Thursday 13 November, 2008

रेलवे प्रोजेक्ट्स में हईएस्त फ्लोट लेवल- अरबों का घोटाला


Railway Projects में किस-किस तरह के घोटाले हो रहे है और निजी ठेकेदारों एवं नौकरशाही तथा राजनीतिज्ञों से गठजोड़ से किस तरह रेलवे की जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है, यह अब तक रेल परियोजनायो में सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगभग अनजान रहे हईएस्ट फ्लोट लेवल (एचएफएल) के मामले में हो रहे घोटाले की तह में जाकर देखा जा सकता है। देश की लगभग प्रत्येक नयी रेल परियोजना में एचएफएल को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है और यह काम पिछले करीब पाँच वर्षों के दरमियान बनी सभी रेल परियोजनायों में किया गया है जबकि एचएफएल को सर्वाधिक बिहार की रेल परियोजनायों में नजर अंदाज किया गया है। हलाँकि पिछले लगभग १०-१५ वर्षों से लगातार रेल मंत्रालय पर बिहार के नेताओं का कब्ज़ा है, परन्तु एचएफएल को दरकिनार किए जाने के सबसे ज्यादा मामले यहाँ पिछले पाँच वर्षों में हुए हैयह काम अभी- भी लगातार जारी है।
उल्लेखनीय है की हईएस्ट फ्लोट लेवल के अनुसार ही देश में प्रत्येक रेल एवं सड़क परियोजनायों का निर्माण किया जाता है। बाढ़ के समय जब नदी का पानी ओवर फ्लो होता है और वह शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में दूर तक फैलता है, तब उस बाढ़ के पानी की ऊँचाई और बहाव की दुरी के हिसाब एचएफएल ( हईएस्ट फ्लोट लेवल ) मापा जाता है। इस एचएफएल के आंकड़े सम्बंधित राज्य के सिंचाई विभादों के पास होते है। किसी भी सड़क या रेल परियोजना के निर्माण के पहले यह आंकड़े सम्बंधित राज्यों के सिंचाई विभागों से मांगने के बाद उनका ध्यान में रखकर ही किसी रेल या सड़क योजना का आकलन किया जाता है।
परन्तु इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य का ध्यान पिछले पाँच वर्षों के दरम्यान बिहार में पुरी हो चुकी अथवा वर्तमान में निर्माणधीन रेल परियोजनाओं में नही रखा गया है और न ही यहाँ एचएफएल के अनुसार रेल लाईने बिछाई गया है। यहाँ तक की छोटे, मझोले और बड़े किस्म के तमाम रेल पूलों के निर्माण में भी संरक्षा के दृष्टिकोन से इस सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का ध्यान नही रखा गया है। हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है की वैसे टू रेलवे की तमाम परियोजनाओं में एचएफएल को नज़र अंदाज किया जाता है, परन्तु बिहार में यह कम पिछले ५ वर्षों में सबसे ज्यादा हुआ है।
सूत्रों का कहना है की बिहार की सभी रेल परियोजनाओं में एचएफएल का कोई ध्यान नही रखा गया है। उनका कहना है की यहाँ बाढ़ के समय नदी का जो एचएफएल मान लिया गया और मिटटी की भराई की मात्रा और काम को बढ़ाने के लिए यह सारे हथकंडे यहाँ ठेकेदार माफिया और अधिकारियों द्बारा अपनाया गया है। सूत्रों का कहना है की बिहार सहित पुरे भारतीय रेल में पिछले ५ वर्षों के दरम्यान जो भी रेल परियोजनाएं पुरी हुयी है, अथवा पुरी होने वाली है, और जो माईनर / मीडियम/ मेजर रेल पूलों का निर्माण किया गया है या किया जा रहा है तथा जो रेल परियोजनाएं प्रस्तावित है आदि की यदि इंजीनियरिंग के स्थापित दृष्टिकोण से जांच की जायेगी, इसमी देश का अब तक का बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
हमारे सूत्रों का यह दावा है की बिहार में पिछले ५ वर्षों के दौरान पुरी हुई और वर्त्तमान में निर्माणधीन किसी भी रेल परियोजना के अंतर्गत निर्मित की गई कोई भी इमारत अथवा मेजर था माईनर रेल bridges में डाली गई कांक्रीट और स्टील की क्वालिटी एवम क्वांटिटी (गुणवत्ता एवम मात्रा) का लोड बेयरिंग कैपेसिटी (भार वाहन क्षमता) का इंजीनियरिंग के स्थापित दृष्टिकोण से हिसाब से इन सबका इन्तेग्रिती और रेदिओग्राफी टेस्ट करा लिया जाए तो साड़ी सच्चाई उजागर हो जायेगी। सूत्रों का कहना है की मेजर एवम माईनर रेल पूलों की पीलिंग (नीवं भारी ) और columns (खम्बों) में किस गुणवत्ता की कांक्रीट डाली गई है और किस क्वालिटी की कितनी मोटी तथा कितनी मात्रा में स्टील उनमें डाली गई है, इस सबका पुरा पता चल जायेगा।
सूत्रों ने बताया की रेल पुलों की डिजाईन करते समय उनकी पाईलिंग में जितनी भी स्टील डालने की गणना की जाती है, उससे करीब २०% स्टील ज्यादा रखी जाती है क्योंकि डिजाईन के अनुसार उनमें यदि २०% स्टील कम भी लगाई जायेगी तो उससे सेफ्टी को भविष्य में कोई खतरा नही होगा। परन्तु सूत्रों का कहना है की बिहार के लगभग सभी रेल पूलों में इस २०% ज्यादा स्टील की तो बात ही छोडो, उससे भी २०% कम स्टील डाली गई है। वह भी कम गुणवत्ता और कम मोटाई वाली। अतः यदि इन सभी रेल पूलों की डिजाईन सहित सभी मामलो की जांच मानक विशेषज्ञों एवम डिजाईनरों द्बारा करवाई जाए तो इंजीनियरिंग के निर्धारित दृष्टिकोण से सभी रेल पूलों और परियोजनाओं में २०% स्टील कम पाये जाने की पूरी संभावना है।
बिहार की रेल परियोजनाओं में मिटटी की भराई के मामले में करोड़ों के घोटाले और भ्रष्टाचार की बात तो स्वयं यहाँ के रेल कर्मचारी भी स्वीकार करते है। हमारे सूत्रों का कहना है की टेंडर के अनुसार ठेकेदारों को निजी जमीन से और सम्बंधित रेल परियोजना क्षेत्र से कम से कम दो किमी, दूर से मिटटी लाकर परियोजना स्थल की भराई करानी थी, परन्तु ठेकेदारों ने यह मिटटी रेलवे की ज़मीन से और परियोजना स्थल के एकदम करीब से ही खोदकर उठा ली है, जबकि उन्हें इसका भुगतान टेंडर के अनुसार निजी जमीन से और दूर से लाई गई मिटटी के लिए किया गया है। पिछले पाँच वर्षों में इस सम्बन्ध में बिहार की रेल परियोजनाओं में व्यापक स्टार पर भ्रष्टाचार हुआ है।
इस सम्बन्ध में सूत्रों का कहना है की बिहार में चल रही रेल परियोजनाओं में सम्बंधित मिटटी भराई करने वाले ठेकेदारों ने मिटटी उठाने के लिए निजी जमीनों के खाता-खसरा नंबर और सम्बंधित जमीन मालिक के साथ हुए समझौते सम्बन्धी तमाम कागजात सम्बंधित कार्यालयों में जमा नही कराये है। सूत्रों का यहाँ तक दावा है की सभी ठेकेदारों ने निजी जमीन बताकर रेलवे की जमीन से ही साड़ी मिटटी उठाकर डाली है। यदि इस मामले की गहराई से और निष्पक्ष जांच की जाए तो यह सारा भ्रष्टाचार और अधिकारी- ठेकेदार गठजोड़ उजागर हो सकता है, क्योंकि विभिन्न परियोजना स्थलों के बगल में ही बड़े-बड़े तालाबनुमा गड्ढे आज भी खुदे हुए देखे जा सकते है।
उधाहरण के लिए आरा- सासाराम नई रेल लाइन परियोजना को ही ले ले। जिसका काम आजकल तेजी से चल रहा है। इस रेल परियोजना स्थल के किनारे-किनारे सैकडों गहरे और तालाबनुमा गड्ढे खुदे हुए है। इस रेल परियोजना में बड़े भयानक स्टार पर गडबडियां हुई है। इसके अलावा ऐसी कई अन्य रेल परियोजनाएं है, जहाँ जांच में ऐसी तमाम गडबडियां और अनियमितताएं उजागर हो सकती है, जिनमी करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ है और एडहांक आईओडबल्यू, पिडबल्यूआई और सेंट्रल स्टोर्स के बाबू लोग इन ५ वर्षों के दरम्यान ही 'करोड़पति' बन गए है।
हमारे सूत्रों का कहना है की यहाँ के लगभग तमाम ठेकेदार कही न कही रेल मंत्री और अनेक 'कुनबे' से जुड़े हुए है और वह जैसा कहते है, उसे रेल मत्री का कथन मानकर उस पर यहाँ के अधिकारीयों द्बारा अमल किया जाता है। ऎसी स्थिति में बिहार की तमाम निर्माणधीन अथवा पुरी हो चुकी रेल परियोजनाओं में कोई भी निर्धारित मानक नही अपनाया जा रहा है, क्योंकि यहाँ रेल मंत्री और उनके विस्तृत कुनबे का कथन ही 'नियम' है और यह 'नियम' आजकल संपूर्ण भारतीय रेल पर लागू है। इसका सबसे बड़ा उद्धरण यहाँ पिछले करीब डेढ़ साल से खाली पड़ी दीप्ती सीविओ/इंजी. की पोस्ट है, जिससे एक अधिकारी को डेढ़ साल पहले सिर्फ़ इसलिए मनमानी तरीके से हटा दिया गया था, क्योंकि उसने रेल मंत्री के एक नजदीकी बेलास्ट सप्लायर की बेलास्ट की गुणवत्ता और आकार चेक करने की गुस्ताखी कर दी। इसका दूसरा उधाहरण एक वरिष्ठ लेखाधिकारी है, जिसने रेल मंत्री की पसंद वाली एक फाइल रोकने और पास न करने की गुस्ताखी की थी, उसे पिछले करीब तीन साल से अपने बीवी-बच्चों और अपनी रेलवे से दूर रहकर आज भी वनवास भोगना पड़ रहा है। ऐसे ही अन्गानीत उदहारण है।
यही नही पु,म,रे, में कई विजिलेंस इन्स्पेक्टेरों को अनावश्यक सेवा विस्तार दिया गया है, जबकि बेलास्ट लोडिंग और उपरोक्त तमाम प्रकार की अनियामीत्तें यहाँ धड़ल्ले से जारी है। इसके अलावा पु.म.रे. की यह महानता ही है की यहाँ खलासी और किमैनों को एडहाक प्रमोशन देकर पिदब्ल्युआइ/ आयोदाब्ल्यु/ डिपो इंचार्ज बना दिया गया है। जबकि रेलवे बोर्ड के एक आदेशानुसार पुरी भा,रे, में सभी केटेगिरी एवम वर्गों में एडहाक पध्दित बंद कर दी है।
सेंट्रल स्टोर, हाजीपुर के एक जेई को एसई बना दिया गया है, जबकि एक शर्मा नामक खलासी को आईओडबल्यू/ इंचार्ज बनाया गया है। इस तरह जामदार सिंह, खलासी, जिसके ख़िलाफ़ रेल बेचने के दो गंभीर मामलों में विजिलेंस की जांच चल रही है, को सेंट्रल स्टोर का बाबू बना दिया गया है। जबकि दूसरी रेलों से वर्ष २००३-०४ में आप्शन में यहाँ अपना ट्रान्सफर करा कर आए लोगों को अब तक कोई पदोंन्नति नही दी गई है। ऐसे कर्मचारियों का कहना था की यदि उन्हें पदोंन्निती दे दी जायेगी तो रेलमंत्री और उनके कुनबे सहित अधिकारियों की उपरोक्त 'एडहाक' और 'उगाही फौज' का रीवार्सन हो जायेगा। तब उन्हें 'वसूली' करके कौन देगा? कर्मचारियों का कहना था की आप्शन में अन्य रेलों से यहाँ आए सभी विभागों के कर्मचारियों की पदोंन्नित्ति हो चुकी है। मगर इंजी. विभाग में भारी मनमानी के चलते उनकी पदोंन्नित्ति रुकी पड़ी है। ऐसी स्थिति में CBI, सीवीसी और board विजिलेंस को संयुक्त रूप से बिहार की सभी रेल परियोजनाओं में पिछले पाँच वर्षों के दरम्यान अपनाई गई कार्य pranaali गहराई से जांच करनी चाहिए क्योंकि यह देश की आम जनता की भावी sanraksha और suraksha से ही सिर्फ़ जुदा मामला नही है बल्कि आम janata की gaadhi kamaii को hadapne का एक बड़ा shadyantra भी है। उन्हें यह जांच अब इसलिए भी nidar होकर शुरू कर देनी चाहिए की वर्तमान रेलमंत्री का karyakaal पुरा हो रहा है और आम chunaav नजदीक है, jinke बाद उनका kabza भी रेल mantralaya से हट जायेगायह कहना है पु.म.रे. के तमाम अधिकारियों एवम karmchariyon का है।

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