Tuesday, 30 June 2009

ममता बनर्जी को रेल बजट से फुर्सत नहीं
अपने विश्वासपात्रों के माध्यम
से रेलवे को
आज भी चला रहे
हैं
लालू


नयी दिल्ली : वैसे तो रेलमंत्री का पदभार कोलकाता में ग्रहण करने के बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि वह रेलवे बोर्ड में कई बदलाव करेंगी और यहां तक चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को भी हटा सकती हैं. परंतु अब तक उन्हें यही पता नहीं चल पाया होगा कि वास्तव में रेलवे में क्या हो रहा है, कौन कितनी गहराई में है और कौन किसके प्रति समर्पित है तथा कौन अधिकारी किसका विश्वासपात्र है अथवा रहा है.
अब जब पदभार संभालते ही ममता बनर्जी को रेल बजट की तैयारी करने तथा साथ ही . बंगाल की राजनीतिक समस्याओं से भी दो-चार होना पड़ रहा है और रेलभवन में बैठने तथा अधिकारियों के चरित्र एवं व्यवहार को समझने का अब तक उन्हें समय नहीं मिल पाया है. ऐसे में रेल मंत्रालय के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि आज भी पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद ही अपने खास और अपने प्रति समर्पित तथा अपने विश्वासपात्र एवं अपने से लाभान्वित रहे कुछ खास अधिकारियों के माध्यम से रेलवे को चला रहे हैं सूत्रों का कहना था कि इन्हीं में से एक हैं श्री के. बी. एल. मित्तल. जो कि वर्तमान में सेक्रेटरी/रेलवे बोर्ड हैं और परिवार सहित आजकल स्पेन में रेलवे के खर्च पर पिकनिक मना रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि लालू के विश्वासपात्र रहे यह कुछ अधिकारी वर्तमान में जोनल रेलों एवं रे.बो. में अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हैं, जहां कि उन्हें लालू बैठा गये हैं. इन्हीं के माध्यम से लालू आज भी भारतीय रेल को चला रहे हैं. उनका कहना है कि यह धारणा ममता बनर्जी के लगातार कोलकाता में बने रहने से रेल अधिकारियों में मजबूत होती जा रही है. सूत्रों ने बताया कि लालू के विश्वासपात्र रहे यह अधिकारी ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं, जिनका अप्रूवल अह्रश्ववाइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) से भी नहीं है और ही यह आज तक लिया गया है.
सूत्रों ने बताया कि लालू के ये विश्वासपात्र अधिकारी उक्त पदों पर नियुक्त होने की सीनियरिटी और सूटेबिलिटी की निर्धारित प्रक्रिया एवं योग्यता को भी पूरा नहीं करते हैं. उनका कहना है कि सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी (डीपीसी), जिसमें सेक्रेटरी/डीओपीटी एवं चेयरमैन/रे.बो. का भी समावेश होता है, ने यहां तक कि लालू के कार्यकाल में भी लालू के इन विश्वासपात्र सेक्रेटरी अत्यंत करीबी रहे अधिकारियों के नाम की सिफारिश नहीं की थी.
सूत्रों का कहना है कि तथापि लालू को अपने इन विश्वासपात्रों की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए तो एसीपी की संस्तुति की परवाह थी और ही डीपीसी की सिफारिश की. जबकि बोर्ड के एक अधिकारी का कहना था कि लालू ने अपने इन विश्वासपात्रों को लाभान्वित और पुरस्कृत करने के लिए कभी किसी नियम अथवा अप्रूवल की परवाह नहीं की थी. वह एकदम निरंकुश होकर अपने 'राजपाट' के तहत अपने कृपा पात्रों को इसलिए पुरस्कृत करते रहे क्योंकि उनके ये कृपापात्र एवं विश्वासपात्र ही तो उन्हें रेलवे से करोड़ों-अरबों रुपये का भ्रष्टाचार करने का
रास्ता दिखा रहे थे.
सूत्रों ने बताया कि यही वजह थी कि लालू एसीसी के अप्रूवल, डीपीसी की रिकमंडेशन (kलीयरेंस) और किसी भी नियम-कानून की परवाह किए बिना ही लोकल पोस्टिंग आर्डर निकालकर अपने विश्वासपात्रों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाकर/नियुक्त कर लाभान्वित एवं पुरस्कृत करते रहे और करके भी गये हैं. जबकि वास्तव में ऐसे लोकल पोस्टिंग ऑर्डर्स की कोई कानूनी (लीगल) अथवा प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) मान्यता नहीं होती है/नहीं है. क्योंकि ऐसे आर्डर्स वास्तव में एसीसी की गाइडलाइंस का खुला उल्लंघन करते हैं/किया है.
सूत्रों का कहना है कि रेलवे की एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बोर्ड के 6 सदस्यों में से सर्वाधिक अधिकारपूर्ण 'सेक्रेटरी/रे.बो.' के पद पर नियुक्ति के लिए एसीसी की गाइडलाइंस का भयानक उल्लंघन तब हुआ जब इस पद से 31 दिसंबर 2008 को श्री मैथ्यू जॉन रिटायर हुए थे. लालू ने सेक्रेटरी/रे.बो. के इस महत्वपूर्ण और अति संवेदनशील पद पर अपने कृपापात्र श्री के.बी.एल. मित्तल उर्फ कुंज बिहारी लाल मित्तल को बैठाकर पर्याप्त रूप से पुरस्कृत एवं लाभान्वित किया, जिसके लिए उन्होंने (लालू) एसीसी का अप्रूवल भी नहीं लिया. (जो आज भी नहीं है.) इसके लिए उन्होंने डीपीसी द्वारा रिकमंडेड पैनल को धता बताते हुए श्री मित्तल से सीनियर और योग्य कई अधिकारियों को दरकिनार कर दिया.
बोर्ड के एक अन्य अधिकारी का कहना था कि भारतीय रेल में श्री मित्तल को लालू का सबसे बड़ा विश्वासपात्र तब से जाना जाता है जब वह डीआरएम/दानापुर हुआ रेल थे. डीआरएम का कार्यकाल पूरा करके निकले श्रीमित्तल को लालू ने सर्वप्रथम रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) में ईडीएमई/ट्रैkशन बनाकर पुरस्कृत किया था. तत्पश्चात उन्हें सीएमई/.रे. बनाकर उपकृत किया गया. मगर लालू द्वारा श्री मित्तल को उपकृत किए जाने का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ. अधिकारी ने बताया कि इसके बाद उन्हें जो असाइनमेंट मिला, उसमें उन्हें और उनके उपकृतकर्ता लालू को कम से कम 100 करोड़ रुपए के कमीशन का फायदा मिला होगा? क्योंकि सीएमई/.रे. रहते हुए ही लालू श्री मित्तल को रेल कोच फैkटरी, छपरा में 1000 करोड़ रु. से ज्यादा के टेंडर फाइनल करने के 'विशेष प्रयोजन' से तीन महीने के लिए वहां भेजा था और इस विशेष प्रयोजन कों साधने के लिए तब छपरा रेल कोच फैkटरी के तत्कालीन सीएओ श्री अरुण भागरा को अत्यंत अपमानजनक तरीके से वहां से हटाया गया था.
उक्त अधिकारी का कहना था कि यही नहीं श्री मित्तल के लिए सीएमई/.रे. की पोस्ट तीन महीने तक लगातार खाली रखी गई थी और जब वह लालू एवं उनके माफिया ग्रुपों के बीच 1000 करोड़ रु. से ज्यदा की बंदरबांट करके मुक्त हुए थे, तब उन्हें पुन: सीएमई/.रे. के पद पर बैठाकर .रे. के मैकेनिकल विभाग को 'चरने' के लिए मुक्त छोड़ दिया गया. श्री मित्तल का सितारा वास्तव में बुलंदी पर था क्योंकि शीघ्र ही उन्हें जिस रिवार्ड से उपकृत किया जाने वाला था, उसके बारे में उन्होंने सामान्यत: कभी सोचा भी नहीं होगा. क्योंकि अपने लोगों को 1000 करोड़ बांटने (टेंडर देने) के लिए लालू ने उन्हें जनवरी 2008 में सेक्रेटरी/रे.बो. के अति महत्वपूर्ण पद पर बैठाकर जैसे उनके तमाम अहसानों का बदला चुका दिया था. अधिकारी का कहना था कि इसके लिए श्री मित्तल से कई सीनियर एवं योग्य अधिकारियों को सिर्फ लालू ने बायपास कर दिया बल्कि डीपीसी के रिकमंडेड पैनल को भी दरकिनार कर दिया और एसीसी से अप्रूवल लेने की भी जरूरत नहीं समझी. उक्त अधिकारी का यह भी कहना था कि जिस अधिकारी को मंत्री द्वारा इस हद तक उपकृत किया जाए, उससे यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि उनकी आपसी मिलीभगत से विभाग को अवश्य हजारों करोड़ का चूना लगा होगा?
बोर्ड सूत्रों का कहना है कि पूर्व रेलमंत्री लालू को लाइफ टाइम ह्रश्वलेटिनम पास दिए जाने का प्रस्ताव बनवाने और उसे लालू से पास करवाने में बतौर सेक्रेटरी/रे.बो. श्री मित्तल की प्रमुख भूमिका रही है. बल्कि रे.बो. के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि इसका असली सुझाव तो वास्तव में श्री मित्तल ने ही लालू और उनके तत्कालीन महाभ्रष्ट एवं महाचालू ओएसडी सुधीर कुमार को दिया था.
सूत्रों का कहना है कि लालू की आड़ में बोर्ड मेंबरों को भी जो 4 के बजाय 6 फस्र्ट एसी पास मिल गए हैं, उसमें श्री मित्तल ने स्वयं को स्वयं ही लाइफ टाइम पुरस्कृत कर लिया है. जबकि पूर्व रेलमंत्रियों के नाम पर किए गए इस लाइफ टाइम पास घोटाले के उजागर होने पर मंत्रियों के बढ़े हुए पास तो रद्द कर दिए गए हैं परंतु बोर्ड मेंबरों को मिले अतिरिक्त पास रद्द नहीं हुए हैं. सूत्रों का कहना है कि बोर्ड मेंबरों के पासों का मामला श्री मित्तल ने ममता बनर्जी से छिपा लिया है. सूत्रों का तो यह भी कहना है कि रामविलास पासवान के समय हुए पास घोटाले में की गई जनहित याचिका पर कोर्ट ने जो आदेश दिए थे, श्री मित्तल ने पूर्व मंत्रियों एवं बोर्ड मेंबरों को अतिरिक्त पास दिलाकर उनका मानहानिपूर्ण उल्लंघन किया है. बोर्ड के कुछ अधिकारियों का मानना था कि यह सर्वज्ञात है कि चापलूसी और चमचागीरी तथा उच्च संबंधों की बदौलत श्री मित्तल का कैरियर ग्राफ हमेशा ऊपर की तरफ बढ़ता रहा है, जबकि उनके अंदर तो कोई विशेष गुण है और ही उन्हें कोई महारत हासिल है, बल्कि प्रोफेशनल पीटेंसी में भी वह अपने समकक्ष/बैच अधिकारियों के समक्ष कहीं नहीं ठहरते हैं. उनका कहना था कि यही नहीं इसी वजह से उनके कैरियर में एक अवसर ऐसा भी आया था जब रेलवे बोर्ड ने उन्हें उनकी खराब परफार्मेंस के आधार पर डीआरएम बनने योग्य भी नहीं पाया था और पैनल में उनका नाम नहीं डाला गया था.
तथापि रेल मंत्रालय के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि श्री मित्तल अपने गहन औद्योगिक एवं राजनीतिक संबंधों के बल पर अगले डीआरएम पैनल में अपना नाम डलवाने में कामयाब रहे थे. इस तथ्य की जांच और प्रमाणीकरण आज भी किया जा सकता है. सूत्रों का कहना था कि नियमानुसार कोई भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री पदेन सचिव, भारत सरकार के स्तर की पोस्ट पर किसी भी सीनियर मोस्ट (वरिष्ठतम) और सूटेबल (योग्य) अधिकारी की नियुक्ति, जिसके लिए एसीसी अप्रूवल अनिवार्य होता है, सिर्फ तीन महीने के लिए बिना एसीसी के अप्रूवल के कर सकता है. तथापि श्री के.बी.एल. मित्तल को सिर्फ सेक्रेटरी/रे.बो. के पद पर पदस्थ किया गया, बल्कि उनके लिए डीपीसी के रिकमंडेशन और एसीसी के संपूर्ण दिशानिर्देशों को ताक पर रखकर उन्हें अब तक पिछले 6 महीने से लगातार इस अति संवेदनशील पद पर अनधिकृत रूप से बनाए रखा गया है.
बोर्ड सूत्रों ने बताया कि फिलहाल श्री मित्तल स्पेन में पिछले 20 जून से करीब आधे महीने की गर्मी की छुट्टियां अपने परिवार के साथ रेलवे के खर्च पर (विभागीय विदेश यात्रा) मनाने गए हैं, जबकि ईमानदार और कर्मठ तथा रेल सेवा के प्रति समर्पित अधिकारी, जिनकी सेक्रेटरी/रे.बो. के पद पर नियुक्ति की संस्तुति कई गई थी, न्याय और सिद्धांत पर चलने वाली ममता बनर्जी की तरफ इस उम्मीद से देख रहे हैं कि वे उनके साथ हुए अन्याय को समझेंगी और न्याय करेंगी. उनका कहना था कि ममता बनर्जी पर निर्भर करता है कि वे लालू के कार्यकाल में हुई ऐसी तमाम अनियमितताओं और भ्रष्टाचारों पर संज्ञान लें तथा पारदर्शिता एवं न्याय की स्थापना करके उस भारी गंदगी को साफ करें, जो उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद यादव इस महत्वपूर्ण महकमे में छोड़ गए हैं.

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