Tuesday 26 August, 2008

SDGM/WCR द्वारा पद का दुरुपयोग

पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) जबलपुर के SDGM/CVO ने न सिर्फ़ अपने पद का दुरुपयोग करते हुए रेलवे को अब तक करोड़ों का चूना लगाया है बल्कि अपने कुछ बिरादरी भाइयों को सिर्फ़ काउंसिलिंग करके भी बख्शा है, जिनको वास्तव में मेजेर चार्जशीट मिलनी चाहिए थी। जबकि इसके अन्य काडेर्स के अधिकारियों और ख़ास तौर पर ट्रेफिक के अधिकारियों को अपना ख़ास निशाना बनाया है। अपनी ख़ुद की फाइल दबाकर न सिर्फ़ स्वयं को बचाने का प्रयास किया है, बल्कि अपने जैसे कुछ अन्य भ्रष्ट अफसरों को भी अपने साथ अभयदान दिया है। पता चला है की कोटा, सवाई माधोपुर और भोपाल स्टेशनों के सफाई कोन्त्रक्ट की फाइलें दबाने के आरोप में SDGM/WCR के ख़िलाफ़ CVC की जांच शुरू हो गई है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान एस डीजी एम् /रे श्री पूनिया जब ऐ डी आर एम् / कोटा हुआ करते थे तब कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशन का सफाई ठेका हुआ था। यह टेंडर तत्कालीन सीनियर डी सी एम् /कोटा श्री वी के शुक्ला ने किया था। परन्तु इसमें बोर्ड की गाइड लाइन और सुधीर चंद्र कमिटी की सिफारिशों को पूरी तरह नजर अंदाज किया गया था। गाइड लाइन के अनुसार यह टेंडर दो पैकेट सिस्टम के अनुसार होना चाहिए था। बताते हैं की उक्त टेंडर में यह व्यवस्था अपनाई ही नहीं गई थी। बल्कि व्यवस्था के अनुसार इसका अप्रूवल सी सी एम् और जी एम् से लिया ही नहीं गया था। सीनियर डी सी एम् ने सीधे ऐ डी आर एम् (पूनिया) से ही इसका अप्रूवल लेकर टेंडर जारी कर दिया था।

इसके अलावा बताते हैं की लोएस्ट पार्टी को भी जानबूझकर कुछ निहित स्वार्थों के चलते बायपास किया गया था। सूत्रों का कहना है की लोएस्ट पार्टी से यह कहा गया था की उसे रेलवे के सफाई कर्मियों को भी रखना होगा और आधी टेंडर राशि ऐ डी आर एम् और सीनियर डी सी एम् को बांटनी होगी। सूत्रों का कहना है की इस पर जब लोएस्ट पार्टी तैयार नहीं हुई तो उसे बायपास कर दिया और यह टेंडर सेकंड लोएस्ट पार्टी को दे दिया गया था। क्योंकि उसने उपरोक्त शर्त मंजूर कर ली थी।

बताते हैं की इसके बाद सेकंड पार्टी को कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों के सभी सफाई कर्मचारी दे दिए गए थे और वह बिना अपने आदमी लगाए ही दोनों स्टेशनों की tathakathit सफाई रेलवे के सफाई कर्मियों से ही कराने लगी। पता चला है की तब कोटा स्टेशन पर करीब १५ और सवाई माधोपुर स्टेशन पर लगभग १० रेलवे सफाई कर्मचारी थे। इन सब को बोर्ड की गाइड लाइन के अनुसार group 'सी' एवं 'डी' स्टेशनों पर सफाई के लिए भेजा जाना था। परन्तु कोन्त्रक्टोर को इन्हें देकर उसे भारी लाभ पहुंचाया गया। सूत्रों का कहना है की यह सब तत्कालीन ऐ डी आर एम् श्री पूनिया की शेह पर हुआ था।

प म रे विजिलेंस ने इसकी शिकायत होने पर जांच शुरू की थी और अपनी प्राथमिक जांच में विजिलेंस ने श्री पूनिया और शुक्ला को दोषी पाया था। यह जांच अभी पुरी भी नहीं माधोपुर पायी थी की श्री पूनिया का ऐ डी आर एम् / कोटा का कार्यकाल ख़त्म हो गया और वे पुरी जुगाड़ लगाकर एस डी जी एम् / प म रे की पोस्ट पर काबिज होने में सफल हो गए। बताते हैं की इस पोस्ट पर आते ही श्री पूनिया ने सर्वप्रथम कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों के सफाई ठेके से सम्बंधित फाइल को अपने पास माँगा कर रख लिया और उस पर आगे की साड़ी कार्यवाही को स्थगित कर दिया।


इसी बीच भोपाल मंडल के ऐसे ही एक अन्य सफाई ठेके की लिखित शिकायत सीनियर दी सी एम् / भोपाल श्री वी के अवस्थी के ख़िलाफ़ विजिलेंस को मिली। इस शिकायत को भी श्री पूनिया ने इसलिए खास तौर पर दबा दिया क्योंकि यदि वह भोपाल मंडल के इस सफाई ठेके की जांच की अनुमति देते तो फ़िर कोटा और सवाई माधोपुर के सफाई ठेके की जांच, जो स्वयं उनके ही ख़िलाफ़ थी और जिसे वह दबाये एवं स्थगित किए बैठे थे, की भी जांच और चर्चा रेलकर्मियों और अधिकारियों में जोर शोर से शुरू हो जाती। इसलिए श्री पूनिया ने भोपाल मंडल के भी सफाई ठेके की शिकायत को भी दबा दिया।


यही नहीं, सूत्रों का कहना है की कोटा एवं सवाई माधोपुर स्टेशनों का सफाई त्जेका समाप्त होने पर बिना किसी अप्रूवल के ही उसे और दो साल का एक्सटेंसन भी श्री पूनिया की शेह पर दे दिया गया? इस तरह श्री पूनिया ने रेल सफाई कर्मियों के वेतन के रूप में रेलवे को करीब ६५ लाख का चूना लगाया? जो की इसके दो साल के एक्सटेंसन और भोपाल मंडल के साथ मिलकर करोड़ों का हो गया है? इसके अलावा उन्होंने इंजीनियरिंग के कई अधिकारयों को सिर्फ़ काउंसिलिंग करके छोड़ दिया है जबकि उन्हें मजेर चार्जशीट मिल सकती थी।


पता चला है की रेलवे बोर्ड ने इन दोनों मामलों की जांच शुरू कर दी है और यह जांच रेलवे बोर्ड के डायरेक्टर श्री संजय कुमार (आईपीएस) को सौंपी गई है जिनके मार्गदर्शन में पिछले दिनों आरपीएफ के लोगों ने मामलों से सम्बंधित सभी फाइलें जप्त कर ली हैं। परन्तु आश्चर्य इस बात का व्यक्त किया जा रहा है की अब तक श्री पूनिया का उनकी पोस्ट से हटाया क्यों नहीं गया है? क्योंकि इससे रेल कर्मचारियों और अधिकारियों में एक ग़लत संदेश जा रहा है।

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