Friday 28 October, 2011


मगर शर्म उन्हें नहीं आती...

आईआरपीओएफ के महासचिव को इस्तीफा दे देना चाहिए.. 

मुंबई : 16 अक्तूबर की शाम को हुई एक मामूली घटना को तिल का ताड़ बनाकर पू. म. रे. के कार्मिक अधिकारियों ने कर्मचारियों के तथाकथित हंगामे को मोहरा बनाकर इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) के वित्त सचिव और पू. म. रे. प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन (ईसीआरपीओए) के महासचिव सीनियर एएफए श्री शशिरंजन को निलंबित करा दिया था. पता चला है कि शुक्रवार, 28 अक्तूबर को उनका निलंबन ख़त्म कर दिया गया है. मगर बताते हैं कि सिर्फ निलंबन ही ख़त्म हुआ है, मामला ख़त्म नहीं हुआ है. इसके बाद उन्हें मेज़र या माइनर पेनाल्टी चार्जशीट देकर उनके खिलाफ डीएआर की कार्रवाई शुरू की जाएगी. तथापि इसके लिए आईआरपीओएफ के महासचिव श्री जीतेन्द्र सिंह ने अपने सभी जोनल पदाधिकारियों और अन्य प्रमोटी अधिकारियों को एक मोबाइल सन्देश भेजकर श्री शशिरंजन का निलंबन ख़त्म करवाने में सहयोग देने के लिए आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) और पू. म. रे. कर्मचारी यूनियन (ईसीआरकेयू) के महासचिव को धन्यवाद् दिया है. 

हालाँकि इसमें कोई बुराई नहीं है, मगर यह 'धन्यवाद्' देने में क्या उन्हें शर्म नहीं आई? यह पूछना है भारतीय रेल के तमाम प्रमोटी अधिकारियों का. उनका कहना है कि जब प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन के एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी को इस घटिया तरीके से निलंबित किया जा सकता है, और दोनों अधिकारी संगठन इसमें कुछ नहीं कर पाते हैं, तो सर्वसामान्य प्रमोटी अधिकारी की क्या हैसियत रह गई है? उनका यह भी कहना है कि अब अगर अधिकारियों के अकारण निलंबन को भी ख़त्म करवाने के लिए प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशने, कर्मचारी संगठनों की मोहताज़ होंगी और उनकी चिरौरी करेंगी, तो यह भविष्य के लिए न सिर्फ एक गलत उदाहरण बनेगा, बल्कि इससे बेहतर तो यह होगा कि प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और जोनल प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशनो को ही ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और इन्हें पूर्व की भांति कर्मचारी संगठनों का ही सदस्य बने रहने देना चाहिए, क्योंकि जब यह अपने मामले खुद सुलझाने के लायक नहीं हैं और आज भी इनके मामूली झगड़े कर्मचारी संगठनों को ही आकर सुलझाना पड़ता है, तो इन्हें अलग से अधिकारी संगठन बनाने की मान्यता और इसकी तमाम सुविधाएं क्यों दी जानी चाहिए? 

इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि इस उदाहरण से भविष्य में कर्मचारियों में एक गलत सन्देश जाएगा और वह अब ज्यादा उद्दंड होंगे, उनसे कोई काम लेना पहले की अप्पेक्षा अब अधिकारियों के लिए काफी मुश्किल हो जाएगा. जबकि आज भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, क्योंकि कर्मचारी संगठनों के कुछ भ्रष्ट पदाधिकारी आज भी अपने उलटे-सीधे काम करवाने के लिए अधिकारियों को ब्लैकमेल करते हैं. चूँकि कुछ अधिकारी भी ऐसे हैं जो गलत कामों में लिप्त हैं, इसलिए सिर्फ किसी एक पक्ष को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा, मगर श्री शशिरंजन के मामले में प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन का रवैया अत्यंत शर्मनाक रहा है. इस मामले में अगर श्री शशिरंजन दोषी हैं, तो दूसरा पक्ष भी उतना ही दोषी है. उसे क्यों नहीं दोषी ठहराया गया? उसे भी क्यों नहीं निलंबित किया गया? एकतरफा कदम उठाने से पहले घटना की फैक्ट फाइंडिंग क्यों नहीं करवाई गई? एक तरफ बिना कोई प्राथमिक जांच के श्री शशिरंजन को निलंबित किया गया और अब उनके खिलाफ डीएआर की कार्रवाई भी की जाएगी. जबकि दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं है. यह कहाँ तक न्यायसंगत है?

जोनल कर्मचारी संगठन ने घुमा-फिराकर ही सही, मगर यह स्वीकार किया है कि श्री शशिरंजन के निलंबन की मांग उसने की थी और अब उनके निलंबन को ख़त्म करवाने में भी उसने अपना कथित सहयोग दिया है. इसके बावजूद श्री शशिरंजन का निलंबन ख़त्म होने में पूरे 12 दिन लग गए? फिर भी परिणाम ढ़ाक के तीन पात वाला ही है, यानि डीएआर कार्रवाई होगी. तो इसमें नया क्या है? निलंबन को तो वैसे भी एक दिन प्रशासन को ख़त्म करना ही पड़ता. उसे अनिश्चित काल तक तो चलाया नहीं जा सकता था. इसमें प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन और कर्मचारी संगठन को किस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए? यदि कोई श्रेय किसी को है, तो वह रेल प्रशासन को है. तथापि जिन्होंने हमें थोड़ा सा भी कोई सहयोग किया है, उन्हें धन्यवाद् देना, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शाना हमारी संस्कृति है, मगर इसकी आड़ में अपनी पीठ थपथपाना एक बेशर्म और चालाकी भरी कोशिश भी है. 

प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन के महासचिव को ऐसी किसी कोशिश से बचना चाहिए था, जो कि नेताओं की तरह दिन भर में 100 बातों में से 90 बातें झूठ बोलते हैं. आज उनकी इस 'खूबी' से भारतीय रेल के सभी प्रमोटी अधिकारी 'बखूबी' वाकिफ हो गए हैं. वह अक्सर कहते या डींग मारते हुए सुने जा सकते हैं कि वह बोर्ड के साथ झगड़ा करके कोई काम करवाने में विश्वास नहीं करते, तो इसका क्या यह मतलब निकाला जाना चाहिए कि क्या वह इस स्थिति में हैं कि वह बोर्ड के साथ कोई झगड़ा भी कर सकते हैं? बल्कि उन्हें यह समझने की जरूरत है कि चापलूसी करने से किसी को अपना अधिकार कभी हासिल नहीं होता. उन्होंने अपनी ऐसी ही कार्यप्रणाली से प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन की सारी गरिमा को न सिर्फ ख़त्म कर दिया है, बल्कि उनकी इसी कार्यप्रणाली के कारण तमाम प्रमोटी अधिकारियों का मोह भी फेडरेशन से भंग हो गया है. यह एक सच्चाई है, और श्री शशिरंजन के मामले को गरिमापूर्ण तरीके से हल न करवा पाने के लिए उन्हें अब प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन के महासचिव पद से तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए, यह न सिर्फ समय की मांग है, बल्कि भारतीय रेल के सभी प्रमोटी अधिकारी भी अब अपने आत्म-सम्मान को बचाए रखने के लिए यही चाहते हैं. 

Thursday 27 October, 2011


अपने ही चक्रव्यूह में फंसा पू. रे. प्रशासन 

कोलकाता : पहले डिप्टी सीओएम/प्लानिंग/कंस्ट्रक्शन की वर्कचार्ज पोस्ट का एलिमेंट उठाकर फिर उस पर सीनियर डीसीएम/समन्वय की पोस्ट क्रियेट करके, फिर उसे स्क्रेप किए जाने के कैट के निर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट से स्टे आर्डर लेकर, फिर उसे भी स्क्रेप करके तथा उसके बाद उसका इस्तेमाल सीओएम के चापलूस सेक्रेटरी को जेएजी में प्रमोशन देने के लिए करके और रेलवे बोर्ड के आदेश के खिलाफ डिप्टी सीओएम/फ्वोईस-2 की एक एक्स्ट्रा पोस्ट क्रियेट करके पू. रे. प्रशासन अब बुरी तरह फंस गया है. खबर यह भी मिली है कि अब सीपीओ भी इस सारे गड़बड़ घोटाले को लेकर चिंतित दिखाई दे रहें हैं. पता चला है कि 19 अक्तूबर को सीओएम द्वारा सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार को डिप्टी सीओएम/फ्वोईस की पोस्ट पर ज्वाइन न करने और बिना छुट्टी के ड्यूटी से गायब रहने की चिट्ठी उनके घर पर भेजवाने के बाद सीपीओ को इस बात का अहसास हुआ कि जब श्री अनिल कुमार ने अपना सीनियर डीसीएम का चार्ज अब तक छोड़ा ही नहीं है, तो उन्हें डिप्टी सीओएम/फ्वोईस की पोस्ट पर ज्वाइन करने के लिए कैसे कहा जा सकता है और यह चिट्ठी कैसे भेजी गई? बताते हैं कि इस बात को लेकर सीपीओ और सीओएम के बीच काफी गहन विचार-विमर्श हुआ है और अब यह निर्णय लिया गया है कि अब चुपचाप बैठा जाए और कोर्ट का निर्णय आने का इंतजार किया जाए. 

परन्तु बताते हैं कि सीपीओ को अब इस बात की भी चिंता सता रही है कि जब हाई कोर्ट से सीनियर डीसीएम/समन्वय की पोस्ट स्क्रेप किए जाने के कैट के निर्णय के खिलाफ स्टे लिया गया था, तो उसे बिना हाई कोर्ट को बताए अथवा विश्वास में लिए बिना उक्त पोस्ट को स्क्रेप क्यों कर दिया गया, इससे तो अदालत की मानहानि का मामला बन जाएगा. सूत्रों का कहना है कि श्री अनिल कुमार ने इसके खिलाफ पहले ही कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी है. इससे रेल प्रशासन अब और परेशान हो गया है. बताते हैं कि सीनियर डीसीएम/समन्वय की पोस्ट को बिना हाई कोर्ट को विश्वास में लिए उसे मुख्यालय में लाकर उसका इस्तेमाल सीओएम के चापलूस और हर फन में माहिर सेक्रेटरी विश्वजीत चक्रवर्ती को जेएजी में प्रमोशन देने के लिए किया गया है, जो कि न सिर्फ गलत हुआ है, बल्कि श्री चक्रवर्ती को जूनियर स्केल से जेएजी तक के सारे प्रमोशन उसी जगह दिए गए हैं और उन्हें पिछले करीब 10-12 वर्षों से सीओएम के सेक्रेटरी की ही पोस्ट पर बैठाए रखा गया है, जो कि पू. रे. में तमाम ट्रैफिक अफसरों की ट्रान्सफर/पोस्टिंग में हेराफेरी करके और माहवार 'चंदा' देने वाले ट्रैफिक अधिकारियों को 'कमाऊ' पोस्टों पर पोस्टिंग दिलवाकर मजबूत कमाई कर रहें हैं? 

प्राप्त जानकारी के अनुसार डिप्टी सीओएम/प्लानिंग/कंस्ट्रक्शन की वर्कचार्ज पोस्ट 30 सितम्बर 2010 को श्री एम. एम. चौधरी के सेवानिवृत्त होने पर खाली हुई थी. इस पोस्ट को पहले मुख्यालय में फिर वहां से डिवीजन में ले जाकर श्री अनिल कुमार को परेशान और अधिकारविहीन करने के लिए सीनियर डीसीएम/समन्वय की पोस्ट क्रिएट की गई थी. अब इसी एलिमेंट का इस्तेमाल श्री चक्रवर्ती को प्रमोशन देने के लिए किया गया है, जबकि श्री चौधरी के सेवानिवृत्त होने पर इस पोस्ट पर एक अन्य ग्रुप 'बी' अधिकारी को प्रमोट किया जाना था. परन्तु श्री अनिल कुमार को परेशान करने के लिए रेल प्रशासन ने यह एलिमेंट वहां से उठा लिया, जिससे उक्त ग्रुप 'बी' अधिकारी को जेएजी प्रमोशन मिलने में करीब दो साल की देरी हुई थी. अब प्रशासन ने जहाँ इस एलिमेंट पर श्री चक्रवर्ती को प्रमोशन देकर चौथी-पांचवीं बार गलती की है, वहीँ डिप्टी सीओएम/फ्वोईस-2 की एक और पोस्ट क्रिएट करके अपनी गलतियों को बार-बार दोहराया है. जबकि रेलवे बोर्ड के पत्र संख्या 2006/C&IS/Project/FOIS/3rd Revised Estimate/1PP, Dated 25.06.2010 के अनुसार रेलवे बोर्ड ने 16 जोनल रेलों में से प्रत्येक को सिर्फ एक ही डिप्टी सीओएम/फ्वोईस की पोस्ट एलाट की है. तब सवाल यह उठता है कि डिप्टी सीओएम/फ्वोईस-2 की एक एक्स्ट्रा पोस्ट पू. रे. के पास आई कहाँ से..? यानि श्री अनिल कुमार को परेशान करने के लिए ही यह सारा तिकड़म किया गया था. 

बताते हैं कि पू. रे. प्रशासन ने अदालत की मानहानि से बचने के लिए डिप्टी सीओएम/फ्वोईस-2 की पोस्ट क्रिएट की थी, जो कि अब उसके गले की फांस बन गई है. सूत्रों का कहना है कि यह सारा तिकड़म श्री अनिल कुमार को परेशान करने के लिए पूर्व अय्याश डीआरएम के साथ अय्याशी में लिप्त रहे जे. के. साहा जैसे पूर्व रेलमंत्री के कुछ सहायकों की मिलीभगत से किया गया था. बताते हैं कि अब पूर्व अय्याश डीआरएम के चले जाने और उनके साथ अय्याशी में लिप्त रहे पूर्व रेलमंत्री के सहायकों का दबाव कम हो जाने के बाद पू. रे. प्रशासन को इस बात का अहसास हो रहा है कि यदि अदालत की मानहानि से बचना है तो सीनियर डीसीएम/समन्वय की पोस्ट को फिर से डिवीजन में ले जाना पड़ेगा. सूत्रों का कहना है कि जब यह बात तय हो गई तो इसके साथ ही महाचापलूस विश्वजीत चक्रवर्ती का रिवर्सन होना भी तय हो गया. सूत्रों का कहना है कि श्री चक्रवर्ती को जब इस बात का पता चला तो वह अपना रिवर्सन टालने के लिए एक अधिकारी को एक महीने की छुट्टी पर जाने के लिए कहने चले गए. बताते हैं कि उनकी तारीफ यह है कि यह काम उन्होंने सीओएम के नाम पर किया. 

जबकि सूत्रों का कहना है कि सीओएम ने श्री चक्रवर्ती से ऐसा कुछ भी करने के लिए नहीं कहा था. सूत्रों का यह भी कहना है कि इस महाचापलूस चक्रवर्ती ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि अगर उसके तीन महीने बीत जाते हैं, तो नियमानुसार उसे रिवर्ट नहीं किया जा सकेगा. इसीलिए उसने सीओएम के नाम पर यह चाल चली थी, जबकि सीओएम ने उक्त सम्बंधित अधिकारी से अब तक ऐसा कुछ भी न तो कहा है और न ही ऐसा कोई संकेत उसे दिया है. इससे इस महाचापलूस और काईयाँ अधिकारी की पोल खुल जाती है. अब देखना यह है कि पू. रे. प्रशासन अदालत में अपनी इन बार-बार दोहराई गई गलतियों से बचने के लिए क्या रास्ता अख्तियार करता है..? 


अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान..

कोलकाता : इस मशहूर कहावत के जीते-जागते उदहारण मेट्रो रेलवे कोलकाता के डीजीएम/जी और सीपीआरओ श्री प्रत्यूष कुमार घोष हैं, जो कि जूनियर स्केल में होते हुए भी सीनियर स्केल का नहीं, बल्कि जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (जेएजी) का मज़ा लूट रहे हैं. इसी को कहते हैं 'अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान'. प्राप्त जानकारी के अनुसार घोष बाबू रेलवे में क्लर्क से भर्ती होकर जूनियर स्केल ग्रुप 'बी' अधिकारी बनने तक महाप्रबंधक कार्यालय, पू. रे. में कार्यरत रहे हैं. उनके 'अल्लाह' यानि वर्तमान ओएसडी/एमआर उर्फ़ 'छाया रेलमंत्री' श्री जे. के. साहा हैं. बताते हैं कि जब श्री साहा, जीएम/पू.रे. के सेक्रेटरी हुआ करते थे, तब घोष बाबू उनकी खूब 'सेवा' करके उनके बहुत करीबी बन गए थे. पूर्व में यही सेवा करने और करीबी बन जाने का फायदा आज घोष बाबू को मिल रहा है. बताते हैं कि ओएसडी/एमआर उर्फ़ 'छाया रेलमंत्री' बनने के तुरंत बाद सबसे पहला काम श्री साहा ने इस क्लर्क घोष को जूनियर स्केल अधिकारी (एपीओ) बनवाकर उस पोस्ट पर एडीजीएम बनवा दिया, जो कि बताते हैं कि कई विजिलेंस मामलों और रिवर्सन की कार्रवाई से बचने के लिए एक और चोर, चापलूस और चरित्रहीन अधिकारी अशोक चौधरी के सेवानिवृत्ति से पहले ही वीआरएस ले लेने से खाली हुई थी? 

उल्लेखनीय है कि एडीजीएम बनवाकर श्री साहा ने घोष बाबू को तत्कालीन तुनकमिजाज़ रेलमंत्री ममता बनर्जी को एयरपोर्ट से लाने - ले जाने का अति महत्वपूर्ण कार्य सौंप दिया. फिर क्या था, साहा और घोष बाबू की इस जुगलबंदी ने खूब गुल खिलाए. इसी बीच अदालत में केस करके और रेलवे बोर्ड के सम्बंधित अधिकारियों को पटाकर जे. ए. ग्रेड में प्रमोशन लेकर द. पू. रे., कोलकाता से हटाकर द. म. रे., सिकंदराबाद में सीपीआरओ बनाकर बैठा दिए गए श्री आर. एन. महापात्र जब किसी तरह वहां से जुगाड़ लगाकर मेट्रो रेलवे कोलकाता में अभी फिर से लौटे ही थे, कि कुछ ही दिनों में उन्हें वहां से पू. त. रे., भुवनेश्वर में खिसका करके श्री साहा ने अपने 'सेवादार' घोष बाबू को उनकी जगह पर मेट्रो में बैठा दिया. बताते हैं कि पूरी भारतीय रेल में घोष बाबू ही शायद एक अकेले ऐसे अधिकारी हैं जो कि जूनियर स्केल में होते हुए भी जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड में काम करके उसकी सारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं. यह भी पता चला है कि उन्हें बंगला प्यून भी दे दिया गया है. सत्ता का कृपा-पात्र होने और सेवादारी करने का यही तो सबसे बड़ा फायदा है, जो कि भा. रे. के तमाम ईमानदार रेल अधिकारियों को घोष बाबू से सीखना चाहिए. 

A Rly Employee Who Was 
Nailed For Telling The Truth, 
Finally CVC Came To His Rescue.. 

Bangalore : Shri V. Nandakumar who is working as Ticket Inspector in South Western Railway had lodged a complaint before CBI anti corruption bureau against one of his superior Shri O. Rajappa (who was working as a chief Ticket Inspector (CTI) and was subsequently promoted as Assistant Commercial Manager (ACM) and posted to Bangalore Division of South Western Railway), was demanding money to forward his TA bills and to sanction leave. Who was also indulging in certain corrupt practices who was running illegal business agency in which his wife was an agent & was promoting the business agency for his personal gains without obtaining proper sanction from the competent authority in clear violation to the Railway Service Conduct Rules. 

Meanwhile what transpired between the accused & the prosecution agency was not known. The prosecution agency filed an application before the Hon'ble Court stating that due to the insufficient evidence gathered against Shri O. Rajappa (the accused), the case may be closed. Accordingly the Hon'ble court accepted the application filed by the CBI. The case was closed by filing ‘B’ Report. 

Shri Nandakumar who was a poor group ‘C’ reserve catagary employee was  harassed on one pretext or the other, for the only fault that he did not take up the policy which was promoted by Shri Rajappa in which his wife was an agent. Shri Nandakumar decided to lodge a complaint before CBI anti corruption bureau. On 16.09.2003 Shri Rajappa was trapped red handed by CBI while accepting bribe. A case was registered under Sec.7 of the Prevention of Corruption Act and was arrested & was enlarged on bail by Hon'ble CBI special court, Bangalore. 

Though the complainant was immune under the informers protection Act, based on a perverted report by the prosecution agency a major departmental proceedings was initiated against Shri Nandakumar by the departmental authorities without application of mind & a major charge sheet was issued without substance, enough ingredients causing him severe mental agony. Further added to the fuel there was an abnormal delay in finalization of the departmental proceedings causing him a social stigma, delay in promotion & delay in monitory benefits. Even his basic requirements for access to the documents to defend his case were denied by the departmental authorities causing him untold misery to prove his innocence in the course of inquiry. The inquiry was not finalized within a stipulated time frame as per extant rules fixed by the Railway Board. With all these hurdles Shri Nandakumar (The complainant) ran from pillar to post to prove his innocence, but the departmental authorities where indifferent towards him for the only reason that he had lodged a complaint against his superior authority and the complainant was a poor group ‘C’ employee. 

The accused Shri Rajappa was not even placed under suspension subsequent to his arrest by the CBI authorities, as he was in high & mighty position and was having clout with big wigs. Also the accused was promoted to a gazetted post and was posted to work in the same place. And exerted enormous pressure on the inquiry authority to give a perverse finding where the complainant was charge sheeted on the ground that he had filed a false complaint against Shri Rajappa. The inquiry authority not only succumbed to the pressure of the accused Shri Rajappa, but also conducted the inquiry in the biased manner and denied him in  providing the basic requirement for the access of documents denying him the reasonable opportunity and further went ahead & gave a perverted report saying that charges against Shri Nandakumar was proved and had misled the Railway Administration. 

In the meanwhile Shri Nandakumar left with no other option, approached the Central Vigilance Commission (CVC) in the year 2007 to drop the charges against complainant & to take up the matter against the accused Shri Rajappa armed with the information obtained under RTI. Even where he had to face the wrath of the higher departmental authorities who not only failed to provide the information under RTI but threatened him with dire consequences for approaching Information Commission, New Delhi and where the departmental Public Information officer who refused to divulge with the information that was sought by Shri Nandakumar was penalized by the Central Information Commission (CIC) and was further directed to provide the information to the applicant (Shri Nandakumar) and imposed a penalty of Rs.5000 on the erring departmental official who not only failed to provide the information but also who had threatened the applicant Shri Nandakumar for seeking information under RTI. 

Finally during the year 2010, though justice was delayed, justice was not denied. The CVC after detailed investigation came to the rescue of Shri Nandakumar (Complainant) by advising the Railway Authorities to drop the charges in its letter dated 07.06.2010 to Advisor vigilance, Railway Board the CVC has stated that Shri Rajappa had misused his official position in an explicit & biased manner with clear motive of repeatedly harassing his subordinate Shri Nandakumar. Further it had also stated in fact Shri Rajappa has taken the bribe also. The CVC has advised a major penalty against Shri Rajappa (The accused) and the penalty proceedings that was initiated against Shri Nandakumar (the complainant) to be dropped. Now major penalty proceedings have been initiated against Shri Rajappa, the accused, who is bringing severe pressure on Shri Nandakumar not to depose before the inquiry authority as he is in the same zone South Western Railway. 

Now the million dollar question is:- 

1. Who is responsible (RAILWAY ADMINISTRATION) for the mess which had costed the government exchequer an enormous amount towards the inquiry against Shri Nandakumar which dragged for several years & finally dropped at the intervention of CVC? 

2. Who is accountable for (DICIPLINARY AUTHORITY, INQUIRY AUTHORITY) victimizing Shri Nandakumar who was framed charges, without application of mind at the behest of somebody? 

3. The inquiry authority who gave perverse report against Shri Nandakumar saying that the charges against him are proved & who misled the Railway Administration for causing severe mental agony, social stigma, delay in promotion, delay in monitory benefits? 

4. Who will pay the damages/compensation for victimization of a reserve catagary (Dalit) employee for speaking the truth and suffering at the hands of public servant which is an offence under the Prevention of Atrocities Act [Sec.3 (2)]? 

5. Who is responsible for False, malicious or vexatious legal departmental proceedings which was initiated against Shri Nandakumar, a poor Group ‘C’ employee which tantamount to offence under the Prevention of Atrocities Act [Sec. 3 (1)(viii)]? 

Source : My Blog Just another WordPress.com site

Friday 21 October, 2011

बड़े बेआबरू होकर निकाले तेरे कूचे से हम...

पुरुषोत्तम गुहा ने डीआरएम का पद छोड़ा 

कोलकाता : श्री पुरुषोत्तम कुमार गुहा ने डीआरएम/सियालदह का पदभार छोड़ने का निर्णय ले लिया है. पता चला है कि सोमवार, 24 अक्तूबर को वह अपना कार्यभार छोड़ रहें हैं. हालाँकि पहले यह खबर थी कि 'दीवाली वसूली' के बाद वह अपना पदभार 31 अक्तूबर को छोड़ेंगे, इसीलिए उनकी विदाई पार्टी 29 अक्तूबर को आफिसर्स क्लब में रखी गई थी. मगर इस बीच उनकी तमाम काली करतूतों का भंडाफोड़ हो जाने से अब उन्होंने अपनी 'दीवाली वसूली' के कार्यक्रम को स्थगित करके अपना पदभार छोड़ने का निर्णय लिया है. सूत्रों का कहना है कि फ़िलहाल यह तो पता नहीं चल पाया है कि श्री गुहा कहाँ जा रहें हैं, मगर उनकी पोस्टिंग दिल्ली में होना तय माना जा रहा है, परन्तु अब उ. रे. में उन्हें एसडीजीएम बनाया जाएगा, इस पर संदेह पैदा हो गया है. 

पता चला है कि बदनाम बंगला नंबर २१० में डीआरएम, सीनियर डीएफएम, सीनियर डीईएन/समन्वय और सीनियर डीएसओ कई बार रात को अक्सर अय्याशी के लिए जाते थे. जहाँ शराब और शबाब मंगाने का आदेश आफिसर्स क्लब के केयर टेकर को दिया जाता था. बताते हैं कि यह केयर टेकर आफिसर्स क्लब के पैसे से उनके लिए इन बताई गई 'वस्तुओं' का इंतजाम करता था. सूत्रों का कहना है कि इन लोगों की इस अय्याशी के चलते आफिसर्स क्लब के करीब 3.80 लाख रु. खर्च हो गए और इस पर जब क्लब के सदस्य अफसरों में बवाल मचा तो इस पैसे के गबन का आरोप उक्त केयर टेकर पर मढ़ दिया गया. बताते हैं कि इस बारे में डीआरएम श्री गुहा ने अपने चेंबर में उक्त केयर टेकर और उसकी माँ को बुलाकर बहुत डराया-धमकाया और उनसे तुरंत 3.80 लाख रु भरने को कहा, वरना जेल भेजने की भी धमकी दी. बताते हैं कि दोनों माँ-बेटे डीआरएम की इस प्रताड़ना से इतना ज्यादा सहम गए कि चेंबर से निकलने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. उल्लेखनीय है कि यह केयर टेकर पिछले लगभग 12-13 साल से रेलवे में भर्ती हो जाने के लालच में आफिसर्स क्लब में अस्थाई तौर पर काम कर रहा था. 

पता चला है कि आफिसर्स क्लब के सचिव सीनियर डीएफएम हैं. सूत्रों का कहना है कि आफिसर्स क्लब के इस 'घोटाले' की भरपाई करने के लिए सचिव महोदय ने डीआरएम की सहमति से एक नोट निकाला कि मंडल के प्रत्येक अधिकारी के वेतन से प्रतिमाह 100 रु. क्लब के लिए काटे जाएँगे. इस पर फिर से मंडल अधिकारियों में बवाल मचा और कई अधिकारियों ने यह कंट्रीब्यूशन देने से मना कर दिया, जिससे क्लब के घोटाले की भरपाई करने की सचिव महोदय की 'योजना' विफल हो गई और क्लब के 3.80 लाख रु. कि भरपाई अबतक भी नहीं हो पाई है. उधर उक्त केयर टेकर 'तृणमूल' का कार्यकर्ता निकला. उसने कुछ स्थानीय नेताओं को यह बात बताई, तो एक दिन करीब 20-25 तृणमूल कार्यकर्ता सीनियर डीएफएम उर्फ़ सचिव महोदय के चेंबर में घुस गए और उन्हें अपनी अय्याशी में उड़ाए गए क्लब के 3.80 लाख रु. के लिए केयर टेकर को जिम्मेदार ठहराने हेतु उनकी खूब जमकर लानत-मलामत कर दी. अब इस 'क्लब घोटाले' के लिए भी मंडल के सभी अधिकारी डीआरएम और उक्त तीनो अफसरों की अय्याशी को ही जिम्मेदार मान रहें हैं. 

इसके अलावा यह भी पता चला है कि सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार ने जिन-जिन वाणिज्य कर्मचारियों को काम के प्रति लापरवाही, लम्बी गैरहाजिरी और रेलवे कैश का व्यक्तिगत और गैर इस्तेमाल करने के लिए मेजर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-5) दी थी, उन सबको माइनर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-11) में बदल देने का आदेश दिया गया है. सूत्रों का कहना है कि यह लिखित नहीं बल्कि मुंहजबानी आदेश वर्तमान सीनियर डीसीएम श्री आर. के. सिंह ने डीआरएम श्री गुहा की सहमति से दिया है. बताते हैं कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि जब कभी इसकी जाँच हो, तो इनमे से कोई अधिकारी नहीं बल्कि सम्बंधित डीलिंग क्लर्क फंसेगा. बताते हैं कि डीआरएम की सबसे 'प्रिय' दक्षिणेश्वर स्टेशन की महिला बुकिंग क्लर्क को जब श्री अनिल कुमार ने ड्यूटी न करने, ड्यूटी से अक्सर गायब रहने और ड्यूटी पर लेट आने एवं जल्दी चले जाने के लिए एसएफ-5 दी थी और निलंबित कर दिया था, तब डीआरएम ने उनसे अपने चेंबर में हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए उनसे उसका निलंबन ख़त्म करने का अनुरोध किया था. 

बताते हैं कि 'रेलवे समाचार' में सारी काली-करतूतों का पर्दाफास हो जाने से डीआरएम श्री गुहा बहुत परेशान हो गए हैं. इसीलिए उन्होंने जल्दी चार्ज छोड़ देने का फैसला किया है. सूत्रों ने इस बात का भी खुलासा किया है कि उनके तथाकथित कल्चरल ग्रुप में शामिल रही दो-तीन महिला कर्मियों ने डीआरएम की इन तमाम करतूतों के बारे में 'मेमसाहेब' को काफी पहले फोन पर दिल्ली में सूचित किया था. उनका कहना है कि श्री गुहा के कार्य-कलापों पर मेमसाहेब को पहले भी संदेह था, मगर अब सब कुछ खुलकर सामने आ जाने से वह उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं. इनमे से दो महिला कर्मियों ने 'रेलवे समाचार' से मेमसाहेब को सूचित किए जाने की इस बात को स्वीकार करते हुए डीआरएम और उपरोक्त तीनो ब्रांच अफसरों की अय्याशी की भी पुष्टि की है. उन्होंने इसके अलावा भी इनके द्वारा की गई अन्य तमाम अनियमितताओं के बारे में भी बहुत सारी जानकारी दी है, जिसे डीआरएम के चार्ज छोड़ने के बाद उन्होंने विस्तार से बताने का वादा किया है...!! 

Wednesday 19 October, 2011


डीआरएम/सियालदह की मनमानी 


सीनियर डीसीएम की परेशानी 

  • डीआरएम के कदाचार के आड़े आए सीनियर डीसीएम 
  • सीनियर डीसीएम को हटाने का हर हथकंडा अपनाया डीआरएम ने 
  • बेइज्जती से तीन बार कैट में हारा रेल प्रशासन हाई कोर्ट की शरण में
  • सियालदह मंडल के रेलकर्मियों में डीआरएम की अय्याशी के चर्चे 
  • डीआरएम के भागीदार सीनियर डीएफएम और सीनियर डीएसओ   
  • अब कदाचारी डीआरएम को बानाया जा रहा है एसडीजीएम/उ.रे.
कोलकाता : भारतीय रेल में अधिकार के दुरुपयोग और व्यवस्था के मनमानी उपयोग तथा कदाचार का शायद इससे बड़ा कोई दूसरा उदहारण नहीं हो सकता. सियालदह मंडल, पू. रे. में रेलमंत्री की नाक के नीचे चल रही डीआरएम की मनमानी का खामियाजा एक तरफ ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ सीनियर डीसीएम को भुगतना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ रेलवे को वित्तीय रूप से इसकी भरपाई करनी पड़ रही है. दो-दो बार कैट द्वारा रेलवे पर हजारों रु. का जुर्माना लगाने और सीनियर डीसीएम के पक्ष में तीन-तीन बार निर्णय देने के बावजूद रेल प्रशासन की अक्ल का दीवाला इस कदर निकला हुआ है कि उसने कैट के निर्णयों के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में अपील की है. जबकि मनमानी, अय्याशी और कदाचार डीआरएम ने किया है, मगर उनके इन तमाम कुकृत्यों पर पर्दा डालने के लिए क़ानूनी लड़ाई में रेलवे के लाखों रु. बरबाद हो रहे हैं. यही नहीं, अब ताज़ा खबर यह है कि इस कदाचारी डीआरएम को उ. रे. दिल्ली में पदस्थ करके और एसडीजीएम बनाकर उपकृत किया जा रहा है. सवाल यह है कि ऐसे कदाचारी अधिकारी को जब एसडीजीएम बनाया जाएगा, तो व्यवस्था का क्या होगा..? प्राप्त जानकारी के अनुसार डीआरएम/सियालदह, पू. रे. श्री पुरुषोत्तम कुमार गुहा, जिनका कार्यकाल पूरा हो गया है और इस महीने के अंत में वह डीआरएम का चार्ज छोड़ रहे हैं, और सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार के बीच मनमुटाव की सैद्धांतिक शुरुआत मार्च 2009 के आसपास श्री गुहा की मनमानी से हुई थी. तभी इन दोनों 'समगोत्रीय' अधिकारियों की पोस्टिंग इस मंडल में हुई ही थी. 

यह तो सर्वज्ञात ही है कि तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने श्री गुहा को आउट ऑफ़ टर्न सियालदह मंडल का डीआरएम बनाया था, क्योंकि उन्हें वहां अपने चुनावों की पृष्ठभूमि और पार्टी फंड को मजबूत करना था. सो तो श्री गुहा ने अपने और पार्टी दोनों के लिए पर्याप्त रूप से किया है. यह भी सियालदह मंडल के प्रत्येक कर्मचारी और अधिकारी को बखूबी ज्ञात है. जहाँ तक फंडिंग की बात है तो वहां कोई भी उनके आड़े नहीं आया, मगर जब नाच-गाने (कल्चरल ग्रुप) के नाम पर महिला रेलकर्मियों और रेलवे में भर्ती कराने के नाम पर बाहरी 'सोसाइटी गर्ल्स' का कथित इस्तेमाल डीआरएम श्री गुहा द्वारा अपनी तथाकथित अय्याशी के लिए किया जाने लगा, और उनके इन कुकृत्यों में उनके बराबर के भागीदार रहे 'सर्वकालिक पापी' सीनियर डीएफएम एवं सीनियर डीएसओ जैसे कुछ अन्य पापी ब्रांच अफसरों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिलने लगा तथा इससे खासतौर पर बुकिंग, आरक्षण, पार्सल/गुड्स जैसे वाणिज्य डिपुओं का दैनंदिन कार्य बुरी तरह प्रभावित होने लगा, तो सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार उनके आड़े आ गए. बताते हैं कि डीआरएम श्री गुहा के लिए खूबसूरत महिला रेलकर्मियों को ताड़ने का काम सीनियर डीएसओ करता था, बताते हैं कि जब वह इसकी रिपोर्ट देता था तब डीआरएम श्री गुहा उक्त स्टेशन का निरीक्षण दौरा बनाकर वहां जाते और कोई कमी निकालकर उक्त महिला कर्मी को डाँटते और ऐसा माहौल बनाते कि अब उसकी नौकरी तो गई, तब दूसरे दिन उनका 'दलाल' सीनियर डीएसओ वहां जाता और उसे समझाता कि वह डीआरएम साहेब के 'कल्चरल ग्रुप' में शामिल हो जाए तो उसे कुछ नहीं होगा. बताते हैं कि कई बार तो इसकी भी नौबत नहीं आती थी और महिला कर्मी स्वयं ही डीआरएम को अपने ऊपर 'फ़िदा' देखकर वैसे ही 'पसड़' जाती थी, तब डीआरएम साहेब का निरीक्षण तो दस-पांच मिनट का होता, मगर वह पसंद आई महिला से अकेले में एकाध घंटा 'बतियाते' रहते थे. 

यही हुआ था दक्षिणेश्वर और रानाघाट स्टेशनों के तथकथित निरीक्षण के दौरान, जहाँ श्री गुहा ने 10 मिनट निरीक्षण के बाद महिला बुकिंग क्लर्कों से एक-एक घंटा अकेले में बात की और वापस आ गए. दूसरे दिन उनके 'दलाल' सीनियर डीएसओ उक्त महिला बुकिंग क्लर्क को पटाने दक्षिणेश्वर गए, जबकि उस दौरान उन्हें रानाघाट में चल रहे सीआरएस इंस्पेक्शन में उपस्थित रहना चाहिए था. 'दलाल' द्वारा सहमति ले लिए जाने बाद उक्त महिला कर्मी को डीआरएम के 'कल्चरल ग्रुप', जिसे अब मंडल में सभी रेलकर्मी डीआरएम के 'अय्याशी ग्रुप' के नाम से जानते हैं, में शामिल होने का आदेश निकाल दिया गया. बताते हैं कि अब बात आई उक्त महिला कर्मी को 'प्रैक्टिस' के लिए स्पेयर करने की, यहाँ सीनियर डीसीएम अनिल कुमार की भूमिका शुरू होती है. क्योंकि उनकी सहमति और इजाजत के बिना वाणिज्य विभाग की किसी भी कर्मचारी को किसी अन्य काम के लिए स्पेयर नहीं किया जा सकता था. जब श्री अनिल कुमार ने उसे स्पेयर नहीं किया, तो उनसे नाराज़ होकर श्री गुहा ने उनका ट्रान्सफर द. रे. में करा दिया. हालाँकि इससे पहले श्री अनिल कुमार उनकी हर बात न-नुकुर करते हुए भी मानते रहे थे. बताते हैं कि जब भी श्री गुहा ने किसी खूबसूरत महिला कर्मी को देखा, फिर वह चाहे किसी भी ब्रांच अफसर के मातहत कार्यरत रही हो, उसे श्री गुहा ने अपने कार्यालय में तैनात करने अथवा 'कल्चरल ग्रुप' के लिए स्पेयर करने का आदेश दे दिया. इसी तरह उन्होंने इंजीनियरिंग विभाग की एक महिला खलासी को न सिर्फ अपने कार्यालय में पदस्थ कराया, बल्कि उसे 'अपनी पीआरओ' भी बनाया. यही नहीं कागज़ पर वह श्री गुहा की 'असिस्टेंट टू डीआरएम' होती थी, जिसके साथ वह अपने चेंबर में घंटों अकेले रहकर 'जनसंपर्क' स्थापित करते थे? इसके अलावा कार्मिक विभाग की एक 28-30 वर्षीया महिला प्यून उनके साथ अम्बेसडर गाड़ी में अकेले बैठकर 'सफ़र' करती थी. वह भी 'असिस्टेंट टू डीआरएम' होती थी, जो की गाड़ी में 'साहेब' को 'सहयोग' करती थी? 

बताते हैं कि उपरोक्त कृत्यों के बारे में डीआरएम कार्यालय का प्रत्येक कर्मचारी जनता है कि वास्तव में क्या होता था. वह बताते हैं कि श्री गुहा की 'अय्याशी' का अड्डा बंगला नंबर 210 था, जो कि एक रेस्ट हाउस है, मगर श्री गुहा ने उसे अपने तथकथित 'कल्चरल ग्रुप' उर्फ़ 'अय्याशी ग्रुप' की 'डांस प्रैक्टिस' का केंद्र बना लिया था. बताते हैं कि इस 'ग्रुप' में दक्षिणेश्वर और रानाघाट की उक्त महिला बुकिंग क्लर्कों सहित जेसीएस की एक महिला कर्मी, कार्मिक विभाग की एक महिला ओएस, सियालदह स्टेशन कंट्रोल की एक महिला एएसएम और कुछ बाहरी 'सोसाइटी गर्ल्स' को भी रेलवे में भर्ती करा देने के नाम पर शामिल किया गया था. यह सर्वज्ञात है कि श्री गुहा जब तब अपने कार्यालय से उठकर और बंगला नंबर 210 में जाकर उक्त महिला कर्मियों के साथ 'डांस प्रैक्टिस' करने लग जाते थे? बताते हैं कि इस कथित कल्चरल ग्रुप में श्री गुहा की पसंद के अनुसार 8-9 से 15-16 साल, 17-18 से 22-24 साल, और 25-26 से 30-35 साल आयु वर्ग की महिलाओं के ग्रुप बनाए गए थे. कर्मचारियों का कहना है कि श्री गुहा की सबसे ज्यादा दिलचस्पी मध्य वर्ग ग्रुप यानि 17-18 से 22-24 साल के महिला ग्रुप में होती थी? 

बताते हैं कि श्री गुहा की इन 'डांस प्रैक्टिस' के लिए महिला कर्मियों को स्पेयर नहीं करना और इस कारण से उनको शोषण से बचाने सहित सीमित एवं कम स्टाफ में रेलवे का दैनंदिन कामकाज करवाना ही सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार का मुख्य उद्देश्य था. हालाँकि एक को छोड़कर श्री गुहा की इन तमाम तथाकथित अय्याशियों का कोई कागजी सबूत मौजूद नहीं है, तथापि उनकी इन अय्याशियों के बारे में मंडल के तमाम कर्मचारियों और अधिकारियों को इनकी सच्चाई पर भी कोई संदेह नहीं है. बहरहाल, जब सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार डीआरएम श्री पुरुषोत्तम कुमार गुहा की इन तमाम अय्याशियों और कदाचारों के आड़े आ गए, तो श्री गुहा ने द. रे. में उनका इंटर रेलवे ट्रान्सफर करा दिया. यहाँ यह पृष्ठभूमि भी जानना जरूरी है कि श्री गुहा पूर्व रेलमंत्री ममता बनर्जी के ड्राइवर रतन मुखर्जी और ईडीपीजी रहे जे. के. साहा के कृपा-पात्र हैं. बताते हैं कि श्री गुहा ने खुद और मुखर्जी-साहा के माध्यम से भी कान की कच्ची ममता बनर्जी के कान भरे कि श्री अनिल कुमार बंगाली विरोधी और सीपीएम के समर्थक हैं. फिर 'विषधर' विवेक सहाय, जो उस समय मेम्बर ट्रैफिक थे, के आदेश से श्री अनिल कुमार को द. रे. में ट्रान्सफर करा दिया. 

प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री गुहा के आदेश पर लिखित आर्डर के बाद श्री अनिल कुमार को 45 दिन की जबरन छुट्टी पर भेजा गया, परन्तु इसी दरम्यान उनका तबादला द. रे. में कर दिए जाने का आदेश भी उन्हें थमा दिया गया. बताते हैं कि श्री अनिल कुमार ने अकारण इंटर रेलवे ट्रान्सफर के इस आदेश को कैट में चुनौती दे दी, जहाँ उन्हें पहले स्टे मिला और बाद में वह केस भी जीत गए तथा कैट ने इसके लिए रेलवे पर 1000 रु. का जुर्माना भी लगाया. तत्पश्चात श्री गुहा ने श्री अनिल कुमार को एकदम अधिकारविहीन और निष्क्रिय करने का एक खेल और खेला, वह यह कि कंस्ट्रक्शन की जेएजी की एक वर्कचार्ज पोस्ट का एलिमेंट उठाकर उसका उपयोग मंडल में बतौर सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन कर लिया तथा उसपर खड़गपुर मंडल, द. पू. रे. से एक अधिकारी को लाकर पदस्थ कर दिया. श्री अनिल कुमार ने रेलवे (डीआरएम) की इस तिकड़मबाजी और मनमानी को भी कैट में चैलेंज कर दिया. कैट ने इस बार भी न सिर्फ उनके पक्ष में निर्णय दिया, बल्कि उक्त सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट को भी स्क्रैप करने का आदेश दिया. उल्लेखनीय है कि पूरी भारतीय रेल में सियालदह मंडल में ही पहली बार सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट स्थापित की गई थी. ममता बनर्जी के राज में 'विषधर' और उनकी चांडाल चौकड़ी की मनमानी तथा सत्ता के दुरुपयोग की यह इन्तहा है. इस चांडाल चौकड़ी की यह इन्तहा यहीं ख़त्म नहीं हुई, बल्कि अपना दूसरा दांव भी खाली गया देखकर इस बार श्री गुहा ने श्री अनिल कुमार का ट्रान्सफर डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की उस पोस्ट पर करा दिया जिस पर एक अन्य अधिकारी का सीनियर स्केल से प्रमोशन ड्यू था, इस वजह से उक्त अधिकारी का प्रमोशन करीब दो साल डिले हो गया. मगर सत्ता के वरदहस्त और उसके नशे में चूर श्री गुहा का क्या जाता था. परन्तु श्री अनिल कुमार ने भी हार नहीं मानी और तीसरी बार उन्होंने उनकी इस मनमानी के खिलाफ फिर से कैट का दरवाजा खटखटा दिया. इस बार भी कैट में न सिर्फ रेलवे को मुंह की खानी पड़ी, बल्कि कैट ने इस बार उसपर 5000 रु. का जुर्माना भी ठोंक दिया. 

पता चला है कि अब जीएम पर दबाव डालकर कैट के आदेश के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में रेलवे ने श्री अनिल कुमार के विरुद्ध अपील की है. जहाँ एक तिकड़म के तहत अथवा चालबाजी करके पू. रे. के दरम्यान कहीं भी श्री अनिल कुमार का ट्रान्सफर किए जाने का अंतरिम आदेश रेलवे को मिल गया है. तथापि सूत्रों का कहना है कि श्री अनिल कुमार ने इस मनमानी के सामने हार नहीं मानने का मन बना लिया है और शीघ्र ही वह कोलकाता हाई कोर्ट के इस अंतरिम आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका (एसएलपी) दायर करने जा रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि 'रेलवे समाचार' द्वारा इन तमाम करतूतों को एक्सपोज कर दिए जाने के बाद रेल प्रशासन ने 19 अक्तूबर को एक और बचकानी हरकत करते हुए एक चिट्ठी भेजकर श्री अनिल कुमार को डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की पोस्ट पर अब तक ज्वाइन न करने का स्पष्टीकरण देने को कहा, अन्यथा उन्हें ड्यूटी से अनधिकृत रूप से गायब माना जाएगा. जबकि बताते हैं कि श्री अनिल कुमार ने 7 अक्तूबर और 14 अक्तूबर को दो बार आवेदन देकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने जाने का कारण बताते हुए छुट्टी दिए जाने की दरख्वास्त दी हुई है, जिसका कोई जवाब रेल प्रशासन ने उन्हें अब तक नहीं दिया है. 

जबरन छुट्टी पर भेजने, द. रे. में ट्रान्सफर कराने, सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट क्रिएट करके अधिकारविहीन करने और डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की पोस्ट पर तबादला करने जैसे चार-चार प्रयासों में जब डीआरएम श्री गुहा सीनियर डीसीएम श्री अनिल कुमार को मंडल से हटाने में नाकाम रहे, तब पांचवीं बार वह उन्हें एक महीने के लिए ट्रेनिंग पर रेलवे स्टाफ कालेज, वड़ोदरा भेजने में कामयाब हो गए. इधर, इस बीच उन्होंने कैट के आदेशानुसार सीनियर डीसीएम/कोआर्डिनेशन की पोस्ट को स्क्रैप करके उस पर रहे श्री आर. के सिंह को सीनियर डीसीएम बनाकर बैठा दिया. बताते हैं कि अब जब श्री अनिल कुमार अपनी तथाकथित ट्रेनिंग समाप्त करके वापस आए तो उनसे कहा गया कि मंडल में तो उनके लिए जगह नहीं है, अगर उन्हें ज्वाइन करना है, तो डिप्टी सीओएम/फ्वाईस की अपनी खाली पड़ी पोस्ट पर जाकर ज्वाइन कर सकते हैं. 

तो, फ़िलहाल श्री अनिल कुमार छुट्टी की अर्जी देकर मगर छुट्टी मंजूर नहीं किए जाने के बावजूद रेल प्रशासन और व्यवस्था की मनमानी के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं. हालाँकि मंडल के सभी अधिकारी और कर्मचारी, कुछ उठाईगीरों को छोड़कर, उनके साथ हैं, मगर सत्ता के दलालों के डर से कोई खुलकर सामने नहीं आ सकता है. जबकि उनके वरिष्ठ और कंट्रोलिंग अधिकारी सीओएम और सीसीएम दोनों नाकारा एवं नपुंसक बनकर उनके खिलाफ हो रहे इस अन्याय और अनीति को चुपचाप देख रहे हैं. इस सम्बन्ध में 'रेलवे समाचार' द्वारा संपर्क किए जाने पर श्री अनिल कुमार ने अन्याय के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई जारी रखने की पुष्टि करते हुए बाकी कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. जबकि मोबाइल पर श्री गुहा से संपर्क किए जाने और उनसे यह पूछे जाने पर कि अपने ही कैडर के और अपने ही जूनियर एक ब्रांच अधिकारी से उनकी ऐसी क्या अदावत हो गई, जो कि अदालत तक जा पहुंची है? इस पर श्री गुहा का कहना था कि मामला अदालत के विचाराधीन है, इसलिए फ़िलहाल इस पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. परन्तु जब उनसे यह कहा गया कि मामला तो न्याय-अन्याय और नियमों के पालन को लेकर कोर्ट के विचाराधीन है, मगर हम तो सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि आखिर झगड़ा किस बात को लेकर हुआ, जो कि आपने उन्हें इंटर रेलवे ट्रान्सफर करा दिया? इस पर श्री गुहा ने कहा कि उन्होंने नहीं कराया, बोर्ड ने किया था. मगर बोर्ड भी तो बिना डीआरएम और जीएम की सहमति के उसके किसी ब्रांच अफसर का तबादला नहीं करता है? इस पर उनका कहना था कि फ़िलहाल इस मामले में कुछ न लिखा जाए तो बेहतर होगा. परन्तु जब उन्हें यह बताया गया कि खबर यह भी आई है कि आपने महिला कर्मियों की नजदीकी और उन्हें गैर रेलवे कार्यों में उपयोग करना चाहा, जिन्हें उन्होंने स्पेयर नहीं किया था और वह आपके इस कदाचार के आड़े आए, जिससे नाराज़ होकर आपने उनका तबादला करवाया, क्या यह सही है? इस पर श्री गुहा ने यह कहते हुए सम्बन्ध विच्छेद कर दिया कि वह अभी मंत्री के कार्यक्रम में बिजी हैं, इस विषय में वे बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे..! 

पुरुषोत्तम कुमार गुहा, डीआरएम/सियालदह/पू. रे. 

श्री गुहा को सियालदह मंडल का समस्त रेलवे स्टाफ कदाचार, अय्याशी, मनमानी और तिकड़मबाजी के हर फन में माहिर मानता है. डीआरएम कार्यालय के स्टाफ का कहना है कि उन्होंने अपने इन कारनामों से अपने नाम 'पुरुषोत्तम' को ही कलंकित किया है. उनका कहना है कि श्री गुहा तो किसी से दो-चार किलो आम-लीची भी ले लेने से भी नहीं हिचकते हैं. उनके 'संदिग्ध चरित्र' के बारे में मंडल के किसी भी रेल कर्मचारी या अधिकारी को कोई संदेह नहीं है. स्टाफ का कहना था कि कोई भी डीआरएम या इस स्तर का रेल अधिकारी अपनी गरिमा का ख्याल रखते हुए अपने मातहत कार्यरत महिला खलासी अथवा महिला बुकिंग क्लर्क या महिला ओएस या फिर महिला एएसएम आदि महिला कर्मियों से स्टेशन पर अथवा अपने चेंबर में खुलेआम अकेले घंटों 'बात' नहीं करता है. स्टाफ के कई वरिष्ठ कर्मचारियों ने श्री गुहा की तमाम चर्चाओं (कदाचारों) की पुष्टि करते हुए बताया कि सियालदह से उनके दिल्ली निवास में राजधानी-दुरंतो आदि गाड़ियों में लादकर घरेलू इस्तेमाल की तमाम चीजें (राशन, सब्जियां, मछली, तेल-साबुन आदि) पहुंचाई जाती रही हैं. उनका यह भी कहना था कि डीआरएम के अपने दो साल के कार्यकाल में श्री गुहा ने शायद कभी-भी अपने पैसे से कोई भी घरेलू सामान नहीं ख़रीदा होगा. इस बात के साथ श्री गुहा के तमाम कदाचारों की भी पुष्टि करते हुए उनके साथ ज्यादातर समय रहने वाले एक अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि दो दिन पहले दो साल में पहली बार उसने श्री गुहा के पर्स का कलर देखा, वरना उसने दो साल में उन्हें अपनी जेब में हाथ डालते कभी नहीं देखा. बताते हैं कि स्पोर्ट्स फंड से पास ही स्थित रीबाक स्टोर्स से श्री गुहा के लिए उनकी चड्ढी-बनियान सहित तमाम कपडे ख़रीदे जाते रहे हैं. यहाँ तक कि 'मेम साहब' की साड़ियाँ दिल्ली से राजधानी-दुरंतो द्वारा धुलने के लिए सियालदह आती रही हैं और इन सबका भुगतान विभिन्न डिपुओं के 'इम्प्रेस्ट' से किया जाता रहा है तथा यह राशन-पानी, शाक-सब्जियां और तमाम कपड़े-लत्ते दिल्ली पहुँचाने रेलवे का स्टाफ जाता-आता रहा है. उनके बच्चों के लिए पेन-पेन्सिल, कापी-किताबें, मोबाइल सेट, लेपटाप-कंप्यूटर-प्रिंटर आदि कुछ खास पार्टियों द्वारा उपलब्ध कराई जाती रही हैं. इस सबके साथ बाहरी कमसिन सोसाइटी गर्ल्स की व्यवस्था 'महान सीटियाबाज' सीनियर डीएफएम करवाते रहे हैं, जिन्हें अब उन्होंने भविष्य के लिए कई बड़े शहरों में स्थित कपड़े के अपने कई शोरूम्स में नौकरी पर रख लिया है. जबकि सीनियर डीएफएम सहित सीनियर डीईएन और सीनियर डीएसओ एवं कुछ अन्य अधिकारी न सिर्फ शराब और शबाब उपलब्ध करवाते रहे हैं, बल्कि डीआरएम की मौज-मस्ती में भी बराबर के भागीदार बताए जा रहे हैं. स्टाफ और निचले स्तर के कुछ अधिकारियों को इन लोगों से इतनी ज्यादा नफरत हो गई है कि उनका कहना था कि 'डीआरएम को हर चीज में पैसा चाहिए, बिना पैसे के वह कोई काम नहीं करते हैं तथा हर ठीक-ठाक दिखने वाली महिला कर्मचारी उनकी 'अंकशायिनी' हो जानी चाहिए, ऐसे में उनसे बेहतर तो कु...ही होता है, जो हर कु... के पीछे नहीं भागता..?' उनका यह भी कहना था कि श्री गुहा और उनके चापलूसों की सभी हरकतों के बारे में वर्तमान रेलमंत्री को गहरी जानकारी है और इसके प्रति उन्होंने अपनी नाराज़गी भी जाहिर की है. इसी वजह से उनके चार्ज सँभालते ही श्री गुहा का कथित कल्चरल ग्रुप ख़त्म हो गया है, जिसमे शामिल प्रत्येक महिला कर्मियों को वह 25-30 हज़ार रु. प्रति प्रोगाम भत्ता देते थे और कास्ट्यूम चेंजिंग रूम में घुसकर उन्हें 15-20 हज़ार रु. की साड़ियाँ पहनाते थे, जबकि छोटे-छोटे भुगतान करने के लिए रेलवे के पास फंड नहीं है का रोना रोते थे.? 

अनिल कुमार, सीनियर डीसीएम/सियालदह/पू.रे. 

श्री अनिल कुमार एक निहायत ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ आईआरटीएस अधिकारी हैं. सियालदह मंडल, पू. रे. कोलकाता में बतौर सीनियर डीसीएम उनकी पोस्टिंग फरवरी-मार्च 2009 में हुई थी. उन्होंने अपने इस संघर्षपूर्ण कार्यकाल में मंडल की न सिर्फ समस्त वाणिज्य व्यवस्था और उसकी कार्य संस्कृति में आमूलचूल सुधार किया, बल्कि मंडल में चल रहे यूनियनों के ट्रान्सफर/पोस्टिंग एवं चार्जशीट/दंड माफ़ कराने के धंधों को भी समाप्त कर दिया था. उनके चेंबर का दरवाजा हमेशा हर किसी कर्मचारी के लिए खुला रहता था और प्रत्येक कार्य नियमानुसार एवं सीनियरटी तथा मेरिट के अनुसार ही होता था. उन्होंने पार्सल/गुड्स और बुकिंग/आरक्षण आदि सभी वाणिज्य डिपुओं में वर्षों से एक ही जगह पर जमे कर्मचारियों और यूनियन पदाधिकारियों को भी स्थानांतरित कर दिया था. उनकी इस कार्य-प्रणाली के चलते मंडल की वाणिज्य आय 200% से ज्यादा बढ़ गई थी. बताते हैं कि वह जब यहाँ सीनियर डीसीएम बनकर आए थे तब मंडल की हालत बहुत खस्ता थी, और बमुश्किल 18 बुकिंग काउंटर ही खलते थे. उन्होंने उतने ही स्टाफ से वहीँ न सिर्फ 28-30 काउंटर खुलवाए, बल्कि ज्यादा अर्निंग भी दी. तमाम रेवेन्यु लीकेज को बंद किया. स्टाफ की हरामखोरी ख़तम करने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के बावजूद मंडल का यही स्टाफ, कुछ उठाईगीरों और कामचोर/भ्रष्ट यूनियन लीडरों को छोड़कर, आज भी यही चाहता है कि मंडल में उनके सीनियर डीसीएम अनिल कुमार ही रहें. यही वजह रही है कि मंडल को जीएम की वाणिज्य शील्ड मिली हैं. तथापि मंडल की संपूर्ण कार्य-संस्कृति में बड़ा बदलाव करने वाले श्री अनिल कुमार को एक चरित्रहीन महिला कर्मचारी को उनके चेंबर भेजकर उन्हें फंसाने की भी चाल डीआरएम की सहमति से कुछ यूनियन पदाधिकारियों ने चली थी.? वह तो उनकी किस्मत अच्छी थी कि बच गए, जबकि रेलवे एवं कोलकाता की हाई सोसाइटी गर्ल्स की खुलेआम संगति करने वाले डीआरएम को कुछ नहीं हुआ.? इस आउट स्टैंडिंग परफोर्मेंस के बावजूद श्री अनिल कुमार को पिछले दो वर्षों के दौरान इंटर रेलवे सहित 4-5 ट्रान्सफर झेलने पड़े हैं, जिनके खिलाफ उनकी अथक क़ानूनी लड़ाई जारी है. जबकि सीओएम के सेक्रेटरी की पोस्ट पर पिछले 10 वर्षों से भी ज्यादा समय से बैठे विश्वजीत चक्रवर्ती को वहीँ बैठकर न सिर्फ सारे प्रमोशन मिले हैं, बल्कि पू. रे. में ट्रैफिक एवं कमर्शियल विभाग के ट्रैफिक अधिकारियों की ट्रान्सफर/पोस्टिंग में होने वाली करोड़ों की अवैध कमाई के वह अकेले 'चक्रवर्ती सम्राट' बने हुए हैं. इसके अलावा डीआरएम के 'दलाल' की भूमिका बखूबी निभाने वाले सीनियर डीएसओ तपन कुमार दास आजतक पडोसी गंगा पार हावड़ा मंडल में भी पदस्थ नहीं हुए हैं, क्योंकि वह चापलूसी पसंद अपने वरिष्ठों के तलुए चाटने/सहलाने और उन्हें शराब-शबाब-कबाब तक की सारी सुविधाएं मुहैया कराने में माहिर बताए जाते हैं? पू. रे. में ऐसे अभी और बहुत से अधिकारी हैं, जो 'अल्ला मेहरबान तो गधा पहलवान' की तर्ज़ पर वर्षों से एक ही जगह बैठकर दंड-बैठक पेल रहें है, उनकी भी खबर जल्दी ही ली जाएगी...!! 
प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी 

Friday 7 October, 2011


डेढ़ साल बाद आखिर मेम्बर ट्रैफिक के पद पर के. के. श्रीवास्तव की नियुक्ति 

नयी दिल्ली : एक मई 2010 से खाली मेम्बर ट्रैफिक की पोस्ट पर आखिर डेढ़ साल बाद शुक्रवार, 7 अक्तूबर को श्री के. के. श्रीवास्तव की पोस्टिंग हो गई. श्री श्रीवास्तव पिछले करीब एक साल से पू. म. रे. के महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे. उनका समस्त कार्यकाल विवादरहित रहा है. श्री श्रीवास्तव पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के मंडल रेल प्रबंधक एवं पूर्व मध्य रेलवे के सीसीएम सहित ट्रैफिक एवं कमर्शियल दोनों विभागों के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुके हैं. श्री श्रीवास्तव को ट्रैफिक मूवमेंट का गहन अनुभव प्राप्त है और उम्मीद की जाती है कि उनके नेतृत्व में माल ट्रैफिक और माल लोडिंग में पर्याप्त वृद्धि होगी. इसके अलावा श्री श्रीवास्तव से यह भी उम्मीद की जाती है कि वह 'विषधर' की छाया से मुक्त होकर काम करेंगे और उनके द्वारा अपने कार्यकाल में रेलवे बोर्ड सहित जोनल रेलों में बैठाए गए उनके 'ट्रैफिक मोहरों' को उनकी यथोचित जगह दिखाएंगे. हालाँकि श्री श्रीवास्तव को ट्रैफिक निदेशालय की राजनीति की बखूबी जानकारी और उसका पर्याप्त ज्ञान है, परन्तु माना जाता है कि वह जब तक वहां अपने विश्वसनीय अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करेंगे, तब तक वह अपने मन-मुताबिक परिणाम प्राप्त नहीं कर पाएँगे. 

उल्लेखनीय है कि सन 2008 से सन 2011 तक भारतीय रेल में जो आयरन ओर घोटाला चला वह 'विषधर' और उनके पूर्ववर्ती की देख-रेख में चला था, और यदि सीबीआई ने इस मामले की वास्तविक और गहरी छानबीन की, तो इस आयरन ओर घोटाले के तार पिछले करीब डेढ़ साल तक जानबूझकर मेम्बर ट्रैफिक की पोस्ट को खाली रखे जाने से अवश्य जुड़ जाएँगे. ऐसा रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है. पता चला है कि एक कंपनी पर तो सैकड़ों करोड़ का जुर्माना लगा दिया गया है, जबकि ऐसी 10-12 कंपनियों की सूची और तैयार की जा रही है, जिन पर अभी हजारों करोड़ का जुर्माना लगाया जाना है. बताया जाता है कि सीवीसी ने इस महाघोटाले की जाँच सीबीआई को सौंपने के साथ ही खुद भी इसकी गहन छानबीन शुरू कर दी है. 

Tuesday 4 October, 2011


China Bullet Trains Trip on Technology 



What India can learn from China's mistakes in signaling and lightning situations? May be we should get best ideas and bring it to the attention of Railway Board of Indian Railways. This The Wall Street Journal's front page article shows the pitfalls of China's foray in high speed railways, their local engineers couldn't fully understand the components, because of lack of knowledge, lack of training and how to test the signaling systems..  

1.  Lightning continues to affect black box or switches box. As a result train services are disrupted for hours together. What back up mechanism can Indian Railway consider? Of course solutions exists. 

2. Signaling designs are complex. According to people inside Indian Railways, Testing, Verification and Validation are still done manually in Indian Railways. Average person in the signaling deptt. has no clue how to interpret the design and test the interlocking applications. Any suggestions what formal signal design and V&V tools can Indian railways use? 

Chairman Railway Board and Member Electrical should not play with the lives of the innocent Indian passengers. This is the best time to do audit of signaling systems, monitor the performance of  vendors like Ansaldo, GE  and rectify the situation. It is surprising why Minister for Railways and Chairman Railway Board are not taking immediate steps to set things right? Are we waiting for the next  failure to happen? 

SHANGHAI : China celebrated its bullet trains as the home-grown pride of a nation: a rail system faster and more advanced than any other, showcasing superior Chinese technology. However, China's high-speed rail network was in fact built with imported components—including signaling-system parts designed to prevent train collisions—that local engineers couldn't fully understand, according to a review of corporate documents and interviews with more than a dozen rail executives inside and outside China.During a late July lightning storm, two of China's bullet trains collided in the eastern city of Wenzhou, killing 40 people and injuring nearly 200 in one of the world's worst high-speed passenger-rail accidents. China's government initially blamed flawed signaling and human error. It recently postponed public release of its crash findings.
 Take a look at how Hollysys Automation Technologies Ltd. became a key contractor for China's high-speed, rail-signaling system. 

The precise cause of the disaster remains uncertain, so there is no way to know what role, if any, the signaling assembly may have played. 
An examination of China's use of foreign technology in its bullet-train signal systems highlights deep international distrust over China's industrial model, including weak intellectual-property protections, which can complicate efforts to acquire state-of-the-art technology.
Key signaling systems were assembled by Beijing-based Hollysys Automation Technologies Ltd., one of the few companies China's Ministry of Railways tapped to handle such work. In some cases of the signal systems it supplied, technology branded as proprietary to Hollysys contained circuitry tailor-made by Hitachi Ltd. of Japan to Hollysys specifications, according to people familiar with the situation.
The problem, these people say, is that Hitachi—fearful that Chinese technicians might reverse-engineer and steal the technology—sold components with the inner workings concealed from Hollysys. Hitachi executives say this "black box" design makes gear harder to copy, and also harder to understand, for instance during testing. 
"It's still generally a mystery how a company like Hollysys could integrate our equipment into a broader safety-signaling system without intimate knowledge of our know-how," a senior Hitachi executive said.
A rail signaling system is a complex assemblage of dozens of devices, circuits and software that helps train drivers and dispatchers keep everything running safely. As trains pass beacons along a route, known as "balise modules," information about location and speed are fed into the train-control network. According to Hollysys statements, it supplied key parts of the system including the onboard brain, the Automatic Train Protection, or ATP. Hitachi supplied Hollysys with a primary part of the ATP, according to Hitachi executives.
Hollysys didn't respond to requests for comment. Two days after the crash in July, Hollysys issued a statement confirming its ATP components were installed on both trains. Hollysys said its components "functioned normally and well."
A separate state-owned Chinese signaling company, which also works with foreign firms and supplies most of the gear to bullet-train projects, issued a statement around the same time expressing "sorrow" and pledging to accept its responsibility.
China's high-speed railway, budgeted at close to $300 billion, already challenges the travel time of jetliners between cities like Beijing and Shanghai, which are roughly as far apart as Philadelphia and Atlanta. The trains, with advertised cruising speeds on the fastest lines topping 215 miles per hour, are said to "fly on land," demonstrating a future where China is a recognized peer of the U.S., EU and Japan in big-ticket ingenuity. China is designing airliners to compete with Boeing Co. and nuclear reactors to challenge Toshiba Corp.'s Westinghouse Electric Co. It already exports high-speed rail equipment: This month it reached a deal to supply locomotives to the nation of Georgia.
In less than seven years, China has built a bullet-train network larger than the ones Japan and Germany took decades to construct. China is only about halfway through a 15-year plan to build a total of nearly 10,000 miles of high-speed track connecting 24 major cities.
"We aim at the world's top-notch technologies," then-Railways Minister Liu Zhijun declared four years ago. A few months before the July crash, Mr. Liu was fired after China's Communist Party accused him and other top officials of unspecified corruption. Mr. Liu couldn't be located for comment.
July's rail tragedy—in which two bullet trains collided during a storm, sending some cars plunging 65 feet from elevated tracks—is tarnishing China's effort to portray the project as technologically advanced and safety-minded. Among other things, the Ministry of Railways chose not to install lightning rods and surge protectors on some high-speed rail lines even as an industry association recommended doing so on major infrastructure projects, He Jinliang, director of China's National Lightning Protection Technology Standard Committee, said in July.
The Ministry of Railways didn't respond to requests for comment. Through state media and on its website, the ministry has stressed its attention to safety. A Sept. 5 statement said, "Our cadres should be leading the work, changing their style, going to the grass-roots level and trying to solve problems."
Last week, Chinese authorities reiterated their safety pledge after two subway trains in collided in Shanghai, injuring more than 280 people, in an accident blamed on errors after a power snafu knocked out signals, according to the subway operator. 
From the initial days of the high-speed railway program, Beijing turned to local firms, including Hollysys, rather than foreign expertise. Hollysys says it is one of just two companies eligible to supply certain signaling technology for China's fastest trains. Ministry of Railways rules effectively forbid foreign companies from bidding.
At 8:37 p.m., Train No. D301 rammed into the back of No. D3115, which was nearly stationary on the tracks, in Wenzhou. The accident killed 40 people and injured at least 190. The impact sent four carriages plunging 65 feet off the elevated rail line. 

Though new to high-speed rail, Hollysys became a central supplier of the signaling systems, circuits and software that are supposed to prevent the kind of accident that happened near Wenzhou by automatically stopping trains if trouble is detected.
Integrating signaling components is a challenge, particularly at the pace that China was expanding its rail network, train executives say. "The problem is to put all these pieces of the puzzle into a coherent system," says Marc Antoni, technological innovation director at SNCF, the French national railway operator, which runs the high-speed TGV.
Originally part of China's Ministry of Electronics, Hollysys in the 1990s became a privately owned business focused on "controls"—the technology that keeps factory assembly lines humming smoothly. In a Hollysys timeline of its railway achievements, the company says it won its first noteworthy high-speed-rail signaling contracts in 2005, about when China began construction.
A year later, in a filing with the U.S. Securities and Exchange Commission, Hollysys played down the importance of high-speed-rail signaling by describing it as "adjacent" to core operations in industrial controls. The sector was mentioned just once in a 300-plus page SEC filing in 2006, part of a successful effort by Hollysys to list its shares on Nasdaq through a special-purpose acquisition company, or SPAC, a practice that involves adoption of a current listing by another company.
By late 2008 Beijing was speeding construction of its bullet trains in part to help power the Chinese economy through the global economic slump. Hollysys described itself in regulatory filings as one of just two companies that possessed "the capability" to supply the Ministry of Railways with signals on its fastest lines.
Hollysys became a tech darling and in September 2009 its chief financial officer, Peter Li, speaking to analysts, credited the Ministry of Railways' "very clear mandate of localizing the product." When an analyst asked whether he feared competition, Mr. Li said, "Basically, foreign players are not allowed to bid independently for high-speed-rail projects."
The Ministry of Railways awarded Hollysys more than $100 million of high-speed-signaling contracts in 2010 alone, according to company statements. For the fiscal year ended this past June, Hollysys reported total revenue of $262.84 million.
The ministry also played matchmaker for Hollysys. When a leading Italian signaling company, Ansaldo STS, sought a business foothold in China, the Ministry of Railways indicated that it should be in the form of a partnership with Hollysys, according to Ansaldo spokesman Roberto Alatri.
A $97 million contract followed in July 2008 for a Hollysys-Ansaldo consortium to design, build and maintain signal-control systems on China's then-fastest train line, a 459-kilometer section linking the central China cities of Zhengzhou and Xian. The Hollysys portion was $22 million.
Hollysys had a longer relationship with Hitachi, which supplied the Chinese company components for high-speed rail signaling starting in 2005, the year Hollysys says it got its start in the business. The main cooperation was on the onboard ATP system, which Hollysys documents describe as components in the nose and tail of trains that act as its "last line of defense in safety."
The Hitachi-made ATP components came with a catch. Two Hitachi executives familiar with the matter said the company adopts what the industry refers to as "black box" security to conceal design secrets by withholding technical blueprints known in Japanese as zumen.
Black boxes make it tough to reverse-engineer the equipment. They can also make it more difficult to troubleshoot the gear, according to executives of several companies familiar with the practice in China.
"Providing zumen means…we completely trust the buyer of our technology," a senior Hitachi executive said, with the understanding that the buyer "would not become a competitive threat in other markets."
Hitachi doesn't always withhold its design secrets. When working with companies elsewhere on a common project, the senior executive said, it will provide the zumen, or blueprints, in some cases.
Hitachi executives say the arrangement with Hollysys wasn't a technology-transfer deal—in which it would be expected to share technical details—but rather a contractual arrangement to manufacture parts to specifications provided by Hollysys. Hitachi says it did provide "limited" technical support that is typical of contracts of this type.
A spokesman at Hitachi's headquarters in Tokyo, Atsushi Konno, said the company "has no comment about Hollysys's products, as we do not have any information as to what kind of end product Hollysys developed using our devices." The official confirmed that Hitachi supplied Hollysys some equipment for the signaling systems used aboard trains and "also provided technical explanation regarding those components, and we believe Hollysys, as a result, fully understands them."
At least one installation of Hollysys components didn't go smoothly, according to one Europe-based engineer who worked on the job. An onboard Hollysys computer, part of the ATP called a driver machine interface, kept freezing, displaying old information.
Technical bugs aren't unusual when fine-tuning a train system, but the temporary fix was, according to the engineer. To avoid the embarrassment of canceling an opening ceremony, operators decided to begin passenger service on the high-speed line and assign one person in the train's cab the exclusive task of watching that the seconds continued to scroll on the computer's clock—thereby ensuring the device was functioning.
"It was a random failure that was not managed very well," the engineer said. The problem was later fixed, he said.
Dominique Pouliquen, head of Alstom SA's China operations, said China and its rail-equipment suppliers remain in the learning stages. "You acquire the technology. Then you need to absorb it; you need to master it," Mr. Pouliquen told a small group of reporters last week. For China, "I think it's all about absorption and fully mastering the whole technology that has been acquired over the last 10 years."
Alstom supplied, through a local joint venture, hardware for train dispatchers on the line where July's collision occurred. Mr. Pouliquen said the JV didn't provide any of the signaling technology that the Chinese government has said was possibly flawed.
In an August letter to shareholders, Hollysys Chief Executive Wang Changli cited the "tragic" Wenzhou accident and reiterated that Hollysys equipment wasn't to blame. China's biggest signaling company, Beijing-based China Railway Signal & Communication Corp., originated within China's railways bureaucracy. Shortly after the crash, a CRSC unit, Beijing National Railway Research & Design Institute of Signal and Communication, issued a statement of "sorrow" and pledged to "shoulder our responsibility."
CRSC hasn't commented about the accident directly, aside from a statement Aug. 23 stating that its top executive, 55-year-old Ma Cheng, collapsed and died during questioning by crash investigators. 
Courtesy : The Wall Street Journal, Asia Edition. 

परेशान रेलवे बोर्ड ने बनाया फेडरेशन को मोहरा 
आरडीएसओ को पूर्ण जोनल रेलवे का दर्ज़ा और आरडीएसओपीओए का रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत की मानहानि का मुकदमा 

नयी दिल्ली : प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2002 में 7 नई जोनल रेलवे बनाए जाने के साथ ही आरडीएसओ को भी दि. 01.10.2002 के गजट नोटिफिकेशन में दि. 01.01.2003 से एक जोनल रेलवे का दर्ज़ा घोषित किया गया था. इसके बावजूद रेलवे बोर्ड ने आजतक अपनी इस घोषणा पर वास्तविक रूप में अमल नहीं किया, जिससे आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों को समान पदोन्नति एवं अन्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था. तमाम कोशिशों के बाद भी जब रेलवे बोर्ड ने अपनी ही घोषणा पर अमल नहीं किया और लगातार टालमटोल का रवैया अपनाया जाता रहा, तो आरडीएसओ प्रमोटी आफिसर्स एसोसिएशन (आरडीएसओपीओए) ने इस मामले को अदालत में चुनौती दे दी. अदालत का निर्णय प्रमोटी अफसरों के हक में आया, तब भी रेलवे बोर्ड के कान में जूं नहीं रेंगी और जब उसने अदालत के निर्णय पर अमल नहीं किया, तो आरडीएसओपीओए ने रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत की मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है. 

लखनऊ हाई कोर्ट में इसकी अगली सुनवाई अगले महीने नवम्बर के मध्य में है. पता चला है कि इससे रेलवे बोर्ड बहुत परेशान हो रहा है, क्योंकि इसके चलते उसे अदालत में बुरी तरह अपनी भद्द पिटने की आशंका हो रही है. हालाँकि बताते हैं कि कोर्ट में उसने आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों को सब कुछ देने की बात मान ली है, परन्तु आरडीएसओ के प्रमोटी अफसरों की मांग है कि जब तक सभी संगठित सेवाओं में उनका इंडक्शन नहीं किया जाता है, तब तक सभी विभागों की डीपीसी को रोक दिया जाए. कोर्ट ने इसे दि. 01.01.2004 से लागू करने का आदेश दिया है. इसमें समय लगने का बेहद बेहयाईपूर्ण तर्क देकर रेलवे बोर्ड कोर्ट और आरडीएसओ के प्रमोटी अधिकारियों को गुमराह करना चाह रहा है. जबकि न सिर्फ पिछले 10 साल उसने टालमटोल में गवां दिए हैं, बल्कि लखनऊ हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के बाद भी उसने करीब 8 महीने का समय यही कहते हुए बिता दिया है, और अब भी और समय की मांग करके एवं भौंड़े तर्क देकर न सिर्फ अपनी खाल बचाने की घटिया कोशिश कर रहा है, बल्कि इसमें वह प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन को भी अपना मोहरा बना रहा है?

बताते हैं कि इस मामले के चलते इंडियन रेलवे प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन (आईआरपीओएफ) और आरडीएसओपीओए के बीच काफी मतभेद पैदा हो गए हैं. पता चला है कि फेडरेशन ने इस मामले में आरडीएसओपीओए की कोई मदद नहीं की है क्योंकि उस पर रेलवे बोर्ड का भारी दबाव है कि वह यदि आरडीएसओपीओए को मानहानि का मुकदमा वापस लेने के लिए बाध्य नहीं करता है, तो पोस्टों के बंटवारे में ग्रुप 'बी' को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार आईआरपीओएफ ने इसी आशंका के मद्देनजर आरडीएसओपीओए की फेडरेशन से संलग्नता को रद्द कर दिए जाने की चेतावनी दी है. पता चला है कि 15-16 सितम्बर को इसी मुद्दे पर विशेष रूप से दिल्ली में बुलाई गई आईआरपीओएफ की कार्यकारिणी मीटिंग (ईसीएम) में इसके साथ ही फेडरेशन के सस्पेंस एकाउंट सहित कुछ और गंभीर मुद्दों को लेकर काफी हंगामा हुआ है. 

उल्लेखनीय है कि तमाम प्रमोटी अधिकारी, आईआरपीओएफ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कार्यकाल को बढाकर तीन साल किए जाने और फेडरेशन की कार्यप्रणाली तथा रेलवे बोर्ड की चापलूसी करने की सारी हदें पर कर दिए जाने को लेकर पहले से ही काफी आक्रोशित हैं. इसके अलावा फेडरेशन की तर्ज़ पर सभी जोनल एसोसिएशनो पर भी अपनी जोनल कार्यकारिणी का कार्यकाल बढाकर तीन साल करने का दबाव डाला जा रहा है. इससे भी तमाम जोनल पदाधिकारी सहमत न होने से फेडरेशन से नाराज हैं. यही नहीं, फेडरेशन की भेदभावपूर्ण कार्यप्रणाली से कई कैडर के अधिकारी भी फेडरेशन और जोनल एसोसिएशनो से न सिर्फ पूरी तरह कट गए हैं, बल्कि कैरियर के मामले में भी उनका भारी नुकसान हुआ है. इस सबके के परिणामस्वरुप प्रमोटी अधिकारियों में ग्रुप 'ए' और ग्रुप 'बी' का भेद भी काफी बढ़ता जा रहा है. ज्ञातव्य है कि इसी भेद को लेकर प्रमोटी अधिकारियों के एक गुट विशेष ने फेडरेशन और रेलवे बोर्ड के खिलाफ अदालत में एक मामला भी दाखिल किया हुआ है. अब देखना यह है कि रेलवे बोर्ड और प्रमोटी आफिसर्स फेडरेशन गले में अटकी इस फांस से कैसे निजात पाते हैं? 
www.railsamachar.com