जाति - बिरादरी की भावना
गोरखपुर : यह कहना गलत है कि इस देश की जातीय, प्रांतीय, क्षेत्रीय आदि-आदि अनेक तरह की जन- मानसिकताओं का इस्तेमाल और शोषण सिर्फ राजनीतिज्ञों द्वारा किया जाता है. यह मानसिकता तो इस देश की नौकरशाही में भी कूट-कूट कर भरी हुई है. यही वजह है कि जाति और बिरादरी के नाम पर नीचे वाले अधिकारी अपने ऊपर वाले बिरादर से ट्रांसफर-पोस्टिंग, किन्हीं भ्रष्ट मामलों को रफा-दफा करने में पक्षपात (फेवर) आदि के रूप में पर्याप्त लाभ लेने में कामयाब हो जाते हैं.
यही 'गणित' भारतीय रेल में भी चल रहा है और इसी के चलते एक बिरादर को वड़ोदरा में डीआरएम की पोस्टिंग और वहां से निवृत्त होने वाली दूसरी बिरादर को दिल्ली में पोस्टिंग मिल गई है जबकि इसी भावना के बल पर श्री विवेक श्रीवास्तव और गौरी सक्सेना सहित ऐसे कई अन्य बिरादरों को दिल्ली बुला लिया गया. इसी मानसिकता के चलते उ.रे. की सीपीआरओ पोस्ट को एक्स कैडर बनाकर अपने बिरादरी भाई को बैठा दिया गया. इस मानसिकता के चलते बिरादरी के बाहर वाले को दिल्ली या अन्यत्र अपनी जरूरत के मुताबिक पोस्टिंग नहीं मिल पाती है. इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।
श्री एम. पी. सिंह, जो कि हाल ही में एडीआरएम/मुरादाबाद मंडल की पोस्ट से अपना कार्यकाल पूरा करके निवृत्त हुए हैं. बताते हैं कि श्री सिंह को बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने और अन्य कई कारणों से दिल्ली में पोस्टिंग की जरूरत थी. इस संबंध में वह रे.बो. के संबंधित अधिकारियों से कई बार मिले और अपनी जरूरत बताते हुए उनसे दिल्ली में पोस्टिंग देने की काफी अनुनय-विनय की. परंतु उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग न देकर गोरखपुर एन.ई. रेलवे में भेज दिया गया है. उनसे कहा गया कि 'दूसरा जन्म लेकर और बिरादरी बनकर आओ तो तुम्हें दिल्ली में पोस्टिंग के लिए फेवर मिल जाएगा.' अब यह काम तो उनके वश में नहीं था, इसलिए उन्होंने चुपचाप गोरखपुर में ज्वाइन कर लेना ही बेहतर समझा.
जबकि सैकड़ों रेल अधिकारी ऐसे हैं जो बीसों साल से इधर-उधर करके दिल्ली में ही बने हुए हैं और वह दिल्ली से बाहर जाना नहीं चाहते हैं. यदि किसी तरह उन्हें बाहर ट्रांसफर कर दिया जाता है तो चूंकि लंबे समय से दिल्ली में रहकर उन्होंने नौकरशाही और राजनीति में अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर ली हैं कि अपना ट्रांसफर हफ्ते-महीने भर में रद्द कराकर पुन: दिल्ली में विराजमान होने में कामयाब हो जाते हैं और व्यवस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है. यह एक अलग तरह का बिरादरी और व्यक्तिगतवाद दिल्ली में लंबे समय से चल रहा है.
इससे सारी व्यवस्था में भयंकर सड़ांध पैदा हो गई है और इस संबंध में तमाम स्थापित नियम-कानून ताक पर रख दिए गए हैं. चोरी-चापलूसी-चमचागीरी का ऐसा घालमेल किया जा रहा है कि राकेश यादव जैसे कभी हाकी स्टिक भी न पकड़े वाले लोग स्पोर्ट्स आफिसर बनकर और रेलवे बोर्ड में लंबे समय से सीआरबी और मेंबरों को विदेश यात्राओं सहित तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराकर दसियों साल से दिल्ली में ही बने हुए हैं. किसी अन्य की क्या बात की जाए जब यह तमाम तथ्य स्वयं रेलमंत्री के ध्यान में लाये जाने के बावजूद कोई कारगर कार्रवाई नहीं होती है, तो नीचे तक एक गलत संदेश तो जाता ही है बल्कि सारी व्यवस्था यह सोचकर हीनभावना का शिकार होती है कि कुछ नहीं होने वाला है, चाहे जिस तक बात को पहुंचाया जाए. अत: रेलमंत्री को चाहिए कि वह अपने सड़ांध मार रहे महकमे की तरफ ध्यान दें और दिल्ली में 10-15-20 सालों से जमे अधिकारियों-कर्मचारियों की एकमुश्त शंटिंग ठीक उसी तर्ज पर करें जैसे सभी आरआरबी चेयरमैनों को एक साथ हटाकर किया है.
गोरखपुर : यह कहना गलत है कि इस देश की जातीय, प्रांतीय, क्षेत्रीय आदि-आदि अनेक तरह की जन- मानसिकताओं का इस्तेमाल और शोषण सिर्फ राजनीतिज्ञों द्वारा किया जाता है. यह मानसिकता तो इस देश की नौकरशाही में भी कूट-कूट कर भरी हुई है. यही वजह है कि जाति और बिरादरी के नाम पर नीचे वाले अधिकारी अपने ऊपर वाले बिरादर से ट्रांसफर-पोस्टिंग, किन्हीं भ्रष्ट मामलों को रफा-दफा करने में पक्षपात (फेवर) आदि के रूप में पर्याप्त लाभ लेने में कामयाब हो जाते हैं.
यही 'गणित' भारतीय रेल में भी चल रहा है और इसी के चलते एक बिरादर को वड़ोदरा में डीआरएम की पोस्टिंग और वहां से निवृत्त होने वाली दूसरी बिरादर को दिल्ली में पोस्टिंग मिल गई है जबकि इसी भावना के बल पर श्री विवेक श्रीवास्तव और गौरी सक्सेना सहित ऐसे कई अन्य बिरादरों को दिल्ली बुला लिया गया. इसी मानसिकता के चलते उ.रे. की सीपीआरओ पोस्ट को एक्स कैडर बनाकर अपने बिरादरी भाई को बैठा दिया गया. इस मानसिकता के चलते बिरादरी के बाहर वाले को दिल्ली या अन्यत्र अपनी जरूरत के मुताबिक पोस्टिंग नहीं मिल पाती है. इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।
श्री एम. पी. सिंह, जो कि हाल ही में एडीआरएम/मुरादाबाद मंडल की पोस्ट से अपना कार्यकाल पूरा करके निवृत्त हुए हैं. बताते हैं कि श्री सिंह को बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने और अन्य कई कारणों से दिल्ली में पोस्टिंग की जरूरत थी. इस संबंध में वह रे.बो. के संबंधित अधिकारियों से कई बार मिले और अपनी जरूरत बताते हुए उनसे दिल्ली में पोस्टिंग देने की काफी अनुनय-विनय की. परंतु उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग न देकर गोरखपुर एन.ई. रेलवे में भेज दिया गया है. उनसे कहा गया कि 'दूसरा जन्म लेकर और बिरादरी बनकर आओ तो तुम्हें दिल्ली में पोस्टिंग के लिए फेवर मिल जाएगा.' अब यह काम तो उनके वश में नहीं था, इसलिए उन्होंने चुपचाप गोरखपुर में ज्वाइन कर लेना ही बेहतर समझा.
जबकि सैकड़ों रेल अधिकारी ऐसे हैं जो बीसों साल से इधर-उधर करके दिल्ली में ही बने हुए हैं और वह दिल्ली से बाहर जाना नहीं चाहते हैं. यदि किसी तरह उन्हें बाहर ट्रांसफर कर दिया जाता है तो चूंकि लंबे समय से दिल्ली में रहकर उन्होंने नौकरशाही और राजनीति में अपनी जड़ें इतनी मजबूत कर ली हैं कि अपना ट्रांसफर हफ्ते-महीने भर में रद्द कराकर पुन: दिल्ली में विराजमान होने में कामयाब हो जाते हैं और व्यवस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है. यह एक अलग तरह का बिरादरी और व्यक्तिगतवाद दिल्ली में लंबे समय से चल रहा है.
इससे सारी व्यवस्था में भयंकर सड़ांध पैदा हो गई है और इस संबंध में तमाम स्थापित नियम-कानून ताक पर रख दिए गए हैं. चोरी-चापलूसी-चमचागीरी का ऐसा घालमेल किया जा रहा है कि राकेश यादव जैसे कभी हाकी स्टिक भी न पकड़े वाले लोग स्पोर्ट्स आफिसर बनकर और रेलवे बोर्ड में लंबे समय से सीआरबी और मेंबरों को विदेश यात्राओं सहित तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराकर दसियों साल से दिल्ली में ही बने हुए हैं. किसी अन्य की क्या बात की जाए जब यह तमाम तथ्य स्वयं रेलमंत्री के ध्यान में लाये जाने के बावजूद कोई कारगर कार्रवाई नहीं होती है, तो नीचे तक एक गलत संदेश तो जाता ही है बल्कि सारी व्यवस्था यह सोचकर हीनभावना का शिकार होती है कि कुछ नहीं होने वाला है, चाहे जिस तक बात को पहुंचाया जाए. अत: रेलमंत्री को चाहिए कि वह अपने सड़ांध मार रहे महकमे की तरफ ध्यान दें और दिल्ली में 10-15-20 सालों से जमे अधिकारियों-कर्मचारियों की एकमुश्त शंटिंग ठीक उसी तर्ज पर करें जैसे सभी आरआरबी चेयरमैनों को एक साथ हटाकर किया है.
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