Wednesday, 23 July 2008

अफसरों के असमय ट्रांसफर में महाप्रबंधक / एन सी आर की मनमानी

जैसा कि पहले भी कई बार 'रेलवे समाचार' ने लिखा है कि श्री विवेक सहाय, महाप्रबंधक/एन सी आर, को अपने मातहत अफसरों को सताने और उत्पीड़ित करने में मज़ा आता है। क्योंकि ऐसा करने में उन्हें एक विशेष प्रकार का आत्मिक सुख प्राप्त होता है। उनकी यह 'सैडिस्ट मानसिकता' आज उनके महाप्रबंधक बनने के बाद भी कायम है। इसका ज्वलंत उदहारण पिछले दिनों उनके द्वारा ट्रैफिक एवं इंजीनियरिंग के कई अफसरों का असमय ट्रांसफर कर दिया जाना है।
श्री सहाय ने जिन ८ ट्रैफिक अफसरों का हाल ही में तबादला किया है उनमें से एक अफसर को सिर्फ़ १ महिना और १ अफसर को मात्र ५ महीने ही हुए थे। सहाय के सामने स्वयं को असहाय पा रहे इन अफसरों का कहना है कि जब स्कूल खुल गए हैं, बच्चों कि फीस भर दी गई है, यूनिफार्म और कापी - किताबें खरीदी जा चुकी हैं तब यह तबादले करने का क्या औचित्य है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार इनमें से एक अफसर ऐसा भी hai jise यौन उत्पीड़न के घिनौने आरोप में आगरा मंडल की जिस पोस्ट से हटाया गया था उसे उसी पोस्ट पर पुनः श्री सहाय ने अपना वरदहस्त प्रदान करके बैठा दिया है। इन अफसरों का कहना है कि यदि उन्हें मार्च - अप्रैल में ट्रांसफर कर दिया जाता तो उन्हें कोई शिकायत नहीं होती। उन्होंने कहा कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब श्री सहाय ने ऐसा किया है, इससे पहले उन्होंने इसी प्रकार इंजीनियरिंग के भी कई अफसरों के तबादले इसी तरह कि मनमानी करते हुए किए थे।
अफसरों का कहना था कि जो अधिकारी लगातार २५-३० सालों तक मुंबई में एक ही जगह टिक कर रहा हो और अपनी फेमिली को भी एक ही जगह रखा हो वह आदमी ( विवेक सहाय ) अन्य अधिकारीयों को निर्धारित कार्यकाल भी पुरा नही करने देना चाहता है। येही नही वह अभी भी वापस मुंबई जाने की जुगत लगा रहा है।
अधिकारीयों का कहना है कि इससे पहले वह एक बार अपने इस प्रयास में फेल हो चुके हैं और अब अपनी यह तड़प वो अपने मातहत अफसरों और उनके बीवी - बच्चों को तद्पाकर निकल रहे हैं। उनका कहना था कि इस व्यक्ति ने कभी भी कर्मचारी कल्याण कि कोई बात नहीं की है।

1 comment:

Suresh Tripathi said...

aapki baat sahi hai, magar railway administration is tarah ki manmani par koi pratibandh kyon nahi lagata hai, yeh aashcharya ki baat hai.