Wednesday 9 December, 2009

उ.रे. के तथाकथित ईमानदार जीएम और सीओएम का एक और शिकार


डीओएम/दिल्ली कमलेश मिश्रा का जम्मू ट्रांसफर

नयी दिल्ली : उत्तर रेलवे के तथाकथित ईमानदार सीओएम और जीएम ने मुरादाबद मंडल के बाद अब दिल्ली मंडल से भी एक ईमानदार आईआरटीएस अधिकारी डीओएम कमलेश मिश्रा को अचानक दिल्ली से बाहर जम्मू में ट्रांसफर कर दिया है, जो कि उनकी 'क्राइटेरिया' में फिट नहीं बैठ रहे थे जबकि उन्होंने महाभ्रष्ट के. पी. यादव, जिन्हें भ्रष्टाचार के चलते ही बोर्ड विजिलेंस से हटाकर रेलमंत्री के आदेश पर श्रीनगर में पदस्थ किया गया था, को उक्त दोनों तथाकथित ईमानदार रेलमंत्री के आदेश को ताक पर रखकर चंदौसी रेलवे ट्रेनिंग स्कूल का प्राचार्य बना कर दिल्ली के करीब ले आये हैं और उन्हें दिल्ली के मकान के साथ-साथ चंदौसी के प्राचार्य के बंगले का सुख भी प्रदान कर दिया है.

इधर डीओएम कमलेश मिश्रा का ऐसा कोई भी अपराध नहीं था और ही डीओएम में उनका कार्यकाल पूरा हुआ था. तथापि उन्हें जम्मू में ट्रांसफर कर दिया गया है. बताते हैं कि उन पर पिछले दिनों सीओएम द्वारा यह आरोप मढ़ा गया कि वह सुबह कंट्रोल से पोजीशन नहीं लेते हैं. हालांकि सूत्रों का कहना है कि जिन तारीखों में पोजीशन लेने के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया, उन तारीखों में श्री मिश्रा वड़ोदरा रेलवे स्टाफ कालेज में प्रशिक्षण पर थे.

सूत्रों का कहना है कि कुछ दिन पहले श्री मिश्रा को सीनियर डीओएम से एक 'कांफिडेंशियल नोट' जबरन दिलाया गया है. इस बारे में विश्वसनीय सूत्रों ने यह भी बताया कि सीनियर डीओएम को किसी से यह कहते सुना गया कि "ऊपर से काफी दबाव में उन्हें यह कांफिडेंशियल नोट श्री मिश्रा को देना पड़ रहा है. जबकि उनकी कोई भी गलती नहीं है और वह अपना काम पूरी ईमानदारी एवं मेहनत से कर रहे हैं मगर ये हमारी मज़बूरी है."

उल्लेखनीय है कि जहां मुरादाबाद मंडल से महाभ्रष्ट सीनियर डीओएम प्रफुल्ल गुप्ता को यह दोनों तथाकथित ईमानदार - जीएम और सीओएम - अब तक नहीं हटा पाए हैं, वहीं दिल्ली मंडल से भी सीनियर डीओएम/फ्रेट, जिनकी बीवी बताते हैं कि प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत सुरक्षा स्टाफ में शामिल है, को भी नहीं हटा पा रहे हैं, बल्कि अन्य तमाम अधिकारी चूंकि दिल्ली में ही बस गए हैं और वहीं अपना खूंटा गाड़कर स्थाई डेरा जमाकर अपनी राजनीतिक एवं ब्यूरोक्रेटिक जड़ें मजबूत बना ली हैं, इसलिए उन्हें भी यह तथाकथित ईमानदार नहीं हटा पा रहे हैं.

अब चूंकि श्री मिश्रा नए और बाहर वाले हैं और इनके गुट में भी अभी तक नहीं शामिल हो पाए थे, तथा इनके 'क्राइटेरिया' से भी पटरी नहीं बैठा पा रहे थे, इसलिए उन्हें उठाकर बाहर फेंक दिया गया है क्योंकि उनकी जगह एक अन्य चहेते और मजबूत राजनीतिक पकड़ वाले अथवा इनकी कठपुतली बनकर रहने वाले अधिकारी को दिल्ली में एडजस्ट करना है. अब दिल्ली में यह हाल हो गया है कि जिनकी बीवी, बेटा, रिश्तेदार अथवा कोई जान-पहचान वाला या गाँव - जवार वाला भी यदि पीएमओ अथवा इनकम टैक्स विभाग से किसी भी मामूली रूप में भी जुड़ा है या पदस्थ है, उसे यह तथाकथित ईमानदार दिल्ली से बाहर ट्रांसफर करने अथवा छेडऩे से भी गुरेज करते हैं.

बताते हैं कि श्री मिश्रा को दो छोटे-छोटे जुड़वां बच्चे हैं, जिनकी परवरिश के लिए उनका फिलहाल दिल्ली से बाहर जाना पूरे परिवार के लिए नुकसानदेह साबित होने वाला है. सूत्रों का कहना है कि इस समस्या को लेकर जब वह सीओएम को मिले तो सीओएम ने उन पर तमाम आरोप जड़ दिए और पूरी अमानवीयता का प्रदर्शन करते हुए कहा कि "दो साल तो दिल्ली में उनके लिए बहुत ज्यादा हो गए हैं," जबकि बताते हैं कि वह यह भी बताने से नहीं चूके कि "वह स्वयं लगातार 6 साल तक दिल्ली मंडल में एक ही पद पर पदस्थ रहे हैं और करीब पूरी सर्विस दिल्ली में ही हैं." सूत्रों का कहना है कि सीओएम ने श्री मिश्रा को साफ कह दिया कि "उनकी सूरत उन्हें पसंद नहीं है, इसलिए वह उनकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे, उन्हें दिल्ली से बाहर जाना ही पड़ेगा."

हालांकि बताते हैं कि श्री मिश्रा ने सीओएम से यह भी निवेदन किया कि "५- माह बाद उनका जेए ग्रेड प्रमोशन जाएगा तब वह प्रमोशन पर जहां चाहें भेज सकते हैं. मगर जम्मू में वह रहकर आए हैं, फिर वहीं जाना तो एक तरह से उनका डिमोशन करना होगा." मगर इस पर भी सीओएम ने कोई भी विचार करने से साफ मना कर दिया.

इस बारे में अन्य कैडर अधिकारियों का कहना है कि सीओएम के रिटायरमेंट में ५-६ महीने बाकी हैं और इस दरम्यान .रे. में वह पूरे कैडर का सिर्फ सत्यानाश कर देने वाले हैं बल्कि अब उन्होंने अपनी सारी तथाकथित ईमानदारी और नैतिकता को भी उठाकर ताक पर रख दिया है. कैडर अधिकारियों का यह भी कहना था कि जब किसी साथी अधिकारी पर किन्हीं कारणों से सीबीआई की रेड हो जाती है अथवा उसे विजिलेंस द्वारा चार्जशीट दी जाती है तो तमाम अधिकारी उसके साथ सद्भावना व्यक्त करते हैं और सीबीआई अथवा विजिलेंस को खूब कोसते हैं. मगर जब बिना मतलब और अनावश्यक तौर पर किसी अधिकारी को तंग किया जाता है अथवा कार्यकाल समाप्त होने से पहले उसे शिफ्ट कर दिया जाता है तो कोई भी कैडर अधिकारी उसके साथ एकजुटता दिखाना तो दूर उससे अपनी संवेदना और सद्भावना भी नहीं व्यक्त करता और ही उसके साथ दिखाई देना चाहता है. यानी सब उससे दूरी बनाकर दूर-दूर भाग खड़े होते हैं. इसका कारण उन्होंने यह बताया कि प्रभावित अधिकारी के साथ दिखकर अथवा उसके साथ अपनी एकजुटता, संवेदना, सद्भावना दिखाकर कोई भी अधिकारी अपने ऊपर वालों ( जीएम - सीओएम ) को नाराज नहीं करना चाहता क्योंकि 'सीआर' तो उन्होंने ही तो भरनी होती है, जबकि सीबीआई/ विजिलेंस को गरियाने से उनकी 'सीआर' पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इससे यह दोनों जांच एजेंसियों का कोई संबंध नहीं होता है.

बहरहाल संपर्क किए जाने पर श्री मिश्रा का सिर्फ इतना ही कहना था कि "यह तो प्रशासनिक निर्णय है. इस बारे में वह क्या कह सकते हैं." रेलमंत्री को ही अब इस प्रशासनिक बेईमानी पर ध्यान देना होगा. वरना व्यवस्था को चौपट होने से नहीं बचाया जा सकता.

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