड़ता है . चूँकि ठेकेदार को पैसे कमाना है इसलिए वो बाज़ार में उपलब्ध एसी जो उसे सस्ते में मिल जाते हैं उसे लगाता है और पैसे ओरिजनल के लेता है . अब कौन जाके वेरीफाई करे की जो माल लगा है वो स्पेसिफिकेशन के अनुसार है या नहीं, सबको सेफ या सही मटीरियल्स से क्या लेना देना . ठंडी हवा तो आ रही है चाहे वह कम हो या ज्यादा . क्या फर्क पड़ता है...?

ये बात तब उजागर हुई जब विजिलेंस ने जयपुर डिविजन का एक केस बनाया लेकिन विजिलेंस जाँच में इस बात का जिक्र ही नहीं किया गया बल्कि और दूसरी बिना मतलब की बातों का केस बनाया गया . कई तथ्य गायब कर दिए गए ताकि केस बन सके . अगर सही स्पेसिफिकेशन्स की बात होती तो विजिलेंस ऑफिसर खुद फँस जाते क्योंकि वह खुद अपने सीनियर डीईई के कार्यकाल में घटिया एसी लगवाकर ठेकेदार को फायदा करवा चुके थे . अब चूँकि विजिलेंस ऑफिसर ने खुद गलती की तो केस कैसे बने...? केस बनाना था की घटिया एसी लगवाकर बिल क्यों पास किये गए लेकिन उल्टा केस बना दिया की एसी कम कीमत के थे और ज्यादा पैसा दिया गया . ये बात और है की जिस अफसर ने जयपुर डिविजन का केस बनाया उसने अपने सीनियर डीईई, बीकानेर के टेनोर में उसी पीरियड में जो रेट दिए वह जयपुर डिविजन के रेट से ज्यादा थे लेकिन विजिलेंस ऑफिसर के खिलाफ भी कभी केस बनता है क्या ?

अपने अफसर को बचाने में पड़ी विजिलेंस कंपनी की बात मानने को तैयार नहीं जिसने लिखकर दे दिया है की रेलवे में सप्लाई किये गए एसी आईएस के अनुसार नहीं हैं . क्योंकि अगर ये बात सिद्ध हो जाती है तो फंसे हुए अफसर छूट जायेंगे और छूटे हुए अफसर फँस जायेंगे जेसमे विजिलेंस के लोग भी शामिल हैं . अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे...?

मजे की बात यह है की इन्क्वायरी ऑफिसर को भी यह समझा दिया गया है की एसी सही है अब चूँकि आईओ ट्रैफिक डिपार्टमेंट के हैं तो उनको यह बारीकियाँ कैसे समझ आयेंगी . चूँकि विजिलेंस इसमें गलत इन्वेस्टिगेशन करके फंसा हुआ है इसलिए सही बात का पता कैसे लगे . इन नासमझों के कारण रेलवे को लगातार नुकसान होता जा रहा है जो अब लाखों में पहुँच चूका है .

विजिलेंस इस डर से चुप है की अगर जाँच करें तो नए केस खुलेंगे और पुराने केस बंद हो जायेंगे क्योंकि पुराना केस ही गलत ढंग से कुछ अफसरों को फंसाने के लिए बनाया गया है . जिसके प्रमाणित होने से रेलवे बोर्ड नाराज होगा वो अलग .

साथ ही एक बात और भी सामने आई है की विजिलेंस में सक्षम ऑफिसर हैं ही नहीं तो इन्क्वायरी कौन करेगा . जो हैं रेलवे बोर्ड और सीवीसी के पिट्ठू हैं . न समझने को तैयार न कुछ करने को तैयार . नुकसान रेलवे का उन्हें क्या फर्क पड़ता है .

Ref: 1. Jaipur division Case No. EL/118/556/W6/TF dated:23/03/2004.

2. Bikaner Division Case No. 3/EL/BKN/Tender/2004/2005 dated 12/07/2004

3. Ajmer Division Case No. EL/50/15/2004/2005 dated 1/04/2005.

इन सभी मामलों के साथ स्पेसिफिकेशन भी देखे जायें.

ऐसे भ्रष्ट अफसरों के विरूद्व तुंरत रेलवे बोर्ड कार्रवाई करे तथा इस तरह के भ्रष्टाचार करने वालों को सजा दे, चाहे वह विजिलेंस का आदमी ही क्यों न हो .

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