Monday 3 November, 2008

कोलकत्ता की राह पर मुंबई

करीब २५० राज्य सड़क परिवाहन की बसे, लगभग ३७५ टैक्सियाँ, करीब १२५ बेस्ट की बसे और सैकड़ों ऑटो रिक्शा, ट्रक एवं निजी वाहनों को फूँक डाला गया। यह निजी और सार्वजनिक संपत्ति के नुक्सान के आंकड़े महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के मराठी मानूस बनाम उत्तर भारतीय विवाद का परिणाम हैं। मनसे प्रमुख राज ठाकरे अपनी राजनितिक जड़े जमाने के लिए और अपनी पैतृक पार्टी शिवसेना की जड़े काटने एवं उसका वोट बैंक हथियाने के लिए कभी जया बच्चन विवाद, कभी रेलवे परीक्षार्थियों को पीटकर भूमिपुत्रों के हक की बात और कभी जेट एयरवेज के कर्मचारियों को नौकरी से न निकले जाने की धमकी, कभी मराठी माणूस बनाम उत्तर प्रदेशीय, कभी मराठी माणूस बनाम बिहारी आदि विवादास्पद मामले उठाकर मुंबई को कोलकाता और महाराष्ट्र को पश्चिम बंगाल बनने की राह पर लेजा रहे हैं, जबकि राज्य एवम केन्द्र सरकार उनकी इन असंवैधानिक हरकतों को उतनी ही तल्खी से नही ले रही है, जितनी तल्खी से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री आर. आर. पाटिल ने बिहारी युवक राहुल राज की 'पुलिसिया हत्या' पर बजाय निंदा करने के उसका परम पक्षधर बनकर अपनी अमानवीय तल्ख़ टिपण्णी व्यक्त की है।
इस सब पर राज ठाकरे को 'मेंटल केस' बताकर लालू यादव जैसे उथले किस्म के सिर्फ़ स्वहित साधन और सिर्फ़ 'अपना कुटुंबहित' देखने वाले नेता इस आग में अपनी उथली टिप्पणियों का घी डालकर और हवा दे रहे है। शासन-प्रशासन और राजनीतिज्ञों की इन तमाम नालायाकियों से तंग आ चुके इस देश के आम आदमी का आक्रोश बिहार में नवयुवकों ने रेलवे एवं अन्य सार्वजनिक संपत्ति को फूँक कर व्यक्त किया हैं। यदि देश के आम आदमी को समान विकास, समान न्याय, समान शिक्षा, समान रोजगार की स्थितियां और समान जीवन यापन के अवसर उपलब्ध कराये गए होते तो शायद आज भाषावाद और प्रांतवाद का विवाद पैदा ही नही होता था। तब शायद अपने ही देश के अन्दर लोग 'बाहरी' नही होते, क्योंकि उन्हें अपने पैतृक निवास और राज्य में ही अनुकूल जीवन-यापन की स्थितियां मिल जाती।
उत्तर प्रदेश और बिहार वह बड़े राज्य हैं, जिन्होंने आज़ादी के बाद सबसे ज्यादा समय तक केन्द्र पर राज्य किया परन्तु इन दोनों राज्यों के लालू और मायावती जैसे छिछले किस्म के राजनीतिज्ञों ने कभ अपने गृह प्रदेशों को सिर्फ़ अपने स्वहित और अपने राजनितिक महत्वाकांक्षाओं के चलते तमाम उद्योग-धंधे से लैस करने और उनके विकास की ओर कभी ध्यान नही दिया। इसका परिणाम सामने है की आज इन्ही दो प्रदेशों के डर-बदर हुए लोग देश के दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर राज्यों में पलायित होकर वह के लोगों में सबसे ज्यादा हेयदृष्टी का शिकार हो रहे है। देश के चौतरफा इन दोनों राज्यों के लोगो को ग्र्हुना की दृष्टी से देखा जाने लगा है। यह अत्यन्त शर्म की बात है की यह लोग वह जाकर वहाँ के विकास में अपना योगदान दिए हैं और वहाँ के उद्योग-धंधों को सस्ता श्रम मुहैया कराया है, जिसके बदले उन्हें सिर्फ़ दो जून की रोटी मिली है।
परन्तु शायद इसी कारण से वहाँ के स्थानीय लोग काहिल और लापरवाह भी हुए है और इसी काहिली के चलते उन्होंने उत्तर प्रदेशीय एवम बिहारियों की तरह स्वयं को शिक्षित और योग्य बनने की तरफ़ ध्यान नही दिया, परिणामस्वरूप जब वह उनसे प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने लगे तो उनके अन्दर अपने अधिकार का अंहकार जाग रहा है। परन्तु इस कथित अधिकार के मद में चूर वह फिर भी अपने आपको शिक्षित एवं योग्य बनने की बात भूल रहे हैं। इसी सोच के चलते वह मुंबई को कोलकत्ता और महाराष्ट्र को पश्चिम बंगाल के उद्योगविहीन रास्ते पर दाल रहे है। जिस प्रकार कभी कोलकत्ता इस देश की राष्ट्रीय और आर्थिक राजधानी होते हुए समस्त प्रकार की आर्थिक सामाजिक, राजनितिक गतिविधियों का केन्द्र था, उसी प्रकार आज मुंबई ही। भले ही देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है और प्रमुख राजनितिक गतिविधियाँ दिल्ली से संचालित होती है, मगर मुंबई आज इस देश की आर्थिक राजधानी है और देश की समस्त आर्थिक गतिविधियों की नब्ज़ न सिर्फ़ अंतर्देशीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर यही से परिलक्षित होती है। परन्तु इस प्रकार के सार्वजनिक वैमनस्यता फैलाने वाले तथाकथित भूमिपुत्र के आन्दोलनों से जिस प्रकार एक दिन कोलकत्ता से यह दर्जा छीन गया था, उसी प्रकार आने वाले दिनों में मुंबई का भी छीन सकता है।
पहले भी कोई उद्योगपति पश्चिम बंगाल में अपना कोई उद्योग लगाने से कतराता था और वामपंथियों के ३० साल पहले राज्य शासन पर काबिज होने के बाद धीरे-धीरे वहाँ के उद्योग-धंधे पलायन कर गए थे। हाल ही के 'नैनो' विवाद के बाद अब शायद ही कोई उद्योगपति पश्चिम बंगाल का का रुख करेगा। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्थर पर देश और राज्य की जो छवि ख़राब हुई, सो अलग। कामोबेस यही स्थितियां मुंबई और महाराष्ट्र की बनती जा रही हैं. यदि इन पर मुंबई और महाराष्ट्र के प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजीवी और राजनीतिज्ञों ने अवलिम्ब ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में वह भी पश्चिम बंगाल की तरह हर गली-कूचे में अपनी-अपनी शाखा खोलकर सामजिक आतंकवाद को चला रहे होंगे।

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