Thursday 29 December, 2011


मजारिटी से नहीं माइनारिटी से लिए जाते हैं निर्णय..

कोलकाता : इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन ( आईआरपीओएफ) की वार्षिक सर्वसाधारण सभा (एजीएम) और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानि पीपीपी पर सेमिनार यहाँ 26-27 दिसंबर को संपन्न हुआ. फेडरेशन के दोनों कार्यक्रम लगभग पूरी तरह फ्लाप रहे. क्योंकि एजीएम में करीब आधी से ज्यादा रेलों के प्रतिनिधि पहुंचे ही नहीं, और सेमिनार में ईडी/पीपीपी और एसडीजीएम/द.पू.रे. के अलावा कोई बड़ा अधिकारी न तो रेलवे बोर्ड से और न ही कोलकाता स्थित दोनों जोनल रेलों से आया. इसके अलावा सभी जोनल रेलों और उत्पादन इकाइयों से करीब 100 प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों की उपस्थिति के बजाय एजीएम में कुल मिलाकर लगभग 50-55 लोग, वह भी परिवार सहित, ही उपस्थित थे. क्योंकि जो लोग आए भी थे उनमें सभी रेलों से 4-4 प्रतिनिधि और जोनल अध्यक्ष एवं महासचिव नहीं थे. साथ ही सभी उत्पादन इकाइयों के प्रतिनिधि भी नहीं आए थे. बताते हैं कि पहले दिन का खाना भी कुछ ठीक नहीं था और खाने वाले भी कम थे, जबकि दूसरे दिन सेमिनार के बाद लंच पर कुल करीब 55-60 लोग ही जुट पाए थे, जबकि मंच से दावा यह किया गया था कि पू. रे. से हमारे 18 अधिकारी आएँगे, जबकि पू. रे. में करीब 260 प्रमोटी अधिकारी हैं. मगर आए कुल 8 या 9 अधिकारी, जिनमे 4 प्रतिनिधि और 2 पदाधिकारी भी शामिल थे. पता चला है कि फेडरेशन का कोषाध्यक्ष भी इस एजीएम में नहीं आया. यह भी पता चला है कि उसने इस पद से अपना इस्तीफा दे दिया है

प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले दिन अध्यक्ष की अनुमति से एजीएम की कार्यवाही शुरू हुई, जिसमे सर्वप्रथम सेक्रेटरी जनरल रिपोर्ट और कोषाध्यक्ष की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. कोषाध्यक्ष की अनुपस्थिति में यह रिपोर्ट श्री अमेश कुमार ने रखी. बताते हैं कि इसमें सिर्फ चार रेलों को छोड़कर बाकी सभी पर बकाया दिखाया गया है. जबकि सेक्रेटरी जनरल रिपोर्ट में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था. प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य रेलवे के अध्यक्ष श्री आर. बी. दीक्षित के बाद पूर्व रेलवे के महासचिव श्री डी. एन. वर्मा ने कहा कि उनकी रेलवे पर दिखाया गया बकाया फर्जी है, क्योंकि प्रॉप मैगजीन और संलग्नता फीस के अलावा किसी मद को बकाया नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा बताते हैं कि उन्होंने यह भी कहा कि संलग्नता फीस की मद में दी गई राशि को किसी अन्य मद में फेडरेशन द्वारा कैसे जमा किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि उनकी जोनल बॉडी की एजीएम में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है कि प्रॉप और संलग्नता फीस के अलावा फेडरेशन को अन्य किसी मद में कोई राशि नहीं दी जाएगी. बताते हैं कि श्री वर्मा ने कहा कि क्या पीपीपी ही एक विषय बचा है सेमिनार करने के लिए, ग्रुप 'बी' की भलाई के किसी अन्य विषय पर क्यों नहीं सोचा जाता है? उन्होंने कहा कि पीपीपी पर अथवा ऐसे किसी अन्य विषय पर सेमिनार करने पर सभी रेलों ने विरोध किया था. फिर भी यह सेमिनार क्यों किया जा रहा है, यह उनकी समझ से परे है. 

बताते हैं कि श्री वर्मा के बाद आए सभी वक्ताओं ने श्री वर्मा की बात का कम या ज्यादा समर्थन किया. बताते हैं कि उ. म. रे. के अध्यक्ष श्री एस. एस. परासर ने कहा कि सेमिनार के नाम पर 50 हज़ार रु. की राशि बहुत ज्यादा है, इतनी बड़ी राशि तय किए जाने से ज्यादातर रेलें डिफाल्ट तो होंगी ही. सभी उत्पादन इकाइयां भी 25 हज़ार की राशि दे पाने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए पहली बात तो यह कि ऐसे सेमिनार के आयोजन के औचित्य पर विचार किया जाए और अगर यह करना ही चाहिए तो राशि के बारे में पुनः विचार किया जाना चाहिए तथा इसकी लागत घटाई जानी चाहिए. बताते हैं कि प. रे. के महासचिव श्री दीपक शैली ने कहा कि उनकी रेलवे पर कोई एक पैसे का भी बकाया नहीं है, बल्कि फेडरेशन पर ही उनका पांच हज़ार का बकाया निकलता है, जो कि वह सूद सहित फेडरेशन से वसूल करेंगे. बताते हैं कि सेमिनार के नाम पर प्रत्येक जोनल रेलवे से 50 हज़ार की राशि पर उन्होंने भी अपनी असहमति व्यक्त की. बताते हैं कि उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे के महासचिव श्री जे. सी. दास और पूर्वोत्तर रेलवे के महासचिव श्री पी. के. खुराना ने भी श्री वर्मा की बात से अपनी सहमति जताते हुए कहा कि श्री वर्मा ने जो कुछ भी यहाँ अभी कहा है वह उससे पूरी तरह सहमत हैं. उन्होंने श्री वर्मा द्वारा कही गई पर्सनल, सिविल और एकाउंट्स के लिए अतिरिक्त पोस्टें दिए जाने के पूर्व सीआरबी के आश्वाशन और उसके पूरा न होने तथा 5400 ग्रेड पे, 50 : 50 परसेंट कोटा, मिस्लेनिअस कैडर आदि जैसी मांगों के पूरा न होने की बातों का पूरा समर्थन किया. 

बताते हैं कि इसी तरह अन्य सभी रेलों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी. परन्तु बताते हैं कि श्री वर्मा द्वारा कहे गए कटु सत्य पर जब पूरा सदन उन्हें चुपचाप और पूरी तन्मयता के साथ सुन रहा था और उनके साथ अपनी सहमति व्यक्त कर रहा था, तब इससे बुरी तरह तिलमिलाए सेक्रेटरी जनरल, हालाँकि यह भारी-भरकम पदनाम ऐसे झूठे और चापलूस लोगों पर शोभा नहीं देता, ने उठकर माइक अपने हाथ में लेकर सदन से कहा कि श्री वर्मा कुछ भी बोले जा रहे हैं और आप लोग चुपचाप सुने जा रहे हैं, जबकि वह (श्री वर्मा) सब झूठ कह रहे हैं, और आप लोग कुछ नहीं बोल रहे है.. इस पर भी जब किसी ने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने ही आगे कहा कि जो भी निर्णय लिए गए, वह बहुमत (मजारिटी) से लिए गए थे.. उनका इतना कहना था कि बताते हैं कि श्री वर्मा फिर अपनी जगह से बोल पड़े कि सेक्रेटरी जनरल सभी निर्णय मजारिटी से नहीं माइनारिटी से लेते हैं.. इस पर पूरा सदन हंस पड़ा. बताते हैं कि श्री वर्मा यहीं नहीं रुके, उन्होंने अपनी जगह से ही सदन को बताया कि गत वर्ष नवम्बर 2010 में सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली डीआरएम ऑफिस में जो इमर्जेंट मीटिंग बुलाई थी, उसमे सिर्फ 5-6 रेलों के ही लोग आए थे, उसी में सेमिनार के लिए प्रत्येक जोनल रेलवे से 50 हज़ार और प्रोडक्शन यूनिट से 25 हज़ार रु. इकठ्ठा करने का निर्णय लिया गया था, तो यह मजारिटी से लिया गया निर्णय कैसे कहा जा सकता है? 

बताते हैं कि श्री वर्मा की इस साफगोई से जहाँ पूरा सदन सहमत था, वहीँ इस स्थित से बुरी तरह तिलमिलाए सेक्रेटरी जनरल अपना सा मुंह लेकर अपनी जगह वापस आकर बैठ गए. पता चला है कि दूसरे दिन 10.30 बजे से पहले ही एक प्रस्ताव सेक्रेटरी जनरल ने अपनी चालाकी से यह पास करा लिया कि जिन रेलों पर बकाया है, उन्हें अगली किसी भी एजीएम या ईसीएम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी. एजीएम में उपस्थित रहे कई जोनल महासचिवों ने 'रेलवे समाचार' से बातचीत में कहा कि यह प्रस्ताव खासतौर पर श्री डी. एन. वर्मा को बाहर रखने के लिए सेक्रेटरी जनरल ने पास कराया है. मगर प्राप्त जानकारी के अनुसार फेडरेशन द्वारा इस एजीएम में वितरित किए गए अपने लेखा-जोखा में द. प. रे. पर 80 हज़ार, प. म. रे. पर 64 हज़ार, उ. म. रे. पर 94750, उ. पू. सी. रे. पर 93 हज़ार, आरडीएसओ पर 69 हज़ार, प. रे. पर 24 हज़ार, पू. रे. पर 1.55 लाख और मेट्रो रेलवे पर 52 हज़ार रुपये का बकाया दर्शाया है. बताते हैं कि सेक्रेटरी जनरल द्वारा जब यह कहा गया कि मेट्रो रेलवे को भी अपना बकाया चुकाना होगा, तो मेट्रो के पदाधिकारी रोने जैसी हालत में दिखाई दिए और माइक पर उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला. जबकि बताते हैं कि बिलासपुर ईसीएम में मेट्रो का सभी बकाया माफ़ कर दिए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव पास किया गया था. 

'रेलवे समाचार' से बातचीत में कई जोनल महासचिवों ने कहा कि मेट्रो के साथ फेडरेशन और सेक्रेटरी जनरल की यह वादाखिलाफी ही नहीं, बल्कि भारी विश्वासघात भी है. इन महासचिवों ने दबी जबान में यह भी कहा कि दिल्ली में कराए गए पिछले सेमिनार में हुए सात लाख रु. के खर्च का हिसाब अबतक नहीं दिया गया है, और इस सेमिनार के खर्च और एकत्रित हुई राशि का तो फ़िलहाल कहना ही क्या? बताते हैं कि प. रे. के श्री शैली ने अगले साल की एजीएम अपने यहाँ मुंबई में कराने का एक प्रस्ताव रखा ही था कि सेक्रेटरी जनरल ने इस मुद्दे को लपक लिया और घोषणा कर दी कि अगली एजीएम 'दिसंबर' में समंदर किनारे वापी, प. रे. में होगी. हालाँकि बताते हैं कि कई प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया कि जब अगली एजीएम जुलाई में हमेशा होना तय रहता है तो दिसंबर में क्यों? मगर उनकी बात को पूरी तरह अनसुना कर दिया गया, क्योंकि सेक्रेटरी जनरल जनवरी 2013 में अपने रिटायर होने तक सेक्रेटरी जनरल बने रहना चाहते हैं, जिससे पूर्व सेक्रेटरी जनरल की बराबरी करने और उनकी तरह रिटायर्मेंट तक सेक्रेटरी जनरल बने रहने की उनकी ख्वाहिश पूरी हो सके. मगर एकाध को छोड़कर लगभग सभी जोनल महासचिव इससे न सिर्फ असहमत हैं, बल्कि वह इसे वर्तमान सेक्रेटरी जनरल की चालाकी भरी एक सर्वथा अनैतिक और असंवैधानिक कोशिश बता रहे हैं. उनका यह भी कहना था कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार फेडरेशन का पीपीपी सेमिनार मात्र डेढ़ घंटे से भी कम समय में निपट गया. बताते हैं कि इसमें सिर्फ तीन वक्ता ही थे. सर्वप्रथम द. रे. के श्री वरदराजन ने 15-20 में मिनट अपना पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन दिया. तत्पश्चात रेलवे बोर्ड की तरफ से आए मुख्य वक्ता और ईडी/पीपीपी श्री एस. के. मिश्रा ने करीब आधे घंटे से भी काम समय में अपना मुख्य वक्तव्य समाप्त कर दिया, क्योंकि जब सुनने वाले ही मात्र 40-45 लोग हों तो सुनाने वाले की रूचि कैसे हो सकती है. बताते हैं कि ज्यादातर लोग कोलकाता घुमने चले गए थे. इसके बाद बताते हैं कि 'पीपीपी विशेषज्ञ' उर्फ़ सेक्रेटरी जनरल ने जरुर आधे घंटे से कुछ ज्यादा समय तक अपनी 'विशेषज्ञता' का प्रदर्शन किया. कुल मिलाकर सेक्रेटरी जनरल का यह सेमिनार शो पूरी तरह फ्लॉप रहा. 

बताते हैं कि इससे पहले सेक्रेटरी जनरल ने अपने एक बिरादरी डीएलडब्ल्यू के महासचिव श्री एस. के. सिंह को खड़ा करके उनसे 'रेलवे समाचार' के पिछले कई अंकों में छपी खबरों को 'कंडम' करने का प्रस्ताव रखवाया. जिसे पूर्वोत्तर रेलवे के महासचिव श्री खुराना ने यह कहकर समर्थित किया कि 'हमने इस पेपर को मांगना और पढ़ना बंद कर दिया है.' बाकी किसी प्रतिनिधि अथवा जोनल पदाधिकारी ने इस प्रस्ताव पर अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. इस पर बताते हैं कि सेक्रेटरी जनरल ने कहा कि 'आप लोग किसी 'स्तरीय' पेपर को पढ़ा करें.' बहरहाल, इस पर कुछ पदाधिकारियों का कहना था कि 'इसी अख़बार ने पिछले 10-12 सालों में प्रमोटी अधिकारियों की तमाम समस्याओं को तब हाई लाइट किया, जब कोई अन्य अख़बार हमारी समस्याओं को समझने तक को तैयार नहीं था.' उनका यह भी कहना था कि 'इसी अख़बार ने प्रमोटी अधिकारियों को रेलवे में उनकी गरिमा, सम्मान और पहचान दिलाई है, परन्तु आज एक 'अहमक' की 'अहंमन्यता' के कारण एक खास अख़बार को प्रमोटी अधिकारियों के खिलाफ खड़ा होने के लिए मजबूर किया जा रहा है. 
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