Tuesday 4 October, 2011


परेशान रेलवे बोर्ड ने बनाया फेडरेशन को मोहरा 
आरडीएसओ को पूर्ण जोनल रेलवे का दर्ज़ा और आरडीएसओपीओए का रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत की मानहानि का मुकदमा 

नयी दिल्ली : प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2002 में 7 नई जोनल रेलवे बनाए जाने के साथ ही आरडीएसओ को भी दि. 01.10.2002 के गजट नोटिफिकेशन में दि. 01.01.2003 से एक जोनल रेलवे का दर्ज़ा घोषित किया गया था. इसके बावजूद रेलवे बोर्ड ने आजतक अपनी इस घोषणा पर वास्तविक रूप में अमल नहीं किया, जिससे आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों को समान पदोन्नति एवं अन्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था. तमाम कोशिशों के बाद भी जब रेलवे बोर्ड ने अपनी ही घोषणा पर अमल नहीं किया और लगातार टालमटोल का रवैया अपनाया जाता रहा, तो आरडीएसओ प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन (आरडीएसओपीओए) ने इस मामले को अदालत में चुनौती दे दी. अदालत का निर्णय प्रमोटी अफसरों के हक में आया, तब भी रेलवे बोर्ड के कान में जूं नहीं रेंगी और जब उसने अदालत के निर्णय पर अमल नहीं किया, तो आरडीएसओपीओए ने रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत की मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है. 

लखनऊ हाई कोर्ट में इसकी अगली सुनवाई अगले महीने नवम्बर के मध्य में है. पता चला है कि इससे रेलवे बोर्ड बहुत परेशान हो रहा है, क्योंकि इसके चलते उसे अदालत में बुरी तरह अपनी भद्द पिटने की आशंका हो रही है. हालाँकि बताते हैं कि कोर्ट में उसने आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों को सब कुछ देने की बात मान ली है, परन्तु आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों की मांग है कि जब तक सभी संगठित सेवाओं में उनका इंडक्शन नहीं किया जाता है, तब तक सभी विभागों की डीपीसी को रोक दिया जाए. कोर्ट ने इसे दि. 01.01.2004 से लागू करने का आदेश दिया है. इसमें समय लगने का बेहद बेहयाईपूर्ण तर्क देकर रेलवे बोर्ड कोर्ट और आरडीएसओ के प्रमोटी अधिकारियों को गुमराह करना चाह रहा है. जबकि न सिर्फ पिछले 10 साल उसने टालमटोल में गवां दिए हैं, बल्कि लखनऊ हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के बाद भी उसने करीब 8 महीने का समय यही कहते हुए बिता दिया है, और अब भी और समय की मांग करके एवं भौंड़े तर्क देकर न सिर्फ अपनी खाल बचाने की घटिया कोशिश कर रहा है, बल्कि इसमें वह प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन को भी अपना मोहरा बना रहा है?

बताते हैं कि इस मामले के चलते इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) और आरडीएसओपीओए के बीच काफी मतभेद पैदा हो गए हैं. पता चला है कि फेडरेशन ने इस मामले में आरडीएसओपीओए की कोई मदद नहीं की है क्योंकि उस पर रेलवे बोर्ड का भारी दबाव है कि वह यदि आरडीएसओपीओए को मानहानि का मुकदमा वापस लेने के लिए बाध्य नहीं करता है, तो पोस्टों के बंटवारे में ग्रुप 'बी' को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार आईआरपीओएफ ने इसी आशंका के मद्देनजर आरडीएसओपीओए की फेडरेशन से संलग्नता को रद्द कर दिए जाने की चेतावनी दी है. पता चला है कि 15-16 सितम्बर को इसी मुद्दे पर विशेष रूप से दिल्ली में बुलाई गई आईआरपीओएफ की कार्यकारिणी मीटिंग (ईसीएम) में इसके साथ ही फेडरेशन के सस्पेंस एकाउंट सहित कुछ और गंभीर मुद्दों को लेकर काफी हंगामा हुआ है. 

उल्लेखनीय है कि तमाम प्रमोटी अधिकारी, आईआरपीओएफ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कार्यकाल को बढाकर तीन साल किए जाने और फेडरेशन की कार्यप्रणाली तथा रेलवे बोर्ड की चापलूसी करने की सारी हदें पर कर दिए जाने को लेकर पहले से ही काफी आक्रोशित हैं. इसके अलावा फेडरेशन की तर्ज़ पर सभी जोनल एसोसिएशनो पर भी अपनी जोनल कार्यकारिणी का कार्यकाल बढाकर तीन साल करने का दबाव डाला जा रहा है. इससे भी तमाम जोनल पदाधिकारी सहमत न होने से फेडरेशन से नाराज हैं. यही नहीं, फेडरेशन की भेदभावपूर्ण कार्यप्रणाली से कई कैडर के अधिकारी भी फेडरेशन और जोनल एसोसिएशनो से न सिर्फ पूरी तरह कट गए हैं, बल्कि कैरियर के मामले में भी उनका भारी नुकसान हुआ है. इस सबके के परिणामस्वरुप प्रमोटी अधिकारियों में ग्रुप 'ए' और ग्रुप 'बी' का भेद भी काफी बढ़ता जा रहा है. ज्ञातव्य है कि इसी भेद को लेकर प्रमोटी अधिकारियों के एक गुट विशेष ने फेडरेशन और रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत में एक मामला भी दाखिल किया हुआ है. अब देखना यह है कि रेलवे बोर्ड और प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन गले में अटकी इस फांस से कैसे निजात पाते हैं? 
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