Saturday 14 April, 2012

कंट्रोलर्स को तो हम बचा लेंगे, 

मगर हमें कौन बचाएगा...? 

कोलकाता : दो कार्पोरेट घरानों की आपसी लड़ाई में दक्षिण पूर्व रेलवे के निचले स्तर के ट्रैफिक अधिकारी उत्पीड़ित किए जा रहे हैं, जबकि जो अधिकारी वास्तव में इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं, उनको विजिलेंस और सीबीआई की कार्रवाई से न सिर्फ बचाया जा रहा है, बल्कि आज उन्हीं के मार्गदर्शन में विजिलेंस और सीबीआई की कार्रवाई चल रही है. वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों को बचाने एवं उनकी कुटिल करतूतों को ढंकने के लिए निचले स्तर के अधिकारियों को फंसाया जा रहा है.. इससे यहाँ सभी ट्रैफिक अधिकारियों में एक प्रकार की दहशत व्याप्त है. शायद किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं होगा कि रेक का आवंटन कंट्रोलर्स द्वारा किया जाता है, मगर द. पू. रे में यह करिश्मा हुआ है, क्योंकि वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों को बचाना है. प्राप्त जानकारी के अनुसार जो सवाल सीबीआई द्वारा सीओएम को पूछा गया था, उसका जवाब डिप्टी सीओएम/प्रोजेक्ट एंड प्लानिंग ने दिया है. सीओएम कार्यालय, गार्डेन रीच से यह जवाब 21 मार्च 2012 को सीबीआई/कोलकाता को भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि रेक का आवंटन चक्रधरपुर मंडल के चीफ कंट्रोलर/मिनरल श्री एम. के. राय और श्री एस. के. तिवारी ने किया था. सीबीआई ने सीओएम/द.पू.रे. को पूछा था कि मेसर्स रश्मि सीमेंट लि. को रेकों का वास्तविक आवंटन किन अधिकारियों ने किया था, उनका नाम, पदनाम, वेतनमान और वर्तमान पोस्टिंग कहाँ है, आदि जानकारी सीबीआई को मुहैया कराई जाए. इसी का उपरोक्त जवाब डिप्टी सीओएम/पीपी श्री पी. एल. हरनाथ ने दिया है. यह कितना हास्यास्पद है. 

इसी प्रकार बराजाम्दा और बड्विल के बीच ओएमडीसी साइडिंग के पास अपनी साइडिंग बनाने के लिए रश्मि सीमेंट को द. पू. रे. द्वारा भूमि का आवंटन किया गया था. यह आवंटन तत्कालीन सीओएम और सीटीपीएम ने किया था, क्योंकि इस प्रकार के काम के लिए भूमि आवंटन का अधिकार उन्हीं के पास होता है. मगर इस मामले में तत्कालीन सीओएम और सीटीपीएम को बचाने के लिए विजिलेंस ने तत्कालीन डिप्टी सीओएम/पीपी को इसमें फंसाया. टैफिक अधिकारियों में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है कि साइडिंग या लैंड एलाटमेंट के लिए डिप्टी सीओएम/पीपी को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो कि सिर्फ फाइल पुटअप करता है? यह अधिकार तो सीओएम और सीटीपीएम का है. यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि तत्कालीन डिप्टी सीओएम/पीपी को रेलवे छोड़े (वीआरएस लिए) हुए भी कई साल हो चुके है. कोई भी अधिकारी यह नहीं बता पा रहा है कि रेक और भूमि आवंटन में गड़बड़ी कहाँ और क्या हुई है. इस मुद्दे को सभी अधिकारी एक - दूसरे पर ढ़केल रहे हैं, और अंततः अपने आपको बचाने के लिए सारा दोष इन अधिकारियों ने कंट्रोलर्स के सिर मढ़ दिया है. डिप्टी सीओएम/पीपी हरनाथ द्वारा सीबीआई को दिया गया जवाब भी कुछ इस तरह जलेबी टाइप बनाया गया है कि सीबीआई वाले खुद उसमें चकरघिन्नी बनकर रह जाएँ. इस सबका अर्थ यह लगाया जा रहा है कि जो सांप वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों की मिलीभगत से द. पू. रे. विजिलेंस ने रेंगाया था, उसे किसी तरह बिल के अन्दर घुसाया जाए, इसीलिए रश्मि ग्रुप से सम्बंधित मामलों को चकरघिन्नी की तरह घुमाया और जलेबी की तरह लपेटा जा रहा है. 

नाम उजागर न करने की शर्त पर द. पू. रे. के कुछ ट्रैफिक अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान सीओएम के एजेंट बनकर और उनके मार्गदर्शन में काम कर रहे कुछ विजिलेंस अधिकारी सीबीआई आफिस में जाकर सीबीआई अधिकारियों को यह समझा रहे हैं कि रेलवे में ट्रैफिक अधिकारियों द्वारा चोरी कैसे की जाती है? उनका कहना है कि यहाँ यह भी जानना आश्चर्यजनक है कि ट्रैफिक विजिलेंस का अधिकारी नाकारा है, जबकि स्टोर विजिलेंस का अधिकारी समझदार है, क्योंकि वह उड़िया है, और इसीलिए उड़िया लाबी को बचाने के लिए इस सम्पूर्ण ट्रैफिक घोटाले की जांच बिरादरी भाई को जानबूझकर दिलवाई गई है. कौन कितनी लोडिंग करेगा, किसे कितने रेक आवंटित किए जाएँगे, कौन घरेलू इस्तेमाल के लिए लोडिंग करेगा, कौन निर्यात के लिए करेगा, घरेलू इस्तेमाल के लिए कहकर लोडिंग करने वाला उसे निर्यात नहीं करेगा, क्या यह सब देखना रेलवे का काम है, अथवा यह सब देखने की रेलवे को जरूरत क्या पड़ी है? रेलवे को राशनिंग करने की भी जरूरत क्या है? यह राशनिंग ही वास्तव में ट्रैफिक में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी जड़ है. ईडी/आरएम आफिस कोलकाता कोयले के साथ 'सी' वरीयता के आयरन ओर की लोडिंग के लिए रेक का आवंटन करता है. रश्मि सीमेंट को 'सी' प्रायोरिटी के रेकों का आवंटन तत्कालीन ईडी/आरएम और वर्तमान सीओएम/द.पू.रे. ने किया था. उनका नाम अथवा उनके ईडी/आरएम के कार्यकाल का कोई उल्लेख इस घोटाले में नहीं है. 

इसी तरह रश्मि सीमेंट को साइडिंग और लैंड एलाट करने वाले तत्कालीन सीओएम और सीटीपीएम, सीएफटीएम्स के नाम भी सीबीआई की एफआईआर अथवा इस घोटाले की जांच में शामिल नहीं हैं. अधिकारी बताते है कि इनके नाम इसलिए नहीं डाले गए हैं, क्योंकि ये सभी एसएजी अधिकारी हैं, जिनके लिए रेलवे बोर्ड की अनुमति लेनी पड़ती, जो कि मिलने वाली नहीं थी. इसलिए इनके पापों का खामियाजा भुगतने के लिए निचले स्तर के अधिकारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि रश्मि सीमेंट की साइडिंग का निर्माण वर्ष 2004 में हुआ था, जबकि रेलवे बोर्ड की आयरन ओर डिफरेंशियल पॉलिसी चार साल बाद वर्ष 2008 में आई थी. साइडिंग निर्माण का अनुमति पत्र मंडल से जारी किया गया था, और भूमि का आवंटन तत्कालीन सीटीपीएम ने किया था. इसमें तत्कालीन डिप्टी सीओएम/पीपी कहाँ जिम्मेदार है? सेवानिवृत्ति के कई सालों बाद विजिलेंस के दिग्भ्रमित किए जाने पर सीबीआई ने इस सेवानिवृत्त अधिकारी के घर पर छापेमारी की, जिसका कोई जवाब कोर्ट के सामने सीबीआई नहीं दे पाई और विजिलेंस के मार्गदर्शन में काम करने के कारण उसे कोर्ट के सामने शर्मिंदा होना पड़ा. कुछ अधिकारियों का तो यहाँ तक कहना है कि रश्मि ग्रुप को विधानसभा चुनावों में वामपंथियों की अपेक्षा रेलवे में काबिज राजनीतिक पार्टी को कम वित्तीय मदद देने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, और इसीलिए उसको सबक सिखाने हेतु रेलवे विजिलेंस सहित सीबीआई का इस्तेमाल किया जा रहा है..??

इसी तरह पिछले 8-10 वर्षों में चक्रधरपुर मंडल के सीनियर डीओएम रहे अधिकारियों को अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा है. इसका मुख्य कारण द. पू. रे. और रेलवे बोर्ड के कुछ ट्रैफिक अधिकारियों की चालाकी और बेईमानी बताई जाती है. इसके अलावा विजिलेंस के कुछ निकम्मे और अनुभवहीन अधिकारियों ने भी द. पू. रे. ट्रैफिक डिपार्टमेंट का बेड़ा गर्क करके रख दिया है. वे कुछ वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों के एजेंट बनकर रह गए हैं. उदाहरण स्वरूप एक पूर्व एसडीजीएम के कार्यकाल में दर्जनों जेएजी ट्रैफिक अफसरों को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट दी गईं थीं, जिन्हें पढने मात्र से पता चल जाता है कि उनमें कितनी खामियां हैं. इसका मुख्य कारण यह बताया जाता है कि उक्त एसडीजीएम अत्यंत संवेदनहीन और दूसरों को हानि पहुंचाकर सुख की अनुभूति करने वाली किस्म का अधिकारी था, जिसने मात्र इसी के लिए दर्जनों ट्रैफिक अधिकारियों को फालतू विजिलेंस मामलों में फंसाया था. वर्तमान एसडीजीएम ने भी शायद ही कभी डिवीजनों में काम किया है. जबकि उनके नीचे काम करने वाले कुछ वर्तमान डिप्टी सीवीओ ने तो कभी डिवीजनों में काम ही नहीं किया है. जिन्हें ट्रैफिक विभाग के काम का और इसमें होने वाले घोटालों का कोई अनुभव नहीं है, वैसे विजिलेंस अधिकारी यहाँ ट्रैफिक अधिकारियों के भाग्य का निर्णय कर रहे हैं. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार द. पू. रे. के वर्तमान डिप्टी सीवीओ/ट्रैफिक स्टेशन मास्टर कैडर से आए हैं. उन्होंने आजतक कभी-भी किसी भी डिवीजन में बतौर डीओएम, सीनियर डीओएम अथवा डीसीएम या सीनियर डीसीएम के रूप में काम नहीं किया है. उन्होंने अपने सेवाकाल का ज्यादातर समय पीए/सीओएम के रूप में काम करते हुए बिताया है. उन्हें परिचालन अथवा डिवीजनल वर्किंग का कोई अनुभव नहीं है. ऐसे में उन्हें जोनल विजिलेंस में ट्रैफिक और कमर्शियल ब्रांच सम्बन्धी कामकाज का चार्ज कैसे सौंपा गया? उपरोक्त उड़िया ट्रैफिक अधिकारियों सहित आजतक किसी उड़िया अधिकारी के खिलाफ कोई विजिलेंस केस क्यों नहीं बना? क्या इसका कारण डिप्टी सीवीओ/स्टोर को माना जाना चाहिए? रश्मि सीमेंट और रश्मि मेटालिक्स के मामले में सिर्फ सीनियर डीओएम/चक्रधरपुर के ही खिलाफ विजिलेंस मामला क्यों बनाया गया, क्यों नहीं तत्कालीन सीओएम, सीएफटीएमस और सीटीपीएम के खिलाफ कोई मामला बना? जबकि यह सार्वजनिक सत्य है कि चक्रधरपुर मंडल में एक भी रेक की लोडिंग द. पू. रे. मुख्यालय की पूर्व अनुमति या आदेश के बिना नहीं होती है. 

इसी प्रकार द. पू. रे. विजिलेंस के वर्तमान डिप्टी सीवीओ/स्टोर हैं, जिन्हें स्टोर का काम छोड़कर ट्रैफिक और कमर्शियल ब्रांच का विजिलेंस कार्य सौंपा गया है, ऐसे में सबसे पहला सवाल यह उठता है कि वर्तमान डिप्टी सीवीओ/ट्रैफिक को वहां बैठाकर मुफ्त में प्रति माह 60-70 हजार का वेतन क्यों दिया जा रहा है? वर्तमान डिप्टी सीवीओ/स्टोर ने भी कभी डिवीजन वर्किंग नहीं की है, और न ही उन्हें डिवीजनों में कभी बतौर सीनियर डीएमएम काम करने का कोई अनुभव प्राप्त है. बताते हैं कि उनके मार्गदर्शन में ही सीबीआई द्वारा रश्मि ग्रुप के मामलों की जांच की जा रही है, और वे लगातार सीबीआई ऑफिस में जाकर सीबीआई अधिकारियों को इन मामलों की जानकारी लेपटाप और प्रोजेक्टर पर देते हैं कि ट्रैफिक अधिकारी किस तरह से रेलवे में चोरी या घोटाला करते हैं. अधिकारी यह भी बताते हैं कि वह प्रतिदिन सीओएम के साथ दो-तीन घंटे बिताते हैं और उनके बहुत अभिन्न उड़िया मित्र भी हैं. इसीलिए न ही विजिलेंस ने और न ही सीबीआई ने वर्तमान सीओएम के खिलाफ कोई मामला दर्ज किया है. इसीलिए सीबीआई ने तत्कालीन सीटीपीएम के खिलाफ भी कोई केस नहीं बनाया है, जबकि उन्हें बचाने के लिए तत्कालीन डिप्टी सीओएम/पीपी और रेलवे से बाहर जा चुके अधिकारी के खिलाफ सीबीआई ने वर्तमान डिप्टी सीवीओ/स्टोर के ही मार्गदर्शन में रश्मि सीमेंट/रश्मि मेटालिक्स की बराजाम्दा साइडिंग के आवंटन मामले में फर्जी केस बनाया, जिसमें उसे कोर्ट के सामने शर्मिंदा होना पड़ा है. 

इसके पहले भी द. पू. रे. विजिलेंस में वर्ष 2003-05 के दौरान एस. एस. बिष्ट को डिप्टी सीवीओ/इंजी. बनाया गया था, उन्होंने भी तब तक कभी बतौर सीनियर डीईएन किसी डिवीजन में काम नहीं किया था. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की कई शिकायतें भी हुई थीं, शायद इसी के चलते उनके बंगला प्यून ने उनकी पत्नी को चाकू मार दिया था और तब उन्हें द. पू. रे. से निकालकर उ. रे. में शिफ्ट किया गया था. इसी प्रकार शुभेंदु चौधरी को द. पू. रे. में डिप्टी सीवीओ/मेक. बनाया गया था, उन्होंने भी कभी किसी डिवीजन में बतौर सीनियर डीएमई काम नहीं किया था. वह जब खड़कपुर वर्कशाप में पदस्थ थे, तब वहां हमेशा ही औद्योगिक अशांति का वातावरण रहा. उन्हें भी ट्रैफिक विजिलेंस का काम सौंपा गया था, जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने तत्कालीन सीसीएम पी. एस. राय के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस बनाकर उन्हें प्रश्नावली दी थी, जिसके जवाब में राय ने तत्कालीन जीएम को भी अपने साथ उस मामले में लपेट लिया था. इसके फलस्वरूप जीएम को पसीना आ गया और तब जीएम चेंबर में ही बैठकर श्री राय ने शुभेंदु चौधरी को तत्काल विजिलेंस से हटवाया था, तब जीएम को उस मामले से छुटकारा मिला था. इस प्रकार द. पू. रे. विजिलेंस में लम्बे अर्से से गैर ट्रैफिक अधिकारी - ट्रैफिक अधिकारियों का भाग्य तय करते आ रहे हैं, जिसका ताजा उदाहरण वर्तमान डिप्टी सीवीओ/स्टोर और उनके कारण चकरघिन्नी बन गया रश्मि सीमेंट और रश्मि मेटालिक्स का मामला है, जिसमें अंततः कोई फुलप्रूफ नतीजा निकलता नजर नहीं आ रहा है, हाँ, यह बात अलग है कि उनके कारण कुछ जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों की मुशीबत, तो कुछ सीनियर्स की बचत अवश्य हो रही है. 

अधिकारियों का कहना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस के वर्तमान एडवाइजर श्री ए. के मोइत्रा से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह तमाम गुटबाजी और अंतर-विभागीय राजनीति से ऊपर उठकर मेहनती, कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार ट्रैफिक अधिकारियों का बचाव करेंगे, परन्तु अब पता चल रहा है कि रेलवे बोर्ड में सालों से बैठे कुछ वरिष्ठ और चालाक ट्रैफिक अधिकारियों तथा पूर्वाग्रहों से ग्रस्त विजिलेंस के कुछ ईर्ष्यालु, बेईमान और चापलूस अधिकारियों ने उन पर भी अपना भरपूर प्रभाव बना लिया है. इसीलिए उनके नेतृत्व में द. पू. रे. के कुछ वर्तमान और पूर्व वरिष्ठ ट्रैफिक अधिकारियों को बचाने की कीमत पर जूनियर ट्रैफिक अधिकारियों की बलि चढ़ाई जा रही है? 

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