Thursday 12 April, 2012

सेवानिवृत्ति के बाद पदाधिकारी बने रहने का कोई सवाल ही नहीं है - जे. पी. सिंह

मुंबई : सेवानिवृत्ति के बाद इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) का पदाधिकारी बने रहने अथवा सेवानिवृत्त अधिकारियों को पदाधिकारी बनाए जाने का एक शगूफा छोड़ा गया है. जिससे आजकल भारतीय रेल के तमाम प्रमोटी अधिकारियों में एक प्रकार की खिन्नता देखी जा रही है और इस शगूफे पर वह अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले पांच - छह सालों के दौरान एक पदाधिकारी के कारण वैसे ही फेडरेशन की सारी गरिमा मिट्टी में मिल गई है, और लगभग हर जोन में गंदी राजनीति फ़ैल गई है तथा फेडरेशन की अधिकतर कार्रवाई झूठ पर आधारित हो गई है. ऐसे में अगर वर्तमान महासचिव जैसे झूठों के सरताज पदाधिकारी को सेवानिवृत्ति के बाद भी पदाधिकारी बनाए रखा गया, तो फेडरेशन की बची-खुची अस्मिता भी धूल में मिल जाएगी. इस मुद्दे पर 'रेलवे समाचार' द्वारा जब यह पूछा गया कि क्या ऐसा कोई विचार फेडरेशन में चल रहा है, तो आईआरपीओएफ के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह ने इसका सिरे से खंडन करते हुए कहा कि ऐसा कोई विचार नहीं चल रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पदाधिकारी बने रहने या सेवानिवृत्त अधिकारी को पदाधिकारी बनाए जाने का कोई सवाल ही नहीं है. सबसे पहले वे स्वयं इस विचार के विरोधी हैं. 

श्री जे. पी. सिंह ने आगे बताया कि इलाहबाद में 15 - 16 मार्च को हुई ईसीएम की दूसरे दिन की बैठक समाप्त होने के बाद एक सदस्य ने इस पर अवश्य कुछ विचार व्यक्त किया था. उन्होंने कहा कि उसका यह विचार बैठक का हिस्सा नहीं था. तथापि उक्त सदस्य के यह विचार व्यक्त करते ही उस पर वहां उपस्थित सभी अधिकारियों ने तुरंत इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया था. उसके बाद यह बात वहीं ख़त्म हो गई थी. श्री सिंह का कहना था कि कुछ लोग हैं जो बात का बतंगड़ बनाते रहते हैं. उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस मुद्दे पर कोई भी अधिकारी सहमत नहीं होगा और सबसे पहले वह खुद इस तरह के किसी विचार या प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेंगे.  उन्होंने बताया कि सबसे लम्बे समय तक निर्विरोध निर्वाचित होते रहे पूर्व महासचिव श्री के. हसन को सेवानिवृत्ति के बाद फेडरेशन का महासचिव बनाए रखने पर सहमति नहीं हो पाई थी, जबकि तत्कालीन रेलमंत्री उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद महासचिव पद पर बने रहने की मंजूरी देने को तैयार थे, मगर प्रमोटी अधिकारी इसके लिए सहमत नहीं हुए थे और तब गोरखपुर में हुई फेडरेशन की सर्वसाधारण सभा में इसका प्रस्ताव गिर गया था. 

बहरहाल, श्री जे. पी. सिंह की इस स्पष्टोक्ति के बाद अब यह विचार यहीं ख़त्म हो जाना चाहिए. वैसे भी सभी प्रमोटी अधिकारी श्री सिंह का उनकी आदर्शवादिता और ईमानदारी के लिए बहुत सम्मान करते हैं. तमाम प्रमोटी आफिसर निर्विवाद रूप से यह मानते हैं कि फेडरेशन में उनके रहने की वजह से ही वे महासचिव के झूठ, गलतबयानी और गंदी राजनीति के साथ ही उनके तमाम संदिग्ध कार्य-व्यवहार का खुलकर विरोध नहीं कर पाते हैं. उनके मन में फेडरेशन के अध्यक्ष श्री जे. पी. सिंह के प्रति गहरे सम्मान की भावना है, क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलते हैं, और न ही कभी किसी को दिग्भ्रमित करने वाला कोई बयान जारी करते हैं. उनको कोई निर्णय लेने में भी देर नहीं लगती है. वह अनावश्यक कभी किसी विवाद में भी नहीं पड़ते हैं, और न ही कभी कोई विवाद पैदा करते हैं. उनका कहना है कि श्री सिंह अपने ईमानदार आचरण एवं पारदर्शी कार्य-व्यवहार के कारण ही रेलवे बोर्ड की बैठकों में रेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा कार्यालयीन कामकाज में अनियमितता पर निर्भय होकर अपना बेबाक बयान देने में सक्षम होते हैं. जो कि बहुत कम पदाधिकारियों और अधिकारियों में देखा जाता है. 

तथापि श्री सिंह के प्रति उपरोक्त अपनी तमाम सदभावना के बावजूद लगभग सभी जोनो के जोनल पदाधिकारियों और प्रमोटी अधिकारियों की उनसे यह अपेक्षा है कि वे फेडरेशन की अगली सर्वसाधारण सभा नियत समय पर जुलाई में ही करवाने की व्हिप जारी करें. क्योंकि हर साल जनवरी - फरवरी में होने वाली यह सर्वसाधारण सभा (एजीएम) खिसकते - खिसकते अब जुलाई में पहुँच गई है. और अब इसे इस साल जुलाई से भी छह महीने आगे खिसकाकर दिसंबर में करवाने की तैयारी की जा रही है, जो कि अनैतिक है. उनका मानना है कि यदि श्री सिंह चाहें तो यह एजीएम भी अपने नियत समय पर हो सकती है. इस मुद्दे पर भी 'रेलवे समाचार' ने श्री जे. पी. सिंह से उनका विचार जानना चाहा, इस पर श्री सिंह का कहना था कि वह आज ही पद छोड़ने को तैयार हैं, बशर्ते कि कोई आगे आए और जिम्मेदारी संभाल ले. श्री सिंह का आगे कहना था कि यदि कोई पदाधिकारी सेवानिवृत्त हो रहा है और वह चाहता है कि उसकी सेवानिवृत्ति के आस-पास फेडरेशन की भी बैठक रख ली जाए, तो इसमें उन्हें कोई खास बुराई नजर नहीं आती है, तथापि उनका निजी तौर पर यह मानना है कि एजीएम अपने नियत समय पर ही होनी चाहिए और ऐसा करने के लिए जल्दी ही वह अपने पदाधिकारियों से बात करेंगे. 
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