नई दिल्ली : श्री असित चतुर्वेदी वर्तमान में रेलवे बोर्ड में एडिशनल मेंबर सी एंड आईएस हैं। इससे पहले वे डीआरएम्/बिलासपुर और आईआरआईटीईएम्/लखनऊ के प्रिंसिपल रह चुके हैं। सन २००३ से २००५ तक वे एसडीजीएम्(सीवीओ)/एसईआर भी रहे हैं। इस दौरान उन्होंने करीब १०० से ज्यादा ईमानदार अधिकारियों की जिंदगी बरबाद की थी। अगर ये किसी से नाराज हो जाते अथवा कोई इनकी अनुचित मांगे पूरी नहीं करता था तो ये उस अधिकारी का नाम विजिलेंस में दर्ज करा देते थे। यदि और कुछ नहीं कर पाते थे तो ये उस अधिकारी का नाम एग्रीड लिस्ट में डलवा देते थे जिससे इनकी मनसा उस अधिकारी के खिलाफ अपनी खुन्नस निकालने की पूरी हो जाती थी।
इस तरह से श्री चतुर्वेदी जी ने करीब १०० से अधिक रेल अधिकारियों का कैरियर ख़राब किया था। परन्तु आज वे सभी लगभग बेदाग़ छुट गए हैं। क्योंकि जांच में उनके खिलाफ कुछ नहीं पाया गया है। मगर इस दौरान उन सभी को जिस मानसिक क्लेश और पदोन्नति के अवसर गंवाने का जो दर्द झेलना पड़ा, उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
श्री चतुर्वेदी जी को किसी अधिकारी के खिलाफ कोई 'जेनुइन' शिकायत की जरुरत नहीं होती थी। क्योंकि वह ख़ुद किसी पानवाले, मिठाईवाले, ठेलावाले इत्यादि लोगों को बुलाकर उससे बनावटी (फर्जी) शिकायत लिखवा लेते थे। वे अपने शिकार के ख़िलाफ़ बड़े से बड़ा झूठ और सरासर निराधार रिपोर्ट तैयार करके रेलवे बोर्ड को भेजते थे और रे. बो. की विजिलेंस बांच उसकी बिना कोई जांच - पड़ताल किए ही सम्बंधित अधिकारी का नाम एग्रीड लिस्ट में डलवा देती थी। चतुर्वेदी जी अक्सर अपनी रिपोर्ट में 'सोर्स इन्फार्मेशन - इनसाइड इन्फार्मेशन' इत्यादि का उल्लेख करते थे, जो की पूरी तरह निराधार अथवा बेबुनियाद होती थी।
चतुर्वेदी जी का डीआरएम् /बिलासपुर का कार्यकाल सिर्फ़ १४ महीने में खत्म कर दिया गया था क्योंकि उनके खिलाफ रेलवे बोर्ड में शिकायतों का अम्बार लग गया था। बिलासपुर मंडल के सभी अधिकारी और कर्मचारी इनसे पूरी तरह असंतुष्ट थे और लगभग सभी ब्रांच अधिकारी इनके खिलाफ रेलवे बोर्ड को शिकायत कर चुके थे। इसीलिए जब चतुर्वेदी जी एसडीजीएम्/एसईआर की पोस्ट संभाली थी तो सबसे पहले बिलासपुर मंडल के ही सारे अधिकारियों के खिलाफ ही विजिलेंस की फाईलें खुलवाई थीं।
शायद यही कारण था की उन्हें आज तक kisi railway mein सीओएम् और सीसीएम् नहीं बनाया गया। अब यह रेलवे को सोचना चाहिए की ऐसे रुग्ण दिमाग वाले व्यक्ति को बोर्ड ki किसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर रखकर रेल अधिकारियों अरु कर्मचारियों में असंतोष फैलाना कहाँ तक जायज है ?
मजे की बात यह है की चतुर्वेदी जी बीच - बीच में दक्षिण पूर्व रेलवे के जाने माने बेईमान अधिकारियों का अच्छा चरित्र प्रमाण पत्र बनाकर रेलवे बोर्ड को भेजा करते थे और ऐसे अधिकारियों को वह अपने संरक्षण में रखते थे। चतुर्वेदी जी की ईमानदारी की सबसे बढ़िया मिसाल यह है की जब वह बिलासपुर मंडल के डीआरएम् थे तब उन्होंने अपनी श्रीमती जी द्वारा चलाये जा rahe ek private स्कूल को १० लाख से ज्यादा का अनुदान दिलवाया था और तमाम बाहरी लोगों को करीब ६ लाख का खाना railway कैटरिंग से खिलवाया था। इस बारे में रेलवे बोर्ड में लिखित शिकायत दर्ज है लेकिन विजिलेंस में पूर्व पोस्टिंग के कारण चतुर्वेदी जी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं को रही है।
चतुर्वेदी जी की ईमानदारी का नाटक बिलासपुर में इस हद तक पहुँच गया था की निरीक्षण के दौरान यदि शिष्टाचार के नाते किसी स्टेशन मास्टर ने अगर इन्हें चाय मांगा कर पिलाई तो यह उसे अपमानित करते थे और बाद में पत्र लिखकर उससे चाय की रसीद मंगाते थे। मेट्रो रेलवे कोल्कता में पोस्टिंग के दौरान उन्हें अपने इसी 'खब्ती आचरण' के कारण दो बार कर्मचारियों से अपमानित भी होना पडा था।
यहाँ यह विचार करने की जरुरत है की जिन अधिकारियों को श्री चतुर्वेदी की इस बीमार मानसिकता के कारण लंबे समय तक मानसिक क्लेश झेलना पडा क्या रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री उनको न्याय दिलाने के लिए श्री चतुर्वेदी के ख़िलाफ़ कोई कठोर कार्रवाई की क्षमता रखते हैं ?
आई आर टी एस अधिकारियों में चतुर्वेदी जी इतने कुख्यात राहे हैं की कोल्कता में लंबे समय तक इनकी पोस्टिंग के दौरान इन्हें न तो कोई अधिकारी अपने घर बुलाता था न ही इनसे कोई बात करता था यानी यह वहां पूरी तरह अलग - थलग पड़ गए थे क्योंकि सभी अधिकारियों ने इनका बायकाट कर रखा था।
अधिकारियों का कहना है की बीमार मानसिकता के इस अधिकारी को रेलवे से turant पदमुक्त करके इनके द्वारा बनाए गए झूठे, निराधार और बनावटी विजिलेंस maamalon की jaldi se जांच पड़ताल करके सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को न्याय दिया जाना चाहिए।
No comments:
Post a Comment