Friday 9 December, 2011


"कदुआ पे सितुआ चोख"

दोष सीपीटीएम का, दण्डित हुआ सीनियर डीओएम 

पटना : दोष किसी का, सजा किसी को... यही होता है जब यह कहा जाता है कि हायर लेवल पर जवाबदेही या उत्तरदायित्व तय किया जाए.. तब हमेशा से यही होता आया है कि नीचे स्तर पर किसी और को बलि का बकरा बना दिया जाता है और ऊपर के लोग बच जाते हैं या बचा लिए जाते हैं और उनका साथ देने के लिए उनके सभी समकक्ष इकट्ठे हो जाते हैं, मरते हैं नीचे के लोग या जूनियर अधिकारी... यही हुआ है दानापुर मंडल, पूर्व मध्य रेलवे के सीनियर डीओएम श्री आधार सिंह (आईआरटीएस-ग्रुप 'ए') के साथ, जबकि स्पष्ट तौर पर गलती सीपीटीएम श्री संजय शर्मा की बताई जाती है. उल्लेखनीय है कि 6 दिसंबर को सांसदों के लिए फर्स्ट एसी का कोच न लगने से सांसदों ने हंगामा खड़ा कर दिया और सम्बंधित अधिकारी को निलंबित करने की मांग की थी. जिसके मद्देनज़र रेलमंत्री का आदेश था कि उच्च स्तर पर जवाबदेही तय करके सम्बंधित अधिकारी को निलंबित किया जाए. अब रेलमंत्री का आदेश था, तो किसी को तो बलि का बकरा बनाना ही था, सो सीपीटीएम के बजाय सीनियर डीओएम को बना दिया गया. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार अधिक प्रतीक्षा सूची को देखते हुए विजिलेंस की एडवाइस पर गाड़ियों में एक्स्ट्रा कोच लगाए जाने की कोई पुख्ता व्यवस्था बनाई जानी थी. इसके लिए 3 दिसंबर को सीसीएम ने सभी सीनियर डीसीएम्स को एक नोट लिखकर कहा था कि वे अपने यहाँ से चलने वाली सभी गाड़ियों की असली पोजीशन चार दिन पहले मुख्यालय भेजेंगे. तदनुसार गाड़ियों में एक्स्ट्रा कोच लगाए जाने की व्यवस्था की जाएगी. हालाँकि सांसदों के जाने की जानकारी सभी को थी, फिर भी इसकी जानकारी 3 दिसंबर से पहले भी दी जा चुकी थी. नई व्यवस्था के अनुसार सीनियर डीसीएम ने 5 दिसंबर को सांसदों के लिए एक फर्स्ट एसी कोच लगाए जाने की सूचना सीपीटीएम और सीनियर डीओएम को भेज दी थी. परन्तु हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि सीपीटीएम ने सीनियर डीसीएम द्वारा भेजे गए नोट (रिक्वेस्ट-अनुरोध) को यह कहकर लौटा दिया कि यह सूचना 5 दिन पहले आनी चाहिए थी, अब कुछ नहीं होगा.. 

जबकि सच्चाई यह है कि 3 दिसंबर का आदेश 6 दिसंबर की व्यवस्था के लिए कतई लागू नहीं हो सकता था, क्योंकि इसके बीच में चार दिनों का अंतर नहीं था. क्या यह बात सीपीटीएम की समझ में नहीं आई थी? अथवा वह टैफिक के नियमो से अनभिज्ञ हैं? इसके अलावा बताते हैं कि सीनियर डीसीएम या कमर्शियल विभाग द्वारा भेजे जाने वाले लिखित नोट/मेमो की रिसीविंग ट्रैफिक कंट्रोल द्वारा नहीं दी जाती है. और यह भी बताया जाता है कि ट्रैफिक कंट्रोल की यह 'दादागीरी' आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से और सब जगह चल रही है. तथापि सूत्रों का कहना है कि 5 दिसंबर को सीनियर डीओएम ने 'फ्वोईस' के माध्यम से सांसदों के लिए एक एक्स्ट्रा फर्स्ट एसी कोच लगाए जाने की सूचना दी थी. यह रिकॉर्ड में है. इससे सीनियर डीओएम को किस प्रकार से गलती पर अथवा इस कोताही के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यानि सीनियर डीओएम की कोई गलती नहीं थी, और इस वजह से ही सीनियर डीसीएम श्री अरविन्द रजक बच गए हैं. 

ट्रैफिक सूत्रों का कहना है कि पटना में फर्स्ट एसी के दो एक्स्ट्रा कोच हमेशा अलग से उपलब्ध रहते हैं. तब सीपीटीएम ने यह कोच न देकर घोर लापरवाही का परिचय क्यों दिया? यह जाँच का विषय है. यह एक्स्ट्रा दो फर्स्ट एसी कोच साइड में हमेशा उपलब्ध रखने की व्यवस्था लालू यादव के समय से चली आ रही है, क्योंकि लालू ने रेल को अपने सांसदों और नेताओं की बपौती बना दिया था और इनकी आदतें बिगाड़ दी थीं. तभी से जनता के ये 'सेवकगण' स्वयं को 'मालिक' मानकर विशेष व्यवस्था का हक़दार होने का दावा खासतौर पर रेल में करते रहते हैं. बिहार में एक कहावत है कि 'कदुआ पे सितुआ चोख' यानि कि सीप की फांक भले ही काफी नाज़ुक होती है मगर फिर भी कद्दू को छील देती है. इसी प्रकार ट्रैफिक अधिकारी आपस में ही एक दूसरे की खाल छील रहे हैं. इसके अलावा यह शायद पहली बार है, कि जब इस प्रकार के मामले में किसी ग्रुप 'ए' अधिकारी को निलंबित किया गया है, क्योंकि इससे पहले इससे भी नीचे जाकर तथाकथित 'रेस्पांसिबिलिटी' फिक्स की जाती रही है और किसी प्रमोटी ग्रुप 'बी' अधिकारी को ऐसे किसी भी मामले में बलि का बकरा बनाया जाता रहा है. तथापि यदि रेलमंत्री और सीआरबी का आदेश उच्च स्तर पर 'रेस्पांसिबिलिटी' फिक्स करने का था, तो यह डिवीजन स्तर पर डीआरएम और मुख्यालय स्तर पर सीपीटीएम की तय की जानी चाहिए थी. इसमें अभी-भी बहुत ज्यादा विलम्ब नहीं हुआ है, रेलमंत्री और सीआरबी को यदि अपने आदेश की लाज रखनी है, और माननीय सांसदों को और उद्दंड बनाना है, तो उपरोक्त तमाम वस्तुस्थिति पर विचार करते हुए वाजिब निर्णय लेने में अब ज्यादा देर नहीं करनी चाहिए...!! 
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