Sunday 13 November, 2011


रेल किराया वृद्धि को लेकर भारी पशोपेश में रेलमंत्री 

नयी दिल्ली : रेलमंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी आजकल बड़ी पशोपेश में हैं. रेल किराए बढ़ाए जाने को लेकर उन पर चौतरफ़ा दबाव पड़ रहा है. रेलमंत्री पर यह दबाव वित्त मंत्रालय, योजना आयोग और रेलवे बोर्ड के बाबुओं तथा रेलवे के मान्यता प्राप्त श्रम संगठनों की तरफ से पड़ रहा है, जो कि रेल किरायों में कम से कम 30% की बढ़ोत्तरी अविलम्ब चाहते हैं. परन्तु केंद्र में सत्ता की प्रमुख भागीदार तृणमूल कांग्रेस की मुखिया एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और वास्तविक रेलमंत्री ममता बनर्जी नहीं चाहती हैं कि डीजल-पेट्रोल की बढ़ी कीमतों का पुरजोर विरोध करने और इस मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापसी तक की घोषणा कर डालने के बाद रेल किरायों में वृद्धि का ठीकरा उन पर और उनकी पार्टी पर फोड़ा जाए. इसलिए योजना आयोग, वित्त मंत्रालय और रेलवे बोर्ड के बाबुओं के भारी दबाव के बावजूद वह श्री त्रिवेदी को रेल किराए बढ़ाने की अनुमति नहीं दे रही हैं. रेलवे बोर्ड के तमाम बाबू लोग भी यह मानते हैं की ममता बनर्जी की सहमति मिले बगैर किराए बढ़ाना न तो रेलवे बोर्ड और न ही केंद्र सरकार के वश की बात है. 

यह सर्वज्ञात है कि रेलवे के असीमित संसाधनों का (दुरु) उपयोग करके ममता बनर्जी ने वामपंथियों से पश्चिम बंगाल में अपनी चिरप्रतीक्षित सत्ता हासिल की है. उन्हें यह खूब अच्छी तरह पता है कि पश्चिम बंगाल में कीमतें बढ़ने और खासतौर पर रेल किराए बढ़ने पर बंगाली भद्रलोक में कितना जबरदस्त आक्रोश पैदा होता है. इसीलिए बात-बात पर सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा करके उसे ब्लैकमेल करने वाली ममता बनर्जी के लिए रेल किराए बढ़ाने की अनुमति देना आसान नहीं होगा. ज्ञातव्य है कि डीजल-पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर सरकार से समर्थन की घोषणा करके ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री से एक तरफ रेलवे में अपने मनमुताबिक महाप्रबंधकों की पोस्टिंग करा ली है, तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र सरकार से 19000 करोड़ रु. का विशेष पैकेज हासिल कर लिया है. 

रेलवे बोर्ड के कई अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि ममता बनर्जी की हरी झंडी के बिना रेलमंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी रेल किराए बढ़ाए जाने के मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं. हालाँकि करीब चार महीने पहले रेल मंत्रालय का कार्यभार सँभालने के बाद से श्री त्रिवेदी कई मंचों पर कह चुके हैं कि रेलवे की वित्तीय हालत बहुत ख़राब है. यही बात वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी भी कई बार कह चुके हैं. जबकि योजना आयोग ने बिना रेल किराए बढ़ाए किसी प्रकार की योजनागत राशि की मंजूरी देने से मना कर दिया है. वित्तमंत्री और योजना आयोग दोनों का मानना है कि रेल किरायों में अविलम्ब वृद्धि की जानी चाहिए, क्योंकि रेलवे की वित्तीय हालत सुधारने का इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है. योजना आयोग का तो यह भी मानना है कि रेल किरायों का एक स्थाई मेकेनिज्म बना दिया जाना चाहिए, जिससे तेल एवं बिजली की कीमतों में वृद्धि होने के बाद उसी अनुपात में रेल किराए स्वतः बढ़ा दिए जाएं. 

रेलवे बोर्ड के अधिकाँश अधिकारियों का यह भी मानना है कि तेल और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोत्तरी अब एक सामान्य बात हो गई है, जबकि यात्रियों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए रेलवे की लागत और रख-रखाव तथा चल-अचल परिसंपत्तियों में लगातार वृद्धि करनी पड़ रही है. उनका कहना है कि रेल किरायों को तेल और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोत्तरी से जोड़ने के बजाय रेल किराए में प्रतिवर्ष एक औसत वृद्धि का एक स्थाई तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए. इस सबके अलावा उनका यह भी मानना है कि अब बहुत हो चुका, अब रेलवे का राजनीतिक इस्तेमाल बंद होना चाहिए और इसे स्वतंत्र रूप से एक वाणिज्य परिवहन संस्थान के तौर पर चलने के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि वे रेलवे के निजीकरण की बात कह रहे हैं. 

रेल अधिकारियों का कहना है कि आम जनता यानि यात्रियों से रेल किराए बढ़ाए जाने पर रायशुमारी करने की बात ही बेमानी है, क्योंकि कोई भी भारतीय आदमी स्वतः कभी अपनी जेब पर बोझ नहीं डालना चाहता, यह इस देश की सर्वसामान्य मानसिकता है. उनका यह भी कहना था कि आम आदमी को भी यह मालूम है कि पिछले 10 सालों से रेलवे के किराए नहीं बढ़े हैं, इसलिए अब वह भी इनके बढ़ाए जाने पर सहमत हैं. उनका कहना था कि यात्री को बेहतर सहूलियतें चाहिए, अगर वह किराया बढ़ाकर नहीं देगा, तो उसे यह सहूलियतें कैसे मिल पाएंगी, यह भी वह समझता है, इसलिए वह बढ़ा हुआ रेल किराया देने के लिए खुश-ख़ुशी तैयार है. अधिकारियों का कहना था कि गत 10 वर्षों में रेल की परिचालन लागत करीब 25 से 30 प्रतिशत बढ़ गई है, जबकि गत वित्तवर्ष में रेलवे को यात्री किरायों की मद में लगभग 25000 करोड़ रु. का घाटा हुआ है, जो कि चालू वित्तवर्ष में बढ़कर करीब 35000 करोड़ रु. हो जाने का अनुमान लगाया गया है. हालाँकि उनका यह भी कहना था कि रेलमंत्री अपनी रायशुमारी भले ही कर लें, मगर इस मामले में अंतिम राय तो उन्हें कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से ही लेनी पड़ेगी. 
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