Monday 12 December, 2011

विवादास्पद डीसीआई हेतु की जा 


रही है गोरखपुर में पद की व्यवस्था 

गोरखपुर ब्यूरो : 'रेलवे समाचार' के पिछले अंक में पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के डीसीआई वी. पी. उपाध्याय को मात्र 15 महीने में ही गोंडा से गोरखपुर में पुनः पदस्थ किए जाने के सम्बन्ध में मंडल रेल प्रशासन के विवादास्पद निर्णय को उजागर किया गया था. इस सन्दर्भ में पता चला है कि मंडल रेल प्रशासन द्वारा बजाय अपने गलत निर्णय पर पुनर्विचार करने और उसे निरस्त किए जाने के अब उक्त भयानक विवादास्पद डीसीआई के लिए गोरखपुर में डीसीआई का एक अतिरिक्त पद सृजित अथवा शिफ्ट किया जा रहा है. इस सम्बन्ध में प्राप्त जानकारी के अनुसार गोंडा में जिस पद पर श्री उपाध्याय को ट्रांसफ़र किया गया था, अब वही पद उनके लिए गोरखपुर लाया जा रहा है. क्योंकि जिस पद पर गोरखपुर में उन्हें आनन्-फानन ज्वाइन कराया गया है, उस पर मान्यता प्राप्त यूनियन के शाखा पदाधिकारी गयासुद्दीन पदस्थ हैं, जिन्हें वहां से अब तक रिलीव (कार्यमुक्त) नहीं किया जा सका है. 

कई अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है कि यह शायद अपनी तरह का पहला मामला है, जब रेल प्रशासन इस तरह से किसी विवादास्पद और भ्रष्ट कर्मचारी का इतना जबरदस्त फेवर कर रहा है, कि उसके लिए अतिरिक्त पद की व्यवस्था की जा रही है. उनका कहना है कि एक गलती को छिपाने के लिए प्रशासन द्वारा न सिर्फ बार-बार गलती की जा रही है, बल्कि इस तरह से किसी अत्यंत विवादास्पद कर्मचारी का फेवर करके अन्य कर्मचारियों में भारी दहशत भी फैलाई जा रही है और इस प्रकार से उनके सामने एक गलत उदाहरण भी प्रस्तुत किया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि इस डीसीआई के काले-कारनामों के सम्बन्ध में तब न सिर्फ कई कर्मचारियों ने, बल्कि लोकसभा सांसद श्री बृजभूषण शरण सिंह (दि. 08.12.2009) और पूर्व सांसद एवं समाजवादी पार्टी के महासचिव श्री मोहन सिंह (दि. 19.11.2009 एवं दि. 13.03.2010) तथा गाँधी जयंती समारोह ट्रस्ट, बाराबंकी के चेयरमैन श्री राजनाथ शर्मा (दि. 12.11.2009) एवं सांसद श्री पी. एल. पूनिया (दि. 29.11.2009) ने अपनी-अपनी लिखित शिकायतें रेलमंत्री, प्रधानमंत्री और एडवाइजर विजिलेंस तथा ईडी/इलेक्ट्रिकल एवं एस एंड टी, रेलवे बोर्ड को भेजी थीं. 

बताते हैं कि उपरोक्त शिकायतों के आधार पर ही तत्कालीन महाप्रबंधक के आदेश पर इस विवादास्पद डीसीआई को इसके पूरे सेवाकाल में सर्वथा पहली बार गोरखपुर से बाहर ट्रांसफ़र किया गया था. उल्लेखनीय है कि अब इसके रिटायर्मेंट में करीब एक साल बाकी है. मंडल कार्यालय के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि मंडल वाणिज्य प्रशासन इस डीसीआई को फ़िलहाल गोंडा से गोरखपुर में शिफ्ट करने के पक्ष में कतई नहीं था. सूत्रों का कहना है कि मंडल वाणिज्य प्रशासन ने तत्संबंधी टिप्पणी भी की थी और यह टिप्पणी अभी-भी फाइल में मौजूद है? तथापि इस टिप्पणी को पूरी तरह नजरअंदाज करके मंडल प्रशासन ने उक्त डीसीआई का भरपूर फेवर किया है. सूत्रों का कहना है कि मंडल में पदस्थ एक अधिकारी की सिफारिश पर ऐसा किया गया है? 

इस सन्दर्भ में मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) लखनऊ मंडल, पूर्वोत्तर रेलवे श्री वी. के. यादव ने फोन पर 'रेलवे समाचार' को बताया कि वह इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि से पूरी तरह अनभिज्ञ थे. उन्होंने बताया कि सम्बंधित डीसीआई को लड़की की शादी करनी है, इसके अलावा उसके रिटायर्मेंट को भी कम समय बचा है, इसलिए प्रशासन ने मानवीय आधार पर उसके अनुरोध को स्वीकार करते हुए उसे गोरखपुर में पदस्थ करने का निर्णय लिया था. श्री यादव ने इस सन्दर्भ में रेलवे बोर्ड की तत्संबंधी पॉलिसी का भी हवाला दिया और कहा कि अब जो निर्णय हो गया है, उसका कोई न कोई उचित हल निकाल लिया जाएगा. 

श्री यादव के 'उचित हल' का मतलब यह निकला है कि अब इस डीसीआई के लिए गोंडा का पद गोरखपुर में शिफ्ट करके लाया जा रहा है, क्या इसे किसी भी तरह से प्रशासन का 'उचित हल' कहा जा सकता है? उल्लेखनीय है कि ट्रांसफ़र/पोस्टिंग्स के मामले में रेलवे बोर्ड की पॉलिसी का लब्बो-लुआब यह है कि सर्वप्रथम तो सेवानिवृत्ति के नजदीक पहुंचे (अंतिम तीन वर्षों में) किसी कर्मचारी का ट्रांसफ़र ही न किया जाए, और यदि उसका ट्रांसफ़र किया जाना अपरिहार्य ही हो, तो उसे उसके गृह नगर अथवा उसके आसपास पदस्थ किया जाना चाहिए. परन्तु रेलवे बोर्ड की यह पॉलिसी सम्बंधित विवादास्पद डीसीआई के मामले में कतई लागू नहीं होती है. क्योंकि सर्वप्रथम तो उसका ट्रांसफ़र किया जाना ही अपरिहार्य नहीं था. दूसरे, उसका उक्त पद पर उसका निर्धारित कार्यकाल (3 या 4 वर्ष) भी पूरा नहीं हुआ था. तीसरे, उसका गृह नगर उसकी वर्तमान पदस्थापना से बहुत दूरी पर नहीं है. चौथे, ऐसे कितने कर्मचारियों को उनके बच्चों की शादी अथवा रिटायर्मेंट के नजदीक पहुँचने पर मानवीय आधार पर उनके गृह नगर के आसपास पदस्थ करने पर रेल प्रशासन द्वारा कंसीडर किया जाता है? 

इस सबके अलावा उक्त सम्बंधित डीसीआई की जैसी पृष्ठभूमि रही है, और अभी-भी बनी हुई है, तथा जिन विवादास्पद परिस्थितयों में उसका तबादला गोरखपुर से बाहर गोंडा में किया गया था, उनके मद्देनजर रेलवे बोर्ड की उक्त पॉलिसी का कोई भी प्रावधान उसके मामले में कतई लागू नहीं किया जा सकता है. यह कहना है मंडल के कई अधिकारियों और कर्मचारियों का. उनका यह भी कहना है कि उपरोक्त तमाम तथ्यों को नजरअंदाज करके अपने इस गलत निर्णय के लिए मंडल प्रशासन को रेलवे बोर्ड की संदर्भित पॉलिसी को अपनी ढ़ाल नहीं बनाना चाहिए. अतः मंडल प्रशासन को चाहिए कि वह अपने इस गलत निर्णय को अविलम्ब निरस्त करके उक्त विवादास्पद डीसीआई के गोरखपुर में हुए तबादले को तुरंत रद्द करे, मंडल के तमाम रेलकर्मियों की यही इच्छा है, और तभी उपरोक्त गणमान्य लोगों द्वारा लिखे गए पत्रों तथा तत्कालीन महाप्रबंधक द्वारा लिए गए इस ट्रांसफ़र के निर्णय का सही तात्पर्य परिलक्षित होगा. 
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