Wednesday 19 October, 2011


डीआरएम/सियालदह की मनमानी 


सीनियर डीसीएम की परेशानी 

  • डीआरएम के कदाचार के आड़े आए सीनियर डीसीएम 
  • सीनियर डीसीएम को हटाने का हर हथकंडा अपनाया डीआरएम ने 
  • बेइज्जती से तीन बार कैट में हारा रेल प्रशासन हाई कोर्ट की शरण में
  • सियालदह मंडल के रेलकर्मियों में डीआरएम की अय्याशी के चर्चे 
  • डीआरएम के भागीदार सीनियर डीएफएम और सीनियर डीएसओ   
  • अब कदाचारी डीआरएम को बानाया जा रहा है एसडीजीएम/उ.रे.
कोलकाता : भारतीय रेल में अधिकार के दुरुपयोग और व्यवस्था के मनमानी उपयोग तथा कदाचार का शायद इससे बड़ा कोई दूसरा उदहारण नहीं हो सकता. सियालदह मंडल, पू. रे. में रेलमंत्री की नाक के नीचे चल रही डीआरएम की मनमानी का खामियाजा एक तरफ ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ सीनियर डीसीएम को भुगतना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ रेलवे को वित्तीय रूप से इसकी भरपाई करनी पड़ रही है. दो-दो बार कैट द्वारा रेलवे पर हजारों रु. का जुर्माना लगाने और सीनियर डीसीएम के पक्ष में तीन-तीन बार निर्णय देने के बावजूद रेल प्रशासन की अक्ल का दीवाला इस कदर निकला हुआ है कि उसने कैट के निर्णयों के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में अपील की है. जबकि मनमानी, अय्याशी और कदाचार डीआरएम ने किया है, मगर उनके इन तमाम कुकृत्यों पर पर्दा डालने के लिए क़ानूनी लड़ाई में रेलवे के लाखों रु. बरबाद हो रहे हैं. यही नहीं, अब ताज़ा खबर यह है कि इस कदाचारी डीआरएम को उ. रे. दिल्ली में पदस्थ करके और एसडीजीएम बनाकर उपकृत किया जा रहा है. सवाल यह है कि ऐसे कदाचारी अधिकारी को जब एसडीजीएम बनाया जाएगा, तो व्यवस्था का क्या होगा..? प्राप्त जानकारी के अनुसार डीआरएम/सियालदह, पू. रे. श्री पुरुषोत्तम कुमार गुहा, जिनका कार्यकाल पूरा हो गया है और इस महीने के अंत में वह डीआरएम का चार्ज छोड़ रहे हैं, और सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार के बीच मनमुटाव की सैद्धांतिक शुरुआत मार्च 2009 के आसपास श्री गुहा की मनमानी से हुई थी. तभी इन दोनों 'समगोत्रीय' अधिकारियों की पोस्टिंग इस मंडल में हुई ही थी. 

यह तो सर्वज्ञात ही है कि तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने श्री गुहा को आउट ऑफ़ टर्न सियालदह मंडल का डीआरएम बनाया था, क्योंकि उन्हें वहां अपने चुनावों की पृष्ठभूमि और पार्टी फंड को मजबूत करना था. सो तो श्री गुहा ने अपने और पार्टी दोनों के लिए पर्याप्त रूप से किया है. यह भी सियालदह मंडल के प्रत्येक कर्मचारी और अधिकारी को बखूबी ज्ञात है. जहाँ तक फंडिंग की बात है तो वहां कोई भी उनके आड़े नहीं आया, मगर जब नाच-गाने (कल्चरल ग्रुप) के नाम पर महिला रेलकर्मियों और रेलवे में भर्ती कराने के नाम पर बाहरी 'सोसाइटी गर्ल्स' का कथित इस्तेमाल डीआरएम श्री गुहा द्वारा अपनी तथाकथित अय्याशी के लिए किया जाने लगा, और उनके इन कुकृत्यों में उनके बराबर के भागीदार रहे 'सर्वकालिक पापी' सीनियर डीएफएम एवं सीनियर डीएसओ जैसे कुछ अन्य पापी ब्रांच अफसरों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिलने लगा तथा इससे खासतौर पर बुकिंग, आरक्षण, पार्सल/गुड्स जैसे वाणिज्य डिपुओं का दैनंदिन कार्य बुरी तरह प्रभावित होने लगा, तो सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार उनके आड़े आ गए. बताते हैं कि डीआरएम श्री गुहा के लिए खूबसूरत महिला रेलकर्मियों को ताड़ने का काम सीनियर डीएसओ करता था, बताते हैं कि जब वह इसकी रिपोर्ट देता था तब डीआरएम श्री गुहा उक्त स्टेशन का निरीक्षण दौरा बनाकर वहां जाते और कोई कमी निकालकर उक्त महिला कर्मी को डाँटते और ऐसा माहौल बनाते कि अब उसकी नौकरी तो गई, तब दूसरे दिन उनका 'दलाल' सीनियर डीएसओ वहां जाता और उसे समझाता कि वह डीआरएम साहेब के 'कल्चरल ग्रुप' में शामिल हो जाए तो उसे कुछ नहीं होगा. बताते हैं कि कई बार तो इसकी भी नौबत नहीं आती थी और महिला कर्मी स्वयं ही डीआरएम को अपने ऊपर 'फ़िदा' देखकर वैसे ही 'पसड़' जाती थी, तब डीआरएम साहेब का निरीक्षण तो दस-पांच मिनट का होता, मगर वह पसंद आई महिला से अकेले में एकाध घंटा 'बतियाते' रहते थे. 

यही हुआ था दक्षिणेश्वर और रानाघाट स्टेशनों के तथकथित निरीक्षण के दौरान, जहाँ श्री गुहा ने 10 मिनट निरीक्षण के बाद महिला बुकिंग क्लर्कों से एक-एक घंटा अकेले में बात की और वापस आ गए. दूसरे दिन उनके 'दलाल' सीनियर डीएसओ उक्त महिला बुकिंग क्लर्क को पटाने दक्षिणेश्वर गए, जबकि उस दौरान उन्हें रानाघाट में चल रहे सीआरएस इंस्पेक्शन में उपस्थित रहना चाहिए था. 'दलाल' द्वारा सहमति ले लिए जाने बाद उक्त महिला कर्मी को डीआरएम के 'कल्चरल ग्रुप', जिसे अब मंडल में सभी रेलकर्मी डीआरएम के 'अय्याशी ग्रुप' के नाम से जानते हैं, में शामिल होने का आदेश निकाल दिया गया. बताते हैं कि अब बात आई उक्त महिला कर्मी को 'प्रैक्टिस' के लिए स्पेयर करने की, यहाँ सीनियर डीसीएम अनिल कुमार की भूमिका शुरू होती है. क्योंकि उनकी सहमति और इजाजत के बिना वाणिज्य विभाग की किसी भी कर्मचारी को किसी अन्य काम के लिए स्पेयर नहीं किया जा सकता था. जब श्री अनिल कुमार ने उसे स्पेयर नहीं किया, तो उनसे नाराज़ होकर श्री गुहा ने उनका ट्रान्सफर द. रे. में करा दिया. हालाँकि इससे पहले श्री अनिल कुमार उनकी हर बात न-नुकुर करते हुए भी मानते रहे थे. बताते हैं कि जब भी श्री गुहा ने किसी खूबसूरत महिला कर्मी को देखा, फिर वह चाहे किसी भी ब्रांच अफसर के मातहत कार्यरत रही हो, उसे श्री गुहा ने अपने कार्यालय में तैनात करने अथवा 'कल्चरल ग्रुप' के लिए स्पेयर करने का आदेश दे दिया. इसी तरह उन्होंने इंजीनियरिंग विभाग की एक महिला खलासी को न सिर्फ अपने कार्यालय में पदस्थ कराया, बल्कि उसे 'अपनी पीआरओ' भी बनाया. यही नहीं कागज़ पर वह श्री गुहा की 'असिस्टेंट टू डीआरएम' होती थी, जिसके साथ वह अपने चेंबर में घंटों अकेले रहकर 'जनसंपर्क' स्थापित करते थे? इसके अलावा कार्मिक विभाग की एक 28-30 वर्षीया महिला प्यून उनके साथ अम्बेसडर गाड़ी में अकेले बैठकर 'सफ़र' करती थी. वह भी 'असिस्टेंट टू डीआरएम' होती थी, जो की गाड़ी में 'साहेब' को 'सहयोग' करती थी? 

बताते हैं कि उपरोक्त कृत्यों के बारे में डीआरएम कार्यालय का प्रत्येक कर्मचारी जनता है कि वास्तव में क्या होता था. वह बताते हैं कि श्री गुहा की 'अय्याशी' का अड्डा बंगला नंबर 210 था, जो कि एक रेस्ट हाउस है, मगर श्री गुहा ने उसे अपने तथकथित 'कल्चरल ग्रुप' उर्फ़ 'अय्याशी ग्रुप' की 'डांस प्रैक्टिस' का केंद्र बना लिया था. बताते हैं कि इस 'ग्रुप' में दक्षिणेश्वर और रानाघाट की उक्त महिला बुकिंग क्लर्कों सहित जेसीएस की एक महिला कर्मी, कार्मिक विभाग की एक महिला ओएस, सियालदह स्टेशन कंट्रोल की एक महिला एएसएम और कुछ बाहरी 'सोसाइटी गर्ल्स' को भी रेलवे में भर्ती करा देने के नाम पर शामिल किया गया था. यह सर्वज्ञात है कि श्री गुहा जब तब अपने कार्यालय से उठकर और बंगला नंबर 210 में जाकर उक्त महिला कर्मियों के साथ 'डांस प्रैक्टिस' करने लग जाते थे? बताते हैं कि इस कथित कल्चरल ग्रुप में श्री गुहा की पसंद के अनुसार 8-9 से 15-16 साल, 17-18 से 22-24 साल, और 25-26 से 30-35 साल आयु वर्ग की महिलाओं के ग्रुप बनाए गए थे. कर्मचारियों का कहना है कि श्री गुहा की सबसे ज्यादा दिलचस्पी मध्य वर्ग ग्रुप यानि 17-18 से 22-24 साल के महिला ग्रुप में होती थी? 

बताते हैं कि श्री गुहा की इन 'डांस प्रैक्टिस' के लिए महिला कर्मियों को स्पेयर नहीं करना और इस कारण से उनको शोषण से बचाने सहित सीमित एवं कम स्टाफ में रेलवे का दैनंदिन कामकाज करवाना ही सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार का मुख्य उद्देश्य था. हालाँकि एक को छोड़कर श्री गुहा की इन तमाम तथाकथित अय्याशियों का कोई कागजी सबूत मौजूद नहीं है, तथापि उनकी इन अय्याशियों के बारे में मंडल के तमाम कर्मचारियों और अधिकारियों को इनकी सच्चाई पर भी कोई संदेह नहीं है. बहरहाल, जब सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार डीआरएम श्री पुरुषोत्तम कुमार गुहा की इन तमाम अय्याशियों और कदाचारों के आड़े आ गए, तो श्री गुहा ने द. रे. में उनका इंटर रेलवे ट्रान्सफर करा दिया. यहाँ यह पृष्ठभूमि भी जानना जरूरी है कि श्री गुहा पूर्व रेलमंत्री ममता बनर्जी के ड्राइवर रतन मुखर्जी और ईडीपीजी रहे जे. के. साहा के कृपा-पात्र हैं. बताते हैं कि श्री गुहा ने खुद और मुखर्जी-साहा के माध्यम से भी कान की कच्ची ममता बनर्जी के कान भरे कि श्री अनिल कुमार बंगाली विरोधी और सीपीएम के समर्थक हैं. फिर 'विषधर' विवेक सहाय, जो उस समय मेम्बर ट्रैफिक थे, के आदेश से श्री अनिल कुमार को द. रे. में ट्रान्सफर करा दिया. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री गुहा के आदेश पर लिखित आर्डर के बाद श्री अनिल कुमार को 45 दिन की जबरन छुट्टी पर भेजा गया, परन्तु इसी दरम्यान उनका तबादला द. रे. में कर दिए जाने का आदेश भी उन्हें थमा दिया गया. बताते हैं कि श्री अनिल कुमार ने अकारण इंटर रेलवे ट्रान्सफर के इस आदेश को कैट में चुनौती दे दी, जहाँ उन्हें पहले स्टे मिला और बाद में वह केस भी जीत गए तथा कैट ने इसके लिए रेलवे पर 1000 रु. का जुर्माना भी लगाया. तत्पश्चात श्री गुहा ने श्री अनिल कुमार को एकदम अधिकारविहीन और निष्क्रिय करने का एक खेल और खेला, वह यह कि कंस्ट्रक्शन की जेएजी की एक वर्कचार्ज पोस्ट का एलिमेंट उठाकर उसका उपयोग मंडल में बतौर सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन कर लिया तथा उसपर खड़गपुर मंडल, द. पू. रे. से एक अधिकारी को लाकर पदस्थ कर दिया. श्री अनिल कुमार ने रेलवे (डीआरएम) की इस तिकड़मबाजी और मनमानी को भी कैट में चैलेंज कर दिया. कैट ने इस बार भी न सिर्फ उनके पक्ष में निर्णय दिया, बल्कि उक्त सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट को भी स्क्रैप करने का आदेश दिया. उल्लेखनीय है कि पूरी भारतीय रेल में सियालदह मंडल में ही पहली बार सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट स्थापित की गई थी. ममता बनर्जी के राज में 'विषधर' और उनकी चांडाल चौकड़ी की मनमानी तथा सत्ता के दुरुपयोग की यह इन्तहा है. इस चांडाल चौकड़ी की यह इन्तहा यहीं ख़त्म नहीं हुई, बल्कि अपना दूसरा दांव भी खाली गया देखकर इस बार श्री गुहा ने श्री अनिल कुमार का ट्रान्सफर डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की उस पोस्ट पर करा दिया जिस पर एक अन्य अधिकारी का सीनियर स्केल से प्रमोशन ड्यू था, इस वजह से उक्त अधिकारी का प्रमोशन करीब दो साल डिले हो गया. मगर सत्ता के वरदहस्त और उसके नशे में चूर श्री गुहा का क्या जाता था. परन्तु श्री अनिल कुमार ने भी हार नहीं मानी और तीसरी बार उन्होंने उनकी इस मनमानी के खिलाफ फिर से कैट का दरवाजा खटखटा दिया. इस बार भी कैट में न सिर्फ रेलवे को मुंह की खानी पड़ी, बल्कि कैट ने इस बार उसपर 5000 रु. का जुर्माना भी ठोंक दिया. 

पता चला है कि अब जीएम पर दबाव डालकर कैट के आदेश के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में रेलवे ने श्री अनिल कुमार के विरुद्ध अपील की है. जहाँ एक तिकड़म के तहत अथवा चालबाजी करके पू. रे. के दरम्यान कहीं भी श्री अनिल कुमार का ट्रान्सफर किए जाने का अंतरिम आदेश रेलवे को मिल गया है. तथापि सूत्रों का कहना है कि श्री अनिल कुमार ने इस मनमानी के सामने हार नहीं मानने का मन बना लिया है और शीघ्र ही वह कोलकाता हाई कोर्ट के इस अंतरिम आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका (एसएलपी) दायर करने जा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि 'रेलवे समाचार' द्वारा इन तमाम करतूतों को एक्सपोज कर दिए जाने के बाद रेल प्रशासन ने 19 अक्तूबर को एक और बचकानी हरकत करते हुए एक चिट्ठी भेजकर श्री अनिल कुमार को डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की पोस्ट पर अब तक ज्वाइन न करने का स्पष्टीकरण देने को कहा, अन्यथा उन्हें ड्यूटी से अनधिकृत रूप से गायब माना जाएगा. जबकि बताते हैं कि श्री अनिल कुमार ने 7 अक्तूबर और 14 अक्तूबर को दो बार आवेदन देकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने जाने का कारण बताते हुए छुट्टी दिए जाने की दरख्वास्त दी हुई है, जिसका कोई जवाब रेल प्रशासन ने उन्हें अब तक नहीं दिया है. 

जबरन छुट्टी पर भेजने, द. रे. में ट्रान्सफर कराने, सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट क्रिएट करके अधिकारविहीन करने और डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की पोस्ट पर तबादला करने जैसे चार-चार प्रयासों में जब डीआरएम श्री गुहा सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार को मंडल से हटाने में नाकाम रहे, तब पांचवीं बार वह उन्हें एक महीने के लिए ट्रेनिंग पर रेलवे स्टाफ कालेज, वड़ोदरा भेजने में कामयाब हो गए. इधर, इस बीच उन्होंने कैट के आदेशानुसार सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट को स्क्रैप करके उस पर रहे श्री आर. के सिंह को सीनियर डीसीएम बनाकर बैठा दिया. बताते हैं कि अब जब श्री अनिल कुमार अपनी तथाकथित ट्रेनिंग समाप्त करके वापस आए तो उनसे कहा गया कि मंडल में तो उनके लिए जगह नहीं है, अगर उन्हें ज्वाइन करना है, तो डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की अपनी खाली पड़ी पोस्ट पर जाकर ज्वाइन कर सकते हैं. 

तो, फ़िलहाल श्री अनिल कुमार छुट्टी की अर्जी देकर मगर छुट्टी मंजूर नहीं किए जाने के बावजूद रेल प्रशासन और व्यवस्था की मनमानी के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं. हालाँकि मंडल के सभी अधिकारी और कर्मचारी, कुछ उठाईगीरों को छोड़कर, उनके साथ हैं, मगर सत्ता के दलालों के डर से कोई खुलकर सामने नहीं आ सकता है. जबकि उनके वरिष्ठ और कंट्रोलिंग अधिकारी सीओएम और सीसीएम दोनों नाकारा एवं नपुंसक बनकर उनके खिलाफ हो रहे इस अन्याय और अनीति को चुपचाप देख रहे हैं. इस सम्बन्ध में 'रेलवे समाचार' द्वारा संपर्क किए जाने पर श्री अनिल कुमार ने अन्याय के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई जारी रखने की पुष्टि करते हुए बाकी कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. जबकि मोबाइल पर श्री गुहा से संपर्क किए जाने और उनसे यह पूछे जाने पर कि अपने ही कैडर के और अपने ही जूनियर एक ब्रांच अधिकारी से उनकी ऐसी क्या अदावत हो गई, जो कि अदालत तक जा पहुंची है? इस पर श्री गुहा का कहना था कि मामला अदालत के विचाराधीन है, इसलिए फ़िलहाल इस पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. परन्तु जब उनसे यह कहा गया कि मामला तो न्याय-अन्याय और नियमों के पालन को लेकर कोर्ट के विचाराधीन है, मगर हम तो सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि आखिर झगड़ा किस बात को लेकर हुआ, जो कि आपने उन्हें इंटर रेलवे ट्रान्सफर करा दिया? इस पर श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने नहीं कराया, बोर्ड ने किया था. मगर बोर्ड भी तो बिना डीआरएम और जीएम की सहमति के उसके किसी ब्रांच अफसर का तबादला नहीं करता है? इस पर उनका कहना था कि फ़िलहाल इस मामले में कुछ न लिखा जाए तो बेहतर होगा. परन्तु जब उन्हें यह बताया गया कि खबर यह भी आई है कि आपने महिला कर्मियों की नजदीकी और उन्हें गैर रेलवे कार्यों में उपयोग करना चाहा, जिन्हें उन्होंने स्पेयर नहीं किया था और वह आपके इस कदाचार के आड़े आए, जिससे नाराज़ होकर आपने उनका तबादला करवाया, क्या यह सही है? इस पर श्री गुहा ने यह कहते हुए सम्बन्ध विच्छेद कर दिया कि वह अभी मंत्री के कार्यक्रम में बिजी हैं, इस विषय में वे बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे..! 

पुरुषोत्तम कुमार गुहा, डीआरएम/सियालदह/पू. रे. 

श्री गुहा को सियालदह मंडल का समस्त रेलवे स्टाफ कदाचार, अय्याशी, मनमानी और तिकड़मबाजी के हर फन में माहिर मानता है. डीआरएम कार्यालय के स्टाफ का कहना है कि उन्होंने अपने इन कारनामों से अपने नाम 'पुरुषोत्तम' को ही कलंकित किया है. उनका कहना है कि श्री गुहा तो किसी से दो-चार किलो आम-लीची भी ले लेने से भी नहीं हिचकते हैं. उनके 'संदिग्ध चरित्र' के बारे में मंडल के किसी भी रेल कर्मचारी या अधिकारी को कोई संदेह नहीं है. स्टाफ का कहना था कि कोई भी डीआरएम या इस स्तर का रेल अधिकारी अपनी गरिमा का ख्याल रखते हुए अपने मातहत कार्यरत महिला खलासी अथवा महिला बुकिंग क्लर्क या महिला ओएस या फिर महिला एएसएम आदि महिला कर्मियों से स्टेशन पर अथवा अपने चेंबर में खुलेआम अकेले घंटों 'बात' नहीं करता है. स्टाफ के कई वरिष्ठ कर्मचारियों ने श्री गुहा की तमाम चर्चाओं (कदाचारों) की पुष्टि करते हुए बताया कि सियालदह से उनके दिल्ली निवास में राजधानी-दुरंतो आदि गाड़ियों में लादकर घरेलू इस्तेमाल की तमाम चीजें (राशन, सब्जियां, मछली, तेल-साबुन आदि) पहुंचाई जाती रही हैं. उनका यह भी कहना था कि डीआरएम के अपने दो साल के कार्यकाल में श्री गुहा ने शायद कभी-भी अपने पैसे से कोई भी घरेलू सामान नहीं ख़रीदा होगा. इस बात के साथ श्री गुहा के तमाम कदाचारों की भी पुष्टि करते हुए उनके साथ ज्यादातर समय रहने वाले एक अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि दो दिन पहले दो साल में पहली बार उसने श्री गुहा के पर्स का कलर देखा, वरना उसने दो साल में उन्हें अपनी जेब में हाथ डालते कभी नहीं देखा. बताते हैं कि स्पोर्ट्स फंड से पास ही स्थित रीबाक स्टोर्स से श्री गुहा के लिए उनकी चड्ढी-बनियान सहित तमाम कपडे ख़रीदे जाते रहे हैं. यहाँ तक कि 'मेम साहब' की साड़ियाँ दिल्ली से राजधानी-दुरंतो द्वारा धुलने के लिए सियालदह आती रही हैं और इन सबका भुगतान विभिन्न डिपुओं के 'इम्प्रेस्ट' से किया जाता रहा है तथा यह राशन-पानी, शाक-सब्जियां और तमाम कपड़े-लत्ते दिल्ली पहुँचाने रेलवे का स्टाफ जाता-आता रहा है. उनके बच्चों के लिए पेन-पेन्सिल, कापी-किताबें, मोबाइल सेट, लेपटाप-कंप्यूटर-प्रिंटर आदि कुछ खास पार्टियों द्वारा उपलब्ध कराई जाती रही हैं. इस सबके साथ बाहरी कमसिन सोसाइटी गर्ल्स की व्यवस्था 'महान सीटियाबाज' सीनियर डीएफएम करवाते रहे हैं, जिन्हें अब उन्होंने भविष्य के लिए कई बड़े शहरों में स्थित कपड़े के अपने कई शोरूम्स में नौकरी पर रख लिया है. जबकि सीनियर डीएफएम सहित सीनियर डीईएन और सीनियर डीएसओ एवं कुछ अन्य अधिकारी न सिर्फ शराब और शबाब उपलब्ध करवाते रहे हैं, बल्कि डीआरएम की मौज-मस्ती में भी बराबर के भागीदार बताए जा रहे हैं. स्टाफ और निचले स्तर के कुछ अधिकारियों को इन लोगों से इतनी ज्यादा नफरत हो गई है कि उनका कहना था कि 'डीआरएम को हर चीज में पैसा चाहिए, बिना पैसे के वह कोई काम नहीं करते हैं तथा हर ठीक-ठाक दिखने वाली महिला कर्मचारी उनकी 'अंकशायिनी' हो जानी चाहिए, ऐसे में उनसे बेहतर तो कु...ही होता है, जो हर कु... के पीछे नहीं भागता..?' उनका यह भी कहना था कि श्री गुहा और उनके चापलूसों की सभी हरकतों के बारे में वर्तमान रेलमंत्री को गहरी जानकारी है और इसके प्रति उन्होंने अपनी नाराज़गी भी जाहिर की है. इसी वजह से उनके चार्ज सँभालते ही श्री गुहा का कथित कल्चरल ग्रुप ख़त्म हो गया है, जिसमे शामिल प्रत्येक महिला कर्मियों को वह 25-30 हज़ार रु. प्रति प्रोगाम भत्ता देते थे और कास्ट्यूम चेंजिंग रूम में घुसकर उन्हें 15-20 हज़ार रु. की साड़ियाँ पहनाते थे, जबकि छोटे-छोटे भुगतान करने के लिए रेलवे के पास फंड नहीं है का रोना रोते थे.? 

अनिल कुमार, सीनियर डीसीएम/सियालदह/पू.रे. 

श्री अनिल कुमार एक निहायत ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी हैं. सियालदह मंडल, पू. रे. कोलकाता में बतौर सीनियर डीसीएम उनकी पोस्टिंग फरवरी-मार्च 2009 में हुई थी. उन्होंने अपने इस संघर्षपूर्ण कार्यकाल में मंडल की न सिर्फ समस्त वाणिज्य व्यवस्था और उसकी कार्य संस्कृति में आमूलचूल सुधार किया, बल्कि मंडल में चल रहे यूनियनों के ट्रान्सफर/पोस्टिंग एवं चार्जशीट/दंड माफ़ कराने के धंधों को भी समाप्त कर दिया था. उनके चेंबर का दरवाजा हमेशा हर किसी कर्मचारी के लिए खुला रहता था और प्रत्येक कार्य नियमानुसार एवं सीनियरटी तथा मेरिट के अनुसार ही होता था. उन्होंने पार्सल/गुड्स और बुकिंग/आरक्षण आदि सभी वाणिज्य डिपुओं में वर्षों से एक ही जगह पर जमे कर्मचारियों और यूनियन पदाधिकारियों को भी स्थानांतरित कर दिया था. उनकी इस कार्य-प्रणाली के चलते मंडल की वाणिज्य आय 200% से ज्यादा बढ़ गई थी. बताते हैं कि वह जब यहाँ सीनियर डीसीएम बनकर आए थे तब मंडल की हालत बहुत खस्ता थी, और बमुश्किल 18 बुकिंग काउंटर ही खलते थे. उन्होंने उतने ही स्टाफ से वहीँ न सिर्फ 28-30 काउंटर खुलवाए, बल्कि ज्यादा अर्निंग भी दी. तमाम रेवेन्यु लीकेज को बंद किया. स्टाफ की हरामखोरी ख़तम करने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के बावजूद मंडल का यही स्टाफ, कुछ उठाईगीरों और कामचोर/भ्रष्ट यूनियन लीडरों को छोड़कर, आज भी यही चाहता है कि मंडल में उनके सीनियर डीसीएम अनिल कुमार ही रहें. यही वजह रही है कि मंडल को जीएम की वाणिज्य शील्ड मिली हैं. तथापि मंडल की संपूर्ण कार्य-संस्कृति में बड़ा बदलाव करने वाले श्री अनिल कुमार को एक चरित्रहीन महिला कर्मचारी को उनके चेंबर भेजकर उन्हें फंसाने की भी चाल डीआरएम की सहमति से कुछ यूनियन पदाधिकारियों ने चली थी.? वह तो उनकी किस्मत अच्छी थी कि बच गए, जबकि रेलवे एवं कोलकाता की हाई सोसाइटी गर्ल्स की खुलेआम संगति करने वाले डीआरएम को कुछ नहीं हुआ.? इस आउट स्टैंडिंग परफोर्मेंस के बावजूद श्री अनिल कुमार को पिछले दो वर्षों के दौरान इंटर रेलवे सहित 4-5 ट्रान्सफर झेलने पड़े हैं, जिनके खिलाफ उनकी अथक क़ानूनी लड़ाई जारी है. जबकि सीओएम के सेक्रेटरी की पोस्ट पर पिछले 10 वर्षों से भी ज्यादा समय से बैठे विश्वजीत चक्रवर्ती को वहीँ बैठकर न सिर्फ सारे प्रमोशन मिले हैं, बल्कि पू. रे. में ट्रैफिक एवं कमर्शियल विभाग के ट्रैफिक अधिकारियों की ट्रान्सफर/पोस्टिंग में होने वाली करोड़ों की अवैध कमाई के वह अकेले 'चक्रवर्ती सम्राट' बने हुए हैं. इसके अलावा डीआरएम के 'दलाल' की भूमिका बखूबी निभाने वाले सीनियर डीएसओ तपन कुमार दास आजतक पडोसी गंगा पार हावड़ा मंडल में भी पदस्थ नहीं हुए हैं, क्योंकि वह चापलूसी पसंद अपने वरिष्ठों के तलुए चाटने/सहलाने और उन्हें शराब-शबाब-कबाब तक की सारी सुविधाएं मुहैया कराने में माहिर बताए जाते हैं? पू. रे. में ऐसे अभी और बहुत से अधिकारी हैं, जो 'अल्ला मेहरबान तो गधा पहलवान' की तर्ज़ पर वर्षों से एक ही जगह बैठकर दंड-बैठक पेल रहें है, उनकी भी खबर जल्दी ही ली जाएगी...!! 
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी 

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