जोनल महाप्रबंधकों की पोस्टिंग का मामला
पिछले पाँच वर्षों के दौरान भारतीयरेल में जितना भ्रष्टाचार व्याप्त हुआ है और जितनी लूट-खसोट हुई है, उतनी इससे पहले कभी नहीं हुई थी। इसके अलावा भारतीय रेल के महाप्रबंधकों और विभागीय प्रमुखों जैसे उच्च पदों पर भी इससे पहले नियुक्तियों में इतनी ज्यादा देर नही हुआ करती थी, जितनी 'वर्त्तमान निजाम' में हो रही है। वर्त्तमान निजाम में तो मेंबर रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल महाप्रबंधकों और विभागीय प्रमुखों सहित मंडल रेल प्रबंधकों एवं ब्रांच अफसरों से भी नीचे तक के पदों को 'बिकाऊ' बना दिया गया है। फिलहाल जोनल महाप्रबंधकों के चार-पाँच पड़ और खाली होने जा रहा हैं। इन पदों पर नियुक्तियों में हो रही देरी का प्रमुख संदेश यही जा रहा है की जो जितनी बड़ी थैली देगा या जितनी बड़ी अप्रोच लगाएगा, उसे उतनी ही महत्वपूर्ण रेलवे में नियुक्ति मिलेगी। इस बात से अब तो रेलवे बोर्ड और जोनल रेलवे के तमाम बड़े अधिकारी भी आपना इत्तफाक व्यक्त करने लगे हैं।
परंपरानुसार होना तो यह चाहिए था की जब जो पड़ खाली हुआ, तब स्वीकृत जीएम पैनल के क्रमानुसार उसकी वहां नियुक्ति स्वयमेव हो जानी चाहिए थी। जैसे की पहले रेलवे स्टाफ कॉलेज और पूर्व रेलवे के महाप्रबंधकों के पद ३१ अगस्त को खाली हुए थे, वहा पैनल के क्रमानुसार श्री सुदेश कुमार और श्री दीपक कृष्ण को नियुक्ति दे दी जाती। इसी प्रकार इसके बाद उ.रे. और प.रे. के पद क्रमश: श्री ऐ.के.वोहरा और श्री वि.एन.त्रिपाठी को भेजा जाना चाहिए। तत्पश्चात ३० नवम्बर को म.रे. की पोस्ट श्रीमती सौम्या राघवन के एफसी बनने पर खाली होने वाली है। उस पर श्री कुलदीप चतुर्वेदी का नंबर आता हैं, जो की उन्हें मिलनी चाहिए। इसके बाद श्रीमती सविता गोपाल, श्री मैथ्यू जॉन, सोमनाथ मुख़र्जी, श्री नागरे और जॉन अब्राहम के क्रमश: आरसीटी सिकंदराबाद, दिल्ली, हावडा, गुवाहाटी, और मुंबई में जाने से क्रमश: महाप्रबंधक/इच्फ़, सेक्रेटरी/रे.बो. एवं एडिशनल मेंबर रेलवे बोर्ड के पद खाली होने वाले हैं। इसके अलावा भी बोर्ड स्तर पर कुछ और एडिशनल मेंबर के पद खाली पड़े हैं। उन्हें भी अब तक नही भरा गया हैं, जबकि डीजी/आरपीएफ की पोस्ट ६ महीने से भी ज्यादा समय बाद भरी गई है। इसी तरह मेडिकल डिपार्टमेन्ट की कई सीएमडी पोस्टें महीनों से खाली पड़ी हैं। इन पर बारगेनिंग चल रही तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिए। दिसंबर में एमएम, आरसीऍफ़ और द.पू.म.रे. के महाप्रबंधक के पद भी खाली हो रहे हैं। इस प्रकार पैनल से क्रमश: और नियम एवं परंपरानुसार यदि योग्य अधिकारीयों को उनकी पोस्टिंग मिलती रहे तो किसी को कोई शिकायत नही होगी तथा किसी प्रकार की अफवाह नही फैलेगी एवं पदों के 'बिकाऊ' होने का भी संदेश नही जायेगा।
परन्तु ओपन लाइन से ओपन लाइन में 'फेवर' के चलते महाप्रबंधकों के ट्रान्सफर की नयी परंपरा डालने के प्रयास के कारण आजकल रेल अधिकारियों में भारी आक्रोश देखा जा रहा हैं। इस 'फेवरिज्म का प्रमुख कारण आजकल रेलवे बोर्ड में आईआरटीएस कैडर के वर्चस्व के भीतर एक बिरादरी विशेष के भारी वर्चस्व को बताया जा रहा हैं। इसी 'बिरादरी फैक्टर' के कारण श्री आर. एन. वर्मा, जिन्होंने बताते हैं की अपने बैचमेट चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर की भी अप्रोच लगाई हुई है, को मेट्रो रेलवे से पश्चिम रेलवे में श्री विवेक सहाय को फेवर किया जा रहा है, जो की हमेशा अपने अपंग बेटे के मेडिकल कारणों का सहारा लेकर लगातार ३०-३२ साल मुंबई में गुजारे हैं और अब वही मेडिकल लगाकर उ. एम्. रे. इलाहाबाद से उ.रे. दिल्ली जाना चाहते है। इससे पहले वह मुंबई के लिए प.रे. में नम्बर लगाए हुए थे। अब उनके बेटे का दिल्ली में अड्मिशन हो गया है तो अब उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग चाहिए। इसी आईआरटीएस वर्चस्व के अन्दर बिरादरी फैक्टर का विरोध करते हुए पिछले दिनों एफआरओऐ की अध्यक्ष श्रीमती रागिनी येचुरी ने मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन भेजा है और फूल बोर्ड मीटिंग में भी यह मुद्दा उठाकर ओपन लाइन से ओपन लाइन ट्रान्सफर की इन नई परम्परा का पुरजोर विरोध किया था। उनकी इस बात से बोर्ड के बाकी सभी मेंबर भी सहमत है। इसी के चलते पहले भेजे गए सारे प्रस्ताओं को पिएमओ ने बिना स्वीकृति के वापस कर दिया है। यही नही दीओपिटी ने भी बोर्ड की इस नीति को स्वीकार नहीं किया है।
विवेक सहाय और सविता गोपाल जैसे कुछ रेल अधिकारियों ने दूसरों को दरकिनार करके और उनका हक़ मारकर हमेशा अपनी मनचाही और मनपसंद जगाहों पर पुरी सर्विस की है। और आज भी उनका यह प्रयास इसके लिए हरसंभव हथकंडा अपनाकर सफल हो रहा है। आख़िर ऐसी विसंगति क्यों है और यह क्योंकर सम्भव हो पा रही है? कई अधिकारी तो पुरी सर्विस में सैकडों बार और कभी-कभी साल भर में ही चार-पाँच बार ट्रान्सफर हो जाते है तो विवेक सहाय जैसे लोग एक ही जगह और मनपसंद-मनचाही पोस्ट पर लगभग पुरी सर्विस गुजर देते है। क्यों उनपर कोई नियम लागू नहीं हो पाते है, क्यों उन्हें मनचाही मुराद पुरी सर्विस के दौरान मिलती रहती है। यह खुफिया एजेंसियों के लिए भी जांच का विषय होना चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पता चला है की रेलमंत्री ने सीआरबी को यह कहा है की 'उन्हें टाइम नहीं है, वह स्वयं जाकर पीएमओ में कैबिनेट सेक्रेटरी से सभी महाप्रबंधकों की पोस्टिंग करा लाएं। शर्त सिर्फ़ इतनी है की विवेक सहाय की उत्तर रेलवे में और आर.ऍन.वर्मा की पश्चिम रेलवे में नियुक्ति होनी चाहिए। बाकी जिसको जहाँ भेजने के लिए कैबिनेट सेक्रेटरी सलाह देन, उसी के अनुसार पोस्टिंग कर दी जाए।' यही तो सीआरबी भी चाहते है और आईआरटीएस की लॉबी के भीतर की एक और बिरादरी लाबी भी तो यही चाहती है। यह तो उनके मनन की मुराद पूरी करने जैसा रेलमंत्री ने कह दिया है। परन्तु बोर्ड के हमारे सूत्रों का कहना है की रेलमंत्री के नाम पर सीआरबी द्बारा छोड़ी गई यह मनगढ़ंत बात भी हो सकती है की देखेपर क्या प्रतिक्रिया होती है? जबकि सूत्रों का कहना है की इस बात का एक दूसरा पहलु भी हो सकता है, वह यह की चूँकि रेलमंत्री सांसदों के इस्तीफे के खेल में नीतिश कुमार से उलझकर अपनी स्थिति कमज़ोर करली है। इस मामले में नीतिश कुमार ने अपने राज्यसभा सांसदों का इस्तीफा दिलाकर लालू से बाजी मार ली है, जिससे सरकार में उनकी स्थिति काफी कमज़ोर हो गई है। इसलिए वह पीएमओ और चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी का सामना करने जाने से कतरा रहे है और लगातार पटना में बैठकर राजनितिक गणित लगा रहे है, जबकि रेलमंत्रालय में कई महत्वपूर्ण कार्य उनकी अनुपस्थिति के कारण लटके पड़े है। उधर, ख़बर यह भी है की चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी के दामाद भी महाप्रबंधकों की पोस्टिंग में अपनी भूमिका निभा रहे है। अब देखे ऊंट किस करवट बैठता है? फिलहाल तो महाप्रबंधकों की पोस्टिंग की 'बारगेनिंग चालु आहे.....!'
परंपरानुसार होना तो यह चाहिए था की जब जो पड़ खाली हुआ, तब स्वीकृत जीएम पैनल के क्रमानुसार उसकी वहां नियुक्ति स्वयमेव हो जानी चाहिए थी। जैसे की पहले रेलवे स्टाफ कॉलेज और पूर्व रेलवे के महाप्रबंधकों के पद ३१ अगस्त को खाली हुए थे, वहा पैनल के क्रमानुसार श्री सुदेश कुमार और श्री दीपक कृष्ण को नियुक्ति दे दी जाती। इसी प्रकार इसके बाद उ.रे. और प.रे. के पद क्रमश: श्री ऐ.के.वोहरा और श्री वि.एन.त्रिपाठी को भेजा जाना चाहिए। तत्पश्चात ३० नवम्बर को म.रे. की पोस्ट श्रीमती सौम्या राघवन के एफसी बनने पर खाली होने वाली है। उस पर श्री कुलदीप चतुर्वेदी का नंबर आता हैं, जो की उन्हें मिलनी चाहिए। इसके बाद श्रीमती सविता गोपाल, श्री मैथ्यू जॉन, सोमनाथ मुख़र्जी, श्री नागरे और जॉन अब्राहम के क्रमश: आरसीटी सिकंदराबाद, दिल्ली, हावडा, गुवाहाटी, और मुंबई में जाने से क्रमश: महाप्रबंधक/इच्फ़, सेक्रेटरी/रे.बो. एवं एडिशनल मेंबर रेलवे बोर्ड के पद खाली होने वाले हैं। इसके अलावा भी बोर्ड स्तर पर कुछ और एडिशनल मेंबर के पद खाली पड़े हैं। उन्हें भी अब तक नही भरा गया हैं, जबकि डीजी/आरपीएफ की पोस्ट ६ महीने से भी ज्यादा समय बाद भरी गई है। इसी तरह मेडिकल डिपार्टमेन्ट की कई सीएमडी पोस्टें महीनों से खाली पड़ी हैं। इन पर बारगेनिंग चल रही तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिए। दिसंबर में एमएम, आरसीऍफ़ और द.पू.म.रे. के महाप्रबंधक के पद भी खाली हो रहे हैं। इस प्रकार पैनल से क्रमश: और नियम एवं परंपरानुसार यदि योग्य अधिकारीयों को उनकी पोस्टिंग मिलती रहे तो किसी को कोई शिकायत नही होगी तथा किसी प्रकार की अफवाह नही फैलेगी एवं पदों के 'बिकाऊ' होने का भी संदेश नही जायेगा।
परन्तु ओपन लाइन से ओपन लाइन में 'फेवर' के चलते महाप्रबंधकों के ट्रान्सफर की नयी परंपरा डालने के प्रयास के कारण आजकल रेल अधिकारियों में भारी आक्रोश देखा जा रहा हैं। इस 'फेवरिज्म का प्रमुख कारण आजकल रेलवे बोर्ड में आईआरटीएस कैडर के वर्चस्व के भीतर एक बिरादरी विशेष के भारी वर्चस्व को बताया जा रहा हैं। इसी 'बिरादरी फैक्टर' के कारण श्री आर. एन. वर्मा, जिन्होंने बताते हैं की अपने बैचमेट चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर की भी अप्रोच लगाई हुई है, को मेट्रो रेलवे से पश्चिम रेलवे में श्री विवेक सहाय को फेवर किया जा रहा है, जो की हमेशा अपने अपंग बेटे के मेडिकल कारणों का सहारा लेकर लगातार ३०-३२ साल मुंबई में गुजारे हैं और अब वही मेडिकल लगाकर उ. एम्. रे. इलाहाबाद से उ.रे. दिल्ली जाना चाहते है। इससे पहले वह मुंबई के लिए प.रे. में नम्बर लगाए हुए थे। अब उनके बेटे का दिल्ली में अड्मिशन हो गया है तो अब उन्हें दिल्ली में पोस्टिंग चाहिए। इसी आईआरटीएस वर्चस्व के अन्दर बिरादरी फैक्टर का विरोध करते हुए पिछले दिनों एफआरओऐ की अध्यक्ष श्रीमती रागिनी येचुरी ने मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन भेजा है और फूल बोर्ड मीटिंग में भी यह मुद्दा उठाकर ओपन लाइन से ओपन लाइन ट्रान्सफर की इन नई परम्परा का पुरजोर विरोध किया था। उनकी इस बात से बोर्ड के बाकी सभी मेंबर भी सहमत है। इसी के चलते पहले भेजे गए सारे प्रस्ताओं को पिएमओ ने बिना स्वीकृति के वापस कर दिया है। यही नही दीओपिटी ने भी बोर्ड की इस नीति को स्वीकार नहीं किया है।
विवेक सहाय और सविता गोपाल जैसे कुछ रेल अधिकारियों ने दूसरों को दरकिनार करके और उनका हक़ मारकर हमेशा अपनी मनचाही और मनपसंद जगाहों पर पुरी सर्विस की है। और आज भी उनका यह प्रयास इसके लिए हरसंभव हथकंडा अपनाकर सफल हो रहा है। आख़िर ऐसी विसंगति क्यों है और यह क्योंकर सम्भव हो पा रही है? कई अधिकारी तो पुरी सर्विस में सैकडों बार और कभी-कभी साल भर में ही चार-पाँच बार ट्रान्सफर हो जाते है तो विवेक सहाय जैसे लोग एक ही जगह और मनपसंद-मनचाही पोस्ट पर लगभग पुरी सर्विस गुजर देते है। क्यों उनपर कोई नियम लागू नहीं हो पाते है, क्यों उन्हें मनचाही मुराद पुरी सर्विस के दौरान मिलती रहती है। यह खुफिया एजेंसियों के लिए भी जांच का विषय होना चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पता चला है की रेलमंत्री ने सीआरबी को यह कहा है की 'उन्हें टाइम नहीं है, वह स्वयं जाकर पीएमओ में कैबिनेट सेक्रेटरी से सभी महाप्रबंधकों की पोस्टिंग करा लाएं। शर्त सिर्फ़ इतनी है की विवेक सहाय की उत्तर रेलवे में और आर.ऍन.वर्मा की पश्चिम रेलवे में नियुक्ति होनी चाहिए। बाकी जिसको जहाँ भेजने के लिए कैबिनेट सेक्रेटरी सलाह देन, उसी के अनुसार पोस्टिंग कर दी जाए।' यही तो सीआरबी भी चाहते है और आईआरटीएस की लॉबी के भीतर की एक और बिरादरी लाबी भी तो यही चाहती है। यह तो उनके मनन की मुराद पूरी करने जैसा रेलमंत्री ने कह दिया है। परन्तु बोर्ड के हमारे सूत्रों का कहना है की रेलमंत्री के नाम पर सीआरबी द्बारा छोड़ी गई यह मनगढ़ंत बात भी हो सकती है की देखेपर क्या प्रतिक्रिया होती है? जबकि सूत्रों का कहना है की इस बात का एक दूसरा पहलु भी हो सकता है, वह यह की चूँकि रेलमंत्री सांसदों के इस्तीफे के खेल में नीतिश कुमार से उलझकर अपनी स्थिति कमज़ोर करली है। इस मामले में नीतिश कुमार ने अपने राज्यसभा सांसदों का इस्तीफा दिलाकर लालू से बाजी मार ली है, जिससे सरकार में उनकी स्थिति काफी कमज़ोर हो गई है। इसलिए वह पीएमओ और चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी का सामना करने जाने से कतरा रहे है और लगातार पटना में बैठकर राजनितिक गणित लगा रहे है, जबकि रेलमंत्रालय में कई महत्वपूर्ण कार्य उनकी अनुपस्थिति के कारण लटके पड़े है। उधर, ख़बर यह भी है की चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी के दामाद भी महाप्रबंधकों की पोस्टिंग में अपनी भूमिका निभा रहे है। अब देखे ऊंट किस करवट बैठता है? फिलहाल तो महाप्रबंधकों की पोस्टिंग की 'बारगेनिंग चालु आहे.....!'
ताजा जानकारी के अनुसार श्री आशुतोष स्वामी और श्री शिव कुमार ने यह कहते हुए अपना ज्ञापन दिया है की वे श्री विवेक सहाय से सीनियर है इसलिए उन्हें उ. रे. और प्. रे. में भेजा जाए। इसके साथ ही श्री ऐ के वोहरा ने भी आरएससी में उन्हें भेजे जाने पर एतराज जता दिया है। ख़बर यह है की पीएम् ने फाइल वापस माँगा ली है। लालू की फिलहाल हिम्मत नहीं हो रही है वह पीएम्ओ में जाकर अपनी पसंद के सहाय और वर्मा की पोस्टिंग करा लायें। सूत्रों का कहना है की अब दिसम्बर तक की वैकेंसी को लेकर ही शायद पोस्टिंग हो पाएंगी।
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