अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान..
कोलकाता : इस मशहूर कहावत के जीते-जागते उदहारण मेट्रो रेलवे कोलकाता के डीजीएम/जी और सीपीआरओ श्री प्रत्यूष कुमार घोष हैं, जो कि जूनियर स्केल में होते हुए भी सीनियर स्केल का नहीं, बल्कि जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (जेएजी) का मज़ा लूट रहे हैं. इसी को कहते हैं 'अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान'. प्राप्त जानकारी के अनुसार घोष बाबू रेलवे में क्लर्क से भर्ती होकर जूनियर स्केल ग्रुप 'बी' अधिकारी बनने तक महाप्रबंधक कार्यालय, पू. रे. में कार्यरत रहे हैं. उनके 'अल्लाह' यानि वर्तमान ओएसडी/एमआर उर्फ़ 'छाया रेलमंत्री' श्री जे. के. साहा हैं. बताते हैं कि जब श्री साहा, जीएम/पू.रे. के सेक्रेटरी हुआ करते थे, तब घोष बाबू उनकी खूब 'सेवा' करके उनके बहुत करीबी बन गए थे. पूर्व में यही सेवा करने और करीबी बन जाने का फायदा आज घोष बाबू को मिल रहा है. बताते हैं कि ओएसडी/एमआर उर्फ़ 'छाया रेलमंत्री' बनने के तुरंत बाद सबसे पहला काम श्री साहा ने इस क्लर्क घोष को जूनियर स्केल अधिकारी (एपीओ) बनवाकर उस पोस्ट पर एडीजीएम बनवा दिया, जो कि बताते हैं कि कई विजिलेंस मामलों और रिवर्सन की कार्रवाई से बचने के लिए एक और चोर, चापलूस और चरित्रहीन अधिकारी अशोक चौधरी के सेवानिवृत्ति से पहले ही वीआरएस ले लेने से खाली हुई थी?
उल्लेखनीय है कि एडीजीएम बनवाकर श्री साहा ने घोष बाबू को तत्कालीन तुनकमिजाज़ रेलमंत्री ममता बनर्जी को एयरपोर्ट से लाने - ले जाने का अति महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिया. फिर क्या था, साहा और घोष बाबू की इस जुगलबंदी ने खूब गुल खिलाए. इसी बीच अदालत में केस करके और रेलवे बोर्ड के सम्बंधित अधिकारियों को पटाकर जे. ए. ग्रेड में प्रमोशन लेकर द. पू. रे., कोलकाता से हटाकर द. म. रे., सिकंदराबाद में सीपीआरओ बनाकर बैठा दिए गए श्री आर. एन. महापात्र जब किसी तरह वहां से जुगाड़ लगाकर मेट्रो रेलवे कोलकाता में अभी फिर से लौटे ही थे, कि कुछ ही दिनों में उन्हें वहां से पू. त. रे., भुवनेश्वर में खिसका करके श्री साहा ने अपने 'सेवादार' घोष बाबू को उनकी जगह पर मेट्रो में बैठा दिया. बताते हैं कि पूरी भारतीय रेल में घोष बाबू ही शायद एक अकेले ऐसे अधिकारी हैं जो कि जूनियर स्केल में होते हुए भी जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड में काम करके उसकी सारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं. यह भी पता चला है कि उन्हें बंगला प्यून भी दे दिया गया है. सत्ता का कृपा-पात्र होने और सेवादारी करने का यही तो सबसे बड़ा फायदा है, जो कि भा. रे. के तमाम ईमानदार रेल अधिकारियों को घोष बाबू से सीखना चाहिए.
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